विद्यार्थी जीवन में सफलता प्राप्त करने के लिए सावधान रहना बहुत आवश्यक होता है। एक ओर यही समय योग्यता अर्जित करके आगे बढ़ने का होता है और दूसरी ओर मौज-मस्ती करने का भी यही समय होता है। विद्यार्थी जीवन में बुलन्दियों को छूने का मूलमन्त्र निम्न श्लोक हमें बता रहा है, इस पर ध्यान देना चाहिए-
काक चेष्टा बको ध्यानं श्वाननिद्रा तथैव च।
अल्पहारी गृहत्यागी विद्यार्थी पञ्च लक्षणम्।
अर्थात् विद्यार्थी के पाँच लक्षण होते हैं- कौए की तरह प्रयत्न, बगुले की भाँति ध्यान, कुत्ते के समान निद्रा, कम खाने वाला और घर को छोड़ने वाला।
इस श्लोक के माध्यम से कवि स्पष्ट करना चाहता है कि एक विद्यार्थी के प्रयत्न कौए की तरह होने चाहिए। एकसाथ घण्टों बैठकर पढ़ने के स्थान पर थोड़े-थोड़े समय के अन्तराल से पढ़ना चाहिए। इससे थकावट भी नहीं होती और याद करने में सुविधा होती है।
बगुला जिस प्रकार अपना शिकार मछली पकड़ने के लिए ध्यान मुद्रा में एक पैर पर तालाब में खड़ा हो जाता है, उसी प्रकार विद्यार्थी को अपना ध्यान लक्ष्य पर केन्द्रित करना चाहिए। उसका उद्देश्य केवल योग्यता अर्जित करना होना चाहिए। दुनिया के सभी आकर्षणों से अपने मन को हटाकर अपनी पढ़ाई पर केन्द्रित करना चहिए क्योंकि ये सभी खाली समय के चोंचले होते हैं। इनके चक्कर में फंसने वाले अपनी पढ़ाई में पिछड़ जाते हैं।
विद्यार्थी जीवन में नींद कुत्ते की तरह होनी चाहिए, जरा-सी आहट हुई नहीं कि खुल गई। इस अवस्था में यदि अधिक सोया जाए तो पढ़ाई करने का समय नहीं मिल पाता। सोने से पहले जागने का जो समय निश्चित किया जाए, उस समय बिना कष्ट के अपनी जिम्मेदारी से जागकर पढ़ना चाहिए। ऐसा नहीं सोचना चाहिए कि मम्मी जगाएगी तो तभी जागेंगे और पढ़ेंगे।
पढ़ने वाले बच्चों को अपने आहार पर नियन्त्रण रखना चाहिए। उन्हें पौष्टिक भोजन खाना चाहिए ताकि उनका स्वस्थ ठीक रहे। यदि वे जंक फूड अधिक खाएँगे तो उनका स्वस्थ अवश्य ही प्रभावित होगा। आवश्यकता से अधिक खाएँगे तो नींद अधिक आएगी और शरीर रोगी भी हो सकता है। इसके कारण पढ़ाई का नुकसान होगा सो अलग।
विद्यार्थी को पढ़ाई करने के लिए यदि अपने घर से दूर किसी अन्य शहर या विदेश जाना पड़े तो कदापि संकोच नहीं करना चाहिए। ज्ञानार्जन करने और अपने जीवन को उचित दिशा देने के लिए उसे अपने घर का मोह त्यागना चाहिए।
विद्यार्थी जीवन में उद्देश्य ज्ञानार्जन होना चाहिए। इस समय पर बच्चा यदि योग्यता ग्रहण कर लेता है तो अपने जीवन में सेटल होने में उसे परेशानी नहीं होती। उच्च पद पर आसीन होकर वह जीवन का आनन्द ले सकता है।
इसके विपरीत विद्यार्थी जीवन में मौज-मस्ती में डूबे रहने वाले बच्चों को भविष्य में अपना कैरियर बनाने में अधिक मशक्कत करनी पड़ती है। सारा जीवन उन्हें संघर्ष करना पड़ता है।
बीता हुआ समय फिर लौटकर नहीं आ सकता। बड़े होने पर जब मनोनुकूल नौकरी नहीं मिल पाती तो उस समय फिर पश्चाताप करने का कोई लाभ नहीं होता।
विद्यार्थियों को अपने पढ़ने और खेलने के समय में तालमेल बिठाने के लिए समय सारिणी (time table) बना लेनी चाहिए। प्रयास यही करना चाहिए कि उसके अनुसार अपने दिन कार्यक्रम चले, बाधित न होने पाए। यदि किसी कारणवश दिन का कार्यक्रम बाधित हो जाए तो उस दिन का बचा हुआ कार्य आने वाले दिनों में पूर्ण कर लिया जाए।
विवेकपूर्ण आचरण से ही विद्यार्थी अपने जीवन में सफलता की सीढ़ियाँ चढ़ता है। वह दिन दोगुनी और रात चौगुनी तरक्की करता है।
चन्द्र प्रभा सूद
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बुधवार, 27 अप्रैल 2016
विद्यार्थी जीवन में सफलता
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