प्रदूषित खान-पान हमारे स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है, इस बात को हम सब जानते हैं। फिर भी जानते-बूझते हम अपने शत्रु स्वयं ही बन जाते हैं। सोचने वाली बात है कि कोई मनुष्य अपना दुश्मन खुद कैसे बन सकता है?
कितनी विचित्र है यह बात किन्तु सत्य है। यदि गहनता से विचार कर लिया जाए तो शीशे की तरह सब कुछ साफ-साफ नजर आने लगेगा। हम सभी अपनी मन और जिह्वा के गुलाम हैं। जहाँ मन को बैठे-बिठाए याद आ गया कि फलाँ पदार्थ खाना है वहाँ हमारी जीभ उसके स्वाद को याद करके लपलपाने लगती है। हम बस शीघ्र ही उसे खाने के लिए उतावले हो जाते हैं। फिर हमारा मस्तिष्क आदेश देता है खाने चलो। तब हम यह भी नहीं सोचना चाहते कि उसे खाकर हमारे शरीर को हानि तो नहीं होगी।
एक छोटा-से उदाहरण से इसे स्पष्ट करते हैं। प्रतिदिन हम सभी के खान-पान में चीनी और नमक का एक अहं रोल होता है। इन दोनों का निश्चित मात्रा में प्रयोग होना चाहिए। जहाँ इनकी मात्रा में बढ़ोत्तरी हुई वहीं दोनों शरीर को नुकसान पहुँचाने लगते हैं। नमक की अधिकता हमारी किडनियों को प्रभावित करती है और हाई बी. पी. की सम्भावना बढ़ जाती है। इसी प्रकार चीनी की अधिकता शूगर जैसी बीमारी को जन्म देती है। इसके अतिरिक्त इनसे और अंग भी प्रभावित होने लगते हैं। इसलिए इनके साथ-साथ और अनेक रोगों की चपेट में भी मनुष्य आने लगता है।
जब भी कभी बन्धु-बान्धवों से चर्चा होती है तो हम यही कहते हैं कि हम तो कुछ भी ऊल-जलूल या फालतू खाते ही नहीं। हम पौष्टिक खाने से दिन-प्रतिदिन दूर होते जा रहे हैं। जंक फूड, डिब्बाबन्द खाद्य और बासी खाना खाने के अभ्यस्त होते जा रहे हैं। यदि किसी बिमारी के कारण कभी डाक्टर कुछ परहेज बताते हैं तो भी उस पर अमल करना नहीं चाहते।
खेतों में डाले जाने वाले कीटनाशक और ऊर्वरक अन्न को प्रदूषित कर रहे हैं। गोदामों में स्टोर किए गए अन्न के रख-रखाव के लिए भी कीटनाशकों का प्रयोग हानिकारक है। कोल्ड स्टोर में रखे गए खाद्य पदार्थ भी शरीर के लिए नुकसानदेह हैं।
किसान के अधिक फसल पाने की लालसा भी हानिप्रद है जो मानव शरीर के साथ खिलवाड़ कर रही है। पहले समय में जैविक खाद का प्रयोग किया जाता था जिससे बिमारियों का खतरा नहीं ही होता था।
इसके अतिरिक्त हमारे रहन-सहन ने और भी बेड़ा गर्क किया हुआ है। हमारे आहार-विहार, सोने-जागने आदि के सारे गलत नियम 'एक करेला और दूसरा नीम चढ़ा' वाली उक्ति को चरितार्थ करने में देर नहीं कर रहे हैं।
अपनी मूर्खता के कारण बड़े धड़ल्ले से वायुमण्डल को गाड़ियों, फैक्टरियों आदि के धुँए से प्रदूषित कर रहे हैं। नदियों के अमृत रूपी जल को विष में बदल रहे हैं। पृथ्वी की मिट्टी आदि को हम जहरीला बना रहे हैं। शहर में पेड़ों और जंगलों की अन्धाधुन्ध कटाई करके अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार रहे हैं। प्रकृति को प्रदूषित करने का खामियाजा भी तो हमें ही भुगतना पड़ेगा। इस प्रदूषण का मूल्य हम अनजाने में अपने स्वास्थ्य से चुका रहे हैं। फिर भी हम खुश हैं, यह मजे की बात है।
सरकार को लानत भेजकर हम अपने कर्त्तव्यों की इतिश्री नहीं कर सकते। जब तक हम स्वयं जागरूक नहीं होंगे तब तक कुछ भी सुधार नहीं हो सकेगा। जब तक सरकार, सोशल मीडिया, समाचार पत्र, स्वयं सेवी संस्थाएँ और सबसे बढ़कर हम स्वयं जन-जागृति का कार्य नहीं करेंगे तब तक प्रदूषित खान-पान से लोगों की जिन्दगियों से खिलवाड़ होता रहेगा। फाइव स्टार और मल्टी स्पेशिलिटी अस्पताल आम जनता को मूर्ख बनाकर उनकी जेब काटते रहेंगे।
चन्द्र प्रभा सूद
Twitter : http//tco/86whejp
शुक्रवार, 15 अप्रैल 2016
प्रदूषित खान-पान
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें