बच्चे अपने भोलेपन में ऐसे कार्य कर जाते हैँ जिनसे उनके अपने कोमल मन को ही ठेस लग जाती है। बच्चों के मन में छल-कपट, ईर्ष्या-द्वेष नहीं होता। वे ईमानदार, सच्चे, सरल हृदय और भावुक होते हैं। इसीलिए उन्हें भगवान का रूप कहा जाता है। इन मासूम बच्चों के मन में हम बड़े जहर घोलकर इन्हें समय से पहले बड़ा बनाने का अपराध अनायास ही करते हैं।
ये बच्चे बिना सोचे-समझे किसी की भी बात पर आँख मूँदकर विश्वास कर लेते हैं यानि उसे सच मान लेते हैं।
अपनी बात मनवाने के लिए वे हठ अवश्य करते हैं। यदि उनकी इच्छा को न पूरा किया जाए तो वे आहत भी हो जाते हैं। कुछ समय तक रूठे भी रहते हैं और थोड़े समय के बाद फिर पहले की तरह मस्त हो जाते हैं। तब उन्हें देखकर कोई यह नहीं कह सकता कि कुछ पल पहले वे नाराज थे। यही बच्चों की चरित्रगत विशेषता है। इसी कारण वे सबका मन मोह लेने में सफल रहते हैं, उन्हें अपना बना लेते हैं। शीघ्र ही हरेक के साथ ऐसे घुलमिल जाते हैं, मानो उनका साथ बरसों पुराना है।
घर में माता को काम करते देखते हैँ तो अपनी माँ का हाथ बटाने के लिए कभी वे झाड़ू लगाने लगते हैँ तो कभी डस्टिंग करने लगते हैं। कभी रसोई में जाकर रोटी बनाने की जिद करते हैं। पिता को गाड़ी साफ करते देख उनकी सहायता के लिए भागे आते हैं। दादा-दादी के आवाज लगाने पर भागकर उनका काम खुशी-खुशी करते हैं।
घर में यदि कोई बीमार हो जाए तब उनका काम बढ़ जाता है। वे उनकी तिमारदारी में जुट जाते हैं। बार-बार उन्हें छूकर देखते हैं। उन्हें पानी देना, दवा देना और उनके पास सारा समय बैठना व गप्पे लगाकर उनका मन बहलाने का काम ये बखूबी करते हैं। जिससे बिमारी की उस अवस्था में भी उन्हें सुकून मिलता है।
इस तरह घर में हर किसी सदस्य के लिए फिक्रमन्द रहने वाले बच्चे अपनी नासमझी के कारण प्रायः कुछ-न-कुछ गड़बड़ कर देते हैं। दिन में दसियों बार काम फैला देते हैं, इसके लिए उन्हें डाँट भी लगा दी जाती है। फिर भी वे अपने परोपकारी स्वभाव को नहीं छोड़ते और अपनी ही धुन में खोए रहते हैं। थोड़ी देर के बाद फिर आ जाते हैं कोई दूसरा काम करने के लिए। जरा-सी शाबाशी मिलने पर इतराने लगते हैं।
अपने अल्पज्ञान के कारण यदा कदा वे अकरणीय कार्य कर जाते हैं। घर के पालतू जीवों को खेल-खेल में तंग करने लगते हैं। कभी-कभी अनजाने में उन जीवों को चोट लग जाती है तब इससे वे उदास हो जाते हैं।
कभी घर में कोई चिड़िया अण्डे देती है तो उन्हें ज्ञिज्ञासा रहती है कि उसमें से बच्चे कब निकलेंगे? वे कैसे दिखाई देंगे? उन्हें खाना कौन खिलाएगा? आदि प्रश्न उन्हें उद्वेलित करते रहते हैं। इसलिए कभी वे उन अण्डों को सबकी नजर बचाकर छू लेते हैं तो अगले दिन वे उन्हें टूटे हुए मिलते हैं। तब वे व्यथित होकर माता-पिता से इसका कारण जानने का प्रयास करते हैं। जब उन्हें यह पता चलता है कि उनके छूने से चिड़िया ने अण्डों को तोड़ डाला है तो आहत हुआ बालमन फिर उस गलती को न दोहराने की कसम खाता है।
अपने मंहगे अथवा सस्ते सभी खिलौनों को तोड़कर प्रायः बच्चे उसका मेकेनिज्म समझने का यत्न करते हैं कि वे किस प्रकार बने हैं अथवा उसमें किन-किन वस्तुओं का प्रयोग किया गया है। अपनी इस आदत के कारण उन्हें अक्सर अपने बड़ों की नाराजगी झेलनी पड़ती है। फिर भविष्य में खिलौनों को न तोड़ने की कसम खाकर वे दुबारा उसी काम में मशगूल हो जाते हैं।
बच्चों को बचपन में ही जीने देने का यत्न करना चाहिए। आयु से पहले उन्हें बड़ा बनकर उनका बचपन नहीं छीनना चाहिए। हो सके तो कुछ पल के लिए उनके साथ बच्चा बनकर अपने बचपन के हसीन पलों को याद कर लीजिए।
चन्द्र प्रभा सूद
Twitter : http//tco/86whejp
गुरुवार, 28 अप्रैल 2016
बच्चों का भोलापन
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें