सुखमय वृद्धावस्था के लिए
अपनी वृद्धावस्था के लिए अथवा अपने आने वाले जीवन के लिए समय रहते ही योजना बना ली जाए, यह अत्यन्त महत्वपूर्ण है। सुखमय वृद्धावस्था के लिए कुछ विशेष बातों का ध्यान रखना बहुत आवश्यक है। प्रयास यही रहना चाहिए कि अपने सभी सामाजिक दायित्वों और जिम्मेदारियों को अपनी रिटायरमेंट तक पूरा कर लिया जाए। इससे वृद्धावस्था में अनावश्यक तनाव नहीं रहता।
मनुष्य अपने जीवनकाल में अथक परिश्रम करके अपने लिए एक आशियाना बनाता है। वह यही सोचता है कि अपने परिवार के साथ वहॉं सुखपूर्वक जीवन व्यतीत करेगा। अपने नाती-पोतों के साथ खेलते हुए वह अपना बचपन जीएगा। खून-पसीने से बनाए गए उस घर को जीते-जी बच्चों को नहीं सौंपना चाहिए। यथासम्भव अपने स्वयं के स्थायी आवास पर ही रहना चाहिए ताकि स्वतन्त्रतापूर्वक अपने जीवन का आनन्द लिया जा सके।
अपना बुढ़ापा सुरक्षित करने के लिए हर सम्भव प्रयास करना आवश्यक है। अपने जीवित रहते परिश्रम से कमाकर जोड़े हुए बैंक बैलेंस, भौतिक सम्पत्ति और व्यापार आदि को अपने पास ही रखना चाहिए। अतिमोह में पड़कर किसी के भी नाम पर करने की भूल कदापि नहीं करनी चाहिए। हो सकता है कि बच्चे सुनहरे सपने दिखाऍं कि वे वृद्धावस्था में आपकी सेवा करेंगे, आपका हर प्रकार से ध्यान रखेंगे। इसलिए अपनी धन-सम्पत्ति उनके नाम पर कर दें।
बच्चों के इस प्रकार के बहकावे में नहीं आना चाहिए, उनके मगरमच्छ वाले ऑंसुओं को अनदेखा करना चाहिए। यहॉं एक बात कहना चाहती हूॅं कि बच्चों को यदि सचमुच आपके सहारे या सहयोग की आवश्यकता है तो अपनी सामर्थ्य के अनुसार उनकी सहायता अवश्य करनी चाहिए। उन्हें निराश नहीं करना चाहिए।
समय बदलने के साथ बच्चों की प्राथमिकता भी बदल सकती हैं। अतः अपने बच्चों के इस वादे पर बिल्कुल निर्भर नहीं रहना चाहिए। हो सकता है कि भविष्य में वे चाहकर भी आपके लिए कुछ न कर पाऍं। साथ ही यह भी सम्भावना हो सकती है कि वे अपने ही देश में अन्यत्र किसी प्रदेश में या विदेश में अपनी नौकरी अथवा व्यवसाय के कारण बस जाऍं। तब आपको यहॉं अकेले ही जीवन व्यतीत करना पड़ सकता है।
अपने बाद जीवनसाथी को किसी का मोहताज बनाकर नहीं छोड़ना है बल्कि समय रहते वसीयत बनवा लेनी चाहिए कि उनके पश्चात सारी धन-सम्पत्ति का वारिस उनकी पत्नी होगी। उसके बाद वह सब बच्चों में बराबर बॉंट दी जाएगी। इससे भी बढ़कर यह आवश्यक है कि अपने जीवनसाथी को आपकी धन-सम्पत्ति के विषय में पूरी जानकारी होनी चाहिए। उसे अपने लेन-देन, बैंक अकाउंट, इन्श्योरेन्स, इन्वेस्टमेंट आदि के बारे में बताइए। जिससे समय आने पर उसे किसी का मुॅंह न ताकना पड़े। उस समय वह दृढ़ता और साहस के साथ विपरीत परिस्थितियों का सामना कर सके।
जहॉं तक हो सके अपने बच्चों के जीवन में अनावश्यक दखलअंदाजी न करें। सलाह भी उनके मॉंगने पर ही दें तो अच्छा रहेगा। यदि बच्चे आपके परामर्श को अनसुना कर देते हैं तो उसे अपनी ईगो का विषय बनाकर अनावश्यक तूल नहीं देनी चाहिए। उन्हें अपने तरीके से जीवन जीने दीजिए और आप अपने तरीके से जीवन व्यतीत कीजिए। ऐसा करने से घर में सदा ही सुख-शान्ति बनी रहती है। अन्यथा घर युद्ध का मैदान बन जाता है और अनावश्यक वाद-विवाद होने लगता है। यह सोचना चाहिए कि आपने अपना जीवन अपनी शर्तों पर जी लिया है तो बच्चों को भी अपना जीवन जीने की आजादी मिलनी चाहिए।
अपनी वृद्धावस्था का आधार बनाकर किसी से सेवा करवाने अथवा सम्मान पाने का कभी प्रयास नहीं करना चाहिए। बहुत समय तक बेचारा बनकर सहानुभूति नहीं बटोरी जा सकती। अपने जीवन को उल्हासपूर्वक जीने का प्रयत्न करना चाहिए। स्वयं प्रसन्न रहकर दूसरों को भी प्रसन्न रखने का प्रयास करना चाहिए। उन लोगों को अपने मित्र समूह में शामिल करना चाहिए जो आपके जीवन को प्रसन्न देखना चाहते हों, यानी सच्चे हितैषी हों।
सबसे अहं है अपने स्वास्थ्य का स्वयं ध्यान रखना। समय-समय पर चिकित्सीय परीक्षण करवाते रहना चाहिए। इसके अतिरिक्त घर का बना सादा और पौष्टिक भोजन खाना चाहिए। स्वास्थ्य रहने के नियमों का पालन करना चाहिए यानी वाक, योगासन, हल्का-फुल्का व्यायाम करना चाहिए। यथासम्भव अपने कार्य स्वयं ही करने की आदत बनानी चाहिए। छोटे-मोटे कष्टों-परेशानियों पर ध्यान नहीं देना चाहिए। उम्र के साथ-साथ छोटी-मोटी शारीरीक परेशानियॉं चलती ही रहती हैं।
किसी के साथ भी अपनी तुलना करके स्वयं को दुखी नहीं करना चाहिए। हर व्यक्ति की अपनी-अपनी सामर्थ्य होती है। किसी से कोई उम्मीद नहीं रखनी चाहिए। कोई कुछ सहायता कर दें तो ठीक है और यदि न करें तो किसी के समक्ष रोना नहीं रोना चाहिए। दूसरों की बातें अवश्य सुननी चाहिऍं पर निर्णय अपने विचारों के आधार पर ही लेना चाहिए। जहॉं तक हो सके किसी भी तरह के टकराव को टालकर तनाव रहित जीवन को जीने का प्रयास करना चाहिए।
अपने साथ कुछ ऐसे मित्रों को जोड़ना चाहिए जिनके साथ आप सहज अनुभव कर सकें। उनके साथ कभी-कभी पार्टी कीजिए, लंच या डिनर पर जाइए और पिकनिक का कार्यक्रम बनाइए। प्रतिवर्ष किसी तीर्थस्थल अथवा हिल स्टेशन पर यात्रा के लिए जाइए। इससे आपको जीने का आनन्द आएगा। आप स्वयं को उत्साहित, ऊर्जावान और तरोताजा महसूस करेंगे। यह बात सदा स्मरण रखनी चाहिए कि जब तक आप स्वयं अपने लिए जीना शुरू नहीं करते हैं निश्चित मानिए तब तक आप जीवित नहीं हैं।
इस असार संसार में कुछ भी स्थाई नहीं है। इसलिए जीवन में कुछ भी सदा के लिए नहीं रह सकता। यानी कि सुख, दुख, चिन्ता, परेशानी भी नहीं। किसी से भी अनावश्यक याचना नहीं करनी चाहिए और न ही किसी का मुॅंह ताकना चाहिए। अपना समय व्यतीत करने के लिए धर्म ग्रन्थों का अध्ययन करना चाहिए, बागवानी भी की जा सकती है। ईश्वर की उपासना करनी चाहिए। प्रार्थना केवल ईश्वर से करनी चाहिए कि वह जीवन में आपको सदा स्वस्थ रखे और धैर्य व साहस दे।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें