बुजुर्ग घर में सामंजस्य बनाऍं
घर-परिवार में सभी सदस्यों को सामंजस्य बनाकर रखना चाहिए। घर में बच्चे, युवा और बुजुर्ग सभी रहते हैं। इसलिए केवल घर के बच्चों और युवाओं का ही नहीं अपितु बुजुर्गों का भी दायित्व बनता है कि वे समय और परिस्थितियों को देखते हुए अपने व्यवहार में परिवर्तन लाऍं। इससे घर में सुख और शान्ति का साम्राज्य बना रहता है। बड़ों को चाहिए कि वे बच्चों को अपना आशीर्वाद दें। छतनार वृक्ष बनकर बच्चों को शीतल छाया प्रदान करें। इसी से बुजुर्गों का मान बढ़ता है।
इसके विपरीत यदि घर के बुजुर्ग अपनी हठधर्मिता का त्याग नहीं करना चाहते, तब घर में परेशानियॉं बढ़ने लगती हैं। घर का वातावरण बोझिल होने लगता है। उस समय बुजुर्ग बच्चों को बोझ लगने लगते हैं। वे कुछ भी करके उनसे छुटकारा पाने के उपाय सोचने लगते हैं। यह स्थिति किसी भी प्रकार से उचित नहीं ठहराई जा सकती। उन्हें यह सोचना चाहिए कि उन्होंने अपना जीवन अपनी शर्तों पर जी लिया है। अब बच्चों को भी उनके हिस्से की स्वतन्त्रता देनी चाहिए।
कहने का तात्पर्य मात्र इतना है कि बच्चे माता-पिता की आवश्यकताओं को समझकर उन्हें पूर्ण करने का प्रयास करें। वे निश्चित करें कि उन्हें समय पर नाश्ता-खाना इत्यादि मिलता रहे। जब वे बीमार हों, तो उन्हें समय पर डॉक्टर को दिखाकर दवाई उपलब्ध करवा दें। उनकी छोटी-छोटी जरूरतों का ध्यान रखें। वृद्धावस्था के कारण उनके माता-पिता शारीरिक रूप से कमजोर हो जाते हैं। अतः उनके साथ ऐसा व्यवहार न करें, जिससे वे स्वयं को असहाय समझें। उनके मान-सम्मान पर ऑंच नहीं आनी चाहिए।
दूसरी ओर आयुप्राप्त होते माता-पिता बच्चों की समस्याओं को समझें और यथासम्भव उनकी सहायता करें। यदि उनके बेटा-बहू दोनों नौकरी करते हों, तो घर बैठे वे बच्चों की देखभाल कर सकते हैं। इसके लिए बच्चों पर अहसान जताना बिल्कुल अच्छी बात नहीं है। यदि घर रहते हुए वे बच्चों का गृहकार्य करवा दें तो बच्चों को भी आराम हो जाता है। घर के छोटे-छोटे कार्यों में सहयोग करके उनका समय बचा सकते हैं। बुजुर्ग बच्चों पर अनावश्यक दबाव न बनाऍं बल्कि अपने अनुभवों से घर में एक सौहार्दपूर्ण वातावरण का निर्माण करें।
बुजुर्ग यदि अपने पूर्वाग्रह का त्याग करके बच्चों की समस्याओं को समझने लगें तो वे घर में अपने स्वाभिमान को बचा सकते हैं। बच्चे भी अपने ऐसे माता-पिता का सम्मान करते हैं। घर में अनावश्यक ही चिल्लाना अथवा बिना कारण बात-बेबात लड़ाई-झगड़ा करना उन्हें शोभा नहीं देता। अपने बच्चों की हर आने-जाने वाले के समक्ष बुराई करने से बचना चाहिए। जब उन्हें बच्चों के साथ ही रहना है तो उन्हें इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि वे बच्चों का अपमान किसी के सामने न करें। इससे उनका अपना सम्मान भी कम होता है। यदि कोई छोटी-मोटी बात घर में हो जाती है, तो अनदेखा करना चाहिए।
इसके अतिरिक्त अपने दुराग्रही स्वभाव के कारण उन्हें नित्य प्रति समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। उनके अड़ियल रवैए के कारण धीरे-धीरे बच्चे उनसे मुॅंह मोड़ने लगते हैं। उनकी परवाह करना कम कर देते हैं। एक समय ऐसा आता है जब बच्चे उनके व्यवहार के कारण परेशान होकर उनसे दूरी बनाने लगते हैं। उस समय वे घर में अकेले पड़ जाते हैं। इस तरह घर में उनके मध्य एक अबोलापन परसने लगता है। उसका असर बुजुर्गों पर अधिक होता है। यह किसी भी तरह से अच्छी बात नहीं कही जा सकती।
यदि बच्चे माता-पिता के व्यवहार के कारण उनसे विमुख होने लगते हैं, तब बुजुर्ग सारा दोष उन्हें देने लगते हैं। उस समय उन्हें याद करवाने का प्रयत्न करते हैं कि उनके पालन-पोषण में उन्होंने कितने कष्ट उठाए। उन्हें योग्य बनाने के लिए अपने किए गए बलिदानों की दुहाई देते हैं। वे अपने बच्चों के जीवन में आने वाली कठिनाइयों को समझना ही नहीं चाहते। वे बच्चों के जीवन की व्यस्तता में उन्हें मानसिक तनाव देने का कार्य बखूबी करते हैं। इस प्रकार जब बच्चे उनसे बहुत दुखी हो जाते हैं तब वे अपने माता-पिता की अवहेलना करने लगते हैं। बुजुर्गों को ऐसी परिस्थितियॉं घर में उत्पन्न करने से बचने की आवश्यकता होती है।
बुजुर्ग माता-पिता को थोड़ा समझदारी का परिचय देना चाहिए। उन्हें अपने बच्चों को सदा दोष नहीं देना चाहिए। यदि वे कोई सलाह-मशवरा बच्चों को दें और बच्चे उसे न मानें अथवा अनसुना कर दें, तो उन्हें इस बात का घर कोई इश्यू नहीं बनाना चाहिए। एक पीढ़ी का दूसरी पीढ़ी के अन्तर के कारण यह स्वाभाविक होता है। हर पीढ़ी को माता-पिता समझाते हैं पर बच्चे उस पर अक्षरशः पालन नहीं करते। उन्होंने ने भी अपने समय में माता-पिता की शत-प्रतिशत बातों को नहीं माना होगा। फिर आज वे अपने बच्चों से ऐसी उम्मीद कैसे कर सकते हैं?
समय और परिस्थितियों की मॉंग यही है कि बुजुर्ग अपने बच्चों पर विश्वास करें और बच्चे उनकी उम्मीदों पर खरे उतरें। घर-परिवार में यह एक आदर्श स्थिति होती है कि बुजुर्ग हंसते-मुस्कुराते रहें और बच्चे उनके अनुभवों का लाभ उठाऍं। यह तभी सम्भव हो सकता है जब बुजुर्ग अपनी हठधर्मिता का त्याग करें। बच्चों पर अनावश्यक अंकुश लगाने का प्रयास न करें। घर में परस्पर मिलजुलकर प्यार और अपनेपन से रहें।
चन्द्र प्रभा सूद
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