परिवार की परिकल्पना भारतीय संस्कृति की अनमोल धरोहर है। परिवार में जितना अधिक आपसी विश्वास और तालमेल बना रहेगा उतना ही घर के सदस्यों का आपसी सद्भाव दूसरों के लिए उदाहरण बनता है। ऐसे घर की महक चारों दिशाओं में फैलती है।
संत कबीर दास जी के जीवन कआ एक प्रसंग बताना चाहती हूँ। कबीर दास जी प्रतिदिन सत्संग किया करते थे। दूर-दूर से लोग उनके पास सुनने के लिए आते थे। एक दिन सत्संग खत्म होने के बाद भी एक आदमी बैठा ही रहा। कबीर दास जी ने उससे न जाने का कारण पूछा तो उसने बताया कि घर के सभी सदस्यों से उसका झगड़ा होता रहता है। वह जानना चाहता था कि उसके घर में ही क्लेश क्यों होता है, वह उसे कैसे दूर कर सकता है।
कबीर जी ने थोड़ी देर चुप रहकर अपनी पत्नी से लालटेन जलाकर लाने के लिए कहा तो उनकी पत्नी लालटेन जलाकर ले आई। वह आदमी हैरान होकर सोचने लगा इतनी दोपहर में इन्होंने लालटेन क्यों मंगवाई? थोड़ी देर बाद कबीर जी ने कुछ मीठा मंगवाया तो उनकी पत्नी नमकीन देकर चली गई। उस आदमी ने सोचा कि यह तो शायद पागलों का घर है। मीठा के बदले नमकीन और दिन में लालटेन।
उस व्यक्ति ने कबीर दास से जब जाने के लिए पूछा तब कबीर ने उससे उसकी समस्या के समाधान हो जाने के विषय में पूछा। उस व्यक्ति ने अनभिज्ञयता प्रकट की तो कबीर जी ने कहा कि लालटेन मंगवाने पर मेरी पत्नी कह सकती थी कि तुम क्या सठिया गए हो। इतनी दोपहर में लालटेन की क्या जरूरत है। लेकिन उसने सोचा कि किसी काम के लिए लालटेन मंगवाई होगी। मीठा मंगवाया तो नमकीन देकर चली गई। मैं चुप रहा कि हो सकता है घर में कोई मीठी वस्तु न हो। इसमें तकरार कैसा? आपसी विश्वास बढ़ाने और तकरार न करने से विषम परिस्थितियाँ स्वयं दूर हो गईं।
तब उसे समझ आया कि कबीर जी ने उसे समझाने के लिए ऐसा किया था। कबीर जी ने फिर कहा कि गृहस्थी में आपसी विश्वास से ही तालमेल बनता है। आदमी से गलती हो जाए तो औरत संभाल ले और औरत से कोई त्रुटि हो जाए तो पति उसे नजरअंदाज कर दे।
सुखी गृहस्थी का मूल मंत्र गुरु नानक देव जी ने बताया है कि 'एक ने कही दूजे ने मानी नानक कहे दोवें ज्ञानी।'
अर्थात् घर में बिना विरोध किए एक-दूसरे की बात को मान लेना समझदारी होती है। अनावश्यक विरोध से टकराव की स्थिति बनती है। हाँ, पहले बात मान लो और फिर माहौल देखकर अपनी राय को भी रखना चाहिए। इससे दूसरे को उसकी गलती का अहसास भी हो जाएगा और घर का वातावरण भी नहीं बिगड़ेगा। ऐसा करने में मनुष्य का अहं आड़े आ सकता है पर घर की सुख-शान्ति बनाए रखने में बहुत कारगर उपाय है। तभी घर स्वर्ग के समान बन सुन्दर बन जाता है।
इस तथ्य को हृदयंगम कर लेना चाहिए कि परिवार से बड़ा कोई धन इस संसार में नहीं है। पिता से बड़ा सलाहकार इस दुनिया में कोई नहीं मिल सकता। माता के आँचल की छाया से बड़ा स्थान दुनिया में अन्य कोई नहीं हो सकता। उसे पाने के लिए देवता भी तरसते हैं।
अपने भाई से अच्छा कोई साथी कोई नहीं हो सकता। बहन से बड़ा कोई शुभचिन्तक नहीं हो सकता। अपने भाई-बहनों से ही मनुष्य संसार में सुशोभित होता है। पत्नी से बड़ा कोई मित्र इस संसार में नहीं हो सकता। वही मनुष्य के सुख-दुख का सच्चा साथी होती है। उसके बिना वह अधूरा रहता है।
परिवार के बिना हम लोग जीवन की कल्पना ही नहीं कर सकते। यदि अपने जीवन में सुख-समृद्धि चाहिए तो परिवार में सामंजस्य बनाकर रखना चाहिए।
चन्द्र प्रभा सूद
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मंगलवार, 26 अप्रैल 2016
परिवार की परिकल्पना
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