समय के अनुसार बदलना
यह सत्य है कि समय हमारे कहने से अथवा हमारे अनुसार नहीं बदलता। प्रकृति का यह नियम है कि मनुष्य को ही समय के साथ कदमताल करते हुए बदलना पड़ता है। ऐसा नहीं हो सकता कि हम कहें तो इसी पल समय हमें आगे भविष्य की ओर ले जाए। यानी भविष्य में हमारे साथ जो भी अच्छा या बुरा घटित होने वाला है, वह हमें सब दिखा दे। और हम चौकन्ने हो जाऍं। अथवा हम कहें तो वह हमें भूतकाल में ले जाए। जहॉं पहुॅंचकर हम अपनी गलतियों या अच्छाइयों को देख सकें। फिर उन पर विचार कर सकें।
यह मानकर चलिए कि जो आज हमारे पास है, वह कल नहीं रहेगा। बीते हुए कल में जो हमारे पास था, उसे हम आज के समय में कदापि नहीं ला सकते। इसलिए मनुष्य के लिए उचित यही है कि वह अपने समय का सदुपयोग करना सीख ले। उसे व्यर्थ ही गॅंवाने की भूल न करे। अपने जीवन के हर एक पल को बेहतर तरीके से जीना चाहिए। अन्यथा समय बीतने पर पश्चाताप करने के अतिरिक्त और कोई चारा नहीं बचता। अपने परिवारी जनों और अपने बन्धु-बान्धवों को भी समय का उपयोग करने के लिए प्रेरित करते रहना चाहिए।
दूसरे लोगों की देखा-देखी मनुष्य को स्वयं को अनावश्यक परेशान नहीं करना चाहिए। क्योंकि मनुष्य जो भी प्राप्त करता है या उपलब्धि पाता है, वह उसके अपने अथक परिश्रम का ही परिणाम होता है। कभी-कभी ऐसा भी होता है कि ईमानदारी से प्रयास करने के उपरान्त भी सफलता उसके हाथ नहीं लगती। जो भी यत्नपूर्वक न प्राप्त हो, उसके लिए शोक नहीं करना चाहिए। उस पर सन्तोष करना ही मनुष्य के लिए एकमात्र विकल्प बचता है। फिर उसे पुनः दुगने उत्साह से जुटकर अपनी जीत को हाथ बढ़ाकर पा लेना चाहिए।
यदि मनुष्य इस सत्य को आत्मसात कर लेता है कि इस दुनिया में जो सन्तुष्ट है, वही अपने जीवन में सुखी रह सकता है। यानी जब मनुष्य को सन्तोष रूपी धन मिल जाता है, उस समय वह संसार का सबसे सुखी व्यक्ति बन जाता है। मनुष्य जितना अपने बन्धु-बान्धवों या पड़ोसियों की नकल करने का यत्न करता है, उतना जीवन में दुखों और परेशानियों को न्योता देता है। जितना भी मनुष्य को प्राप्त हो रहा है, उसमें ही उसे जीवन का आनन्द लेना चाहिए। यह सूत्र उसे अनावश्यक तनाव से बचाता है।
संसार में हर मनुष्य सोने का चम्मच मुॅंह में लेकर पैदा नहीं होता। करोड़पति या अरबपति भी हर कोई नहीं बन सकता। यह सब मनुष्य के पूर्व कृत कर्मों के कारण ही मिलता है। इसलिए उनकी होड़ करना हर व्यक्ति के बस की बात नहीं होती है। इसलिए कोल्हू का बैल बन जाने पर भी उसके जीवन में बहुत अधिक सुधार नहीं हो पाता। अपने से कमजोर स्थिति वालों की ओर देखकर चलने से ही मनुष्य का भला होता है। वह सोचने के लिए विवश हो जाता है कि वह बहुत लोगों से अच्छा जीवन व्यतीत कर रहा है।
मनुष्य अपनी सामर्थ्य के अनुसार जितना भी कम या अधिक कमा पाता है, उसमें ही उसे गुजार बसर करनी आनी चाहिए। इस प्रकार वह बहुत सी मुसीबतें से बच सकता है। उसे अपनी चादर से बाहर पैर नहीं फैलाने चाहिए। दूसरों की होड़ में अपने जीवन को दॉंव पर नहीं लगाना चाहिए। उसे अपने जीवन में आने वाली धूप-छांव के लिए भी कुछ न कुछ बचत करनी चाहिए। ताकि आवश्यकता पढ़ने पर उसे किसी का मुॅंह न ताकना पड़े और न ही कर्ज लेने की नौबत आए। इससे उसका बजट गड़बड़ा जाता है।
मनुष्य का जीवन एक कोरे कागज की भॉंति होता है। इस पर जो भी अच्छा या बुरा लिखना है, मनुष्य को बहुत ही सोच-समझकर लिखना होता है। एक बार ही मनुष्य जो चाहे उस कागज पर अपनी इच्छा से लिख सकता है। फिर उसे बच्चों की तरह रबर की सहायता से मिटाने की अनुमति नहीं मिलती। उसके द्वारा लिखा हुआ ही उसका भविष्य बन जाता है। समय धीरे-धीरे आगे सरकता जाता है। भागकर अथवा हाथ उठाकर या हाथ आगे बढ़ाकर किसी भी प्रकार से नहीं पकड़ा जा सकता।
घर-परिवार की आवश्यकताओं को पूर्ण करने के लिए जीवन में भागमभाग बनी रहती है। मनुष्य को केवल पैसा कमाने की मशीन बनकर नहीं रह जाना है। यथासम्भव अपने परिवार के साथ समय व्यतीत करना चाहिए। सबसे आवश्यक है कि दिन में एक बार खुलकर हंसना चाहिए। साथ ही अपने परिवार के साथ हर वर्ष एक या दो बार भ्रमण के लिए जाना चाहिए। मित्रों के साथ भी कुछ समय व्यतीत करना चाहिए। इस प्रकार करने से मन प्रसन्न रहता है। मनुष्य कुछ समय के लिए अपनी समस्याओं से राहत का अनुभव करता है।
समय प्रवहमान है। उसको तो किसी भी हालत में रोका नहीं जा सकता। जो भी शुभाशुभ कर्म हमने पूर्व में किए हैं, उनको हम बदल नहीं सकते। समय रहते हम अपने कर्मों की शुचिता पर ध्यान दें सकते हैं। हमें आने वाले समय के लिए सावधान हो जाना चाहिए। भूतकाल की अपनी भूलों को सुधारने का अवसर हाथ से नहीं जाने देना चाहिए। उन्हें पुनः न दोहराने के लिए कटिबद्ध हो जाना चाहिए। जन कल्याण के कार्यों को भी यदा-कदा कर लेना चाहिए। इससे समाज के प्रति हमारे दायित्वों का निर्वहन होता है।
अपने समय का सदुपयोग करने के लिए सब ओर से ध्यान हटाकर अपने जीवन को व्यवस्थित करने का प्रयास करना चाहिए। अपने विचारों में परिपक्वता लाने का प्रयास करना चाहिए। इसके लिए अच्छा सोचना चाहिए। अपने स्वास्थ्य को घर के बने पौष्टिक भोजन से पुष्ट करना चाहिए। यथासम्भव अच्छे मित्रों की संगति में रहना चाहिए। योगाभ्यास करना चाहिए। रात को सोते समय पर्याप्त नींद आए, इसके लिए अपने सद् ग्रन्थों का अध्ययन करना चाहिए। ईश्वर की उपासना करके मन को शान्त करना चाहिए।
चन्द्र प्रभा सूद
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