दूसरों पर दोषारोपण करना सबसे सरल कार्य है। मनुष्य सोचता है कि दूसरे को फंसाकर वह बच जाएगा परन्तु ऐसा होता नहीं है। स्वयं का बचाव करने के लिए कभी भी दूसरों पर दोषारोपण नहीं करना चाहिए। सच्चाई कभी-न-कभी तो प्रकट हो ही जाती है। उस समय मनुष्य की स्थिति बड़ी विचित्र हो जाती है। तब बगलें झाँकने के अतिरिक्त उसके पास कोई अन्य उपाय नहीं शेष बचता।
समय बड़ा बलवान होता है उसके पास सत्य को प्रकट करने के लिए अपने ही तरीके हैं। कभी-कभी मनुष्य का अपना जमीर ही उसे बार-बार कचोटने लगता है। तब वह अपराधबोध से कभी-कभी इतना अधिक ग्रसित हो जाता है और फिर मानसिक दबाव झेल नहीं पाता और स्वयं ही उस सत्य को सबके समक्ष प्रकट कर देता है, जिसे वह एक अर्से से छिपाता चला आ रहा था।
कहते हैं झूठ को सात पर्दों में भी छिपाकर रख लो वह सामने आ ही जाता है। जैसे सुगन्ध चारों ओर बिना प्रयास के फैलती है। इसी प्रकार दुर्गन्ध भी हर तरफ फैल जाती है। और भी कहते हैं कि झूठ के पाँव नहीं होते, दूसरों के कन्धों पर चढ़कर वह बहुत समय तक सवारी नहीं कर सकता। उसे वास्तविकता के धरातल पर आना ही होता है।
बचपन से ही दोषारोपण की यह बीमारी आरम्भ हो जाती है। शैतानी करने पर अपने दूसरे भाई-बहन अथवा मित्र-पडौसी के बच्चे पर अपना दोष मढ़ने का कार्य बच्चे बखूबी करते हैं। पढ़ाई ठीक से न करने पर जब परीक्षा में कम अंक आते हैं तब अपनी खाल बचाने के लिए अध्यापक पर पक्षपात का दोष लगाना सबसे सरल कार्य होता है कि अध्यापक ने जबरदस्ती अंक काटे हैं, उसे मेरे साथ पता नहीं क्या दुश्मनी है?
ज्यों ज्यों इन्सान बड़ा होता जाता है त्यों त्यों दोषारोपण के इस अनुचित कार्य में वह अधिक दक्षता प्राप्त करता जाता है। समय और स्थितियों के अनुसार वह अपने बचाव के लिए बकरे ढूँढता ही रहता है। कार्यालय में गड़बड़ी करने पर कभी अपने बास को दोष देता है तो कभी अपने ही साथियों को कटघरे में खड़ा कर देता है। जब और कोई न मिले तो उस समय बस सरकार को ही कोसकर अपनी भड़ास निकाल लो।
घर में ही देखिए, पति अपनी पत्नी पर किसी भी प्रकार की गलती का दोष मढ़कर, उसे भलाबुरा कहकर अपने अहं को तुष्ट कर लेता है। इसी तरह पत्नी भी अपने पति को गाहेबगाहे दोषी ठहराकर सबकी सहानुभूति बटोरने का प्रयास करती रहती है।
जन साधारण हर समस्या को बढ़ावा देने और उसका निदान न करने के लिए अपने चुने हुए नेताओं को दोष देते हैं, सारा समय उनकी आलोचना करते हैं। सभी राजनैतिक दल अपने विरोधियों पर प्रतिदिन परेशानियाँ बढ़ाने का दोषारोपण करते हैं।
सड़क पर चलते हुए कोई भी अपनी गलती न मानकर सामने वाले को दोष देते हुए गाली-गलौच करते हैं और मारपीट करने के लिए उतावले हो जाते हैं।
यदि सभी मनुष्य अपने अंतस् में या अपने गिरेबान में झाँक ले तो दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा। तब उन्हें अपने ऊपर शर्म आने लगेगी कि वे किस हद तक गिर सकते हैं। यह दोहा इसके लिए सटीक है-
बुरा जो देखन मैं चला बुरा न मिलया कोई।
जो मन खोजा आपना मुझसे बुरा न कोई।।
यह दोहा भी यही सच्चाई प्रकट कर रहा है कि दूसरों के दोष ढूँढते हुए हम छिद्रान्वेषी बन जाने का अपराध करते हैं। यदि हम स्वयं को खोजने लगें तब पता चलेगा कि हमारे भीतर दोषों की कोई कमी नहीं है।
अतः दोषारोपण करना छ़ोड़कर यदि अपने दोषों का सुधार कर लें तो यह मानव जीवन धन्य हो जाएगा।
चन्द्र प्रभा सूद
Twitter : http//tco/86whejp
शुक्रवार, 22 अप्रैल 2016
दोषारोपण करना सरल
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें