जल में कमल की तरह इस संसार में रहना चाहिए। कमल कीचड़ में जन्म लेता है। परन्तु फिर भी तालाब के कीचड़ वाले जल का उस पर प्रभाव नहीं पड़ता। वह उसमें रहते हुए भी वह उससे अछूता रहता है।
जल में कमल की भाँति रहने का यह अर्थ कदापि नहीं कि सब कुछ छोड़कर इस दुनिया से विदा लेकर साधु-सन्यासी बन जाएँ और जंगलों में शरण ले लें। वहाँ पर तपस्या करते हुए अनाम रहकर अपने इस भौतिक जीवन की लीला को समाप्त करके परलोक गमन कर लें।
अपने सभी कार्यकलापों को करते हुए और अपने दायित्वों को भलीभाँति निभाते हुए उनसे निर्लिप्त रहकर हमें दुनिया में रहना चाहिए। हम यदि ऐसा कर सकते हैं तो दुनिया के सुख-दुख, लाभ-हानि, जय-पराजय, दिन-रात, सर्दी-गर्मी आदि द्वन्द्व कष्ट नहीं देते। मोह-माया के बंधन हम पर हावी नहीं हो पाते। इसलिए निर्द्वन्द्व होकर दुनिया में रहने से हम सबके प्रिय हो जाते हैं। कमल के फूल की तरह चारों दिशाओं में अपना जलवा बिखेर सकते हैं। समाज में अपना एक स्थान बना सकते हैं।
गीता में भगवान कृष्ण इसे स्थितप्रज्ञ की संज्ञा देते हैं। महाराज जनक राज्य के सभी कार्यों को करते हुए, अपने घर-परिवार के दायित्वों का निर्वहण करते हुए जीवन व्यतीत करते थे। उन्हें विदेहराज जनक कहा जाता है। भगवान राम, भगवान कृष्ण आदि महामानव भी अपने इहलौकिक दायित्वों का पालन करते हुए ही इस पृथ्वी पर हमारे आदर्श बने।
हमारे प्राचीन ऋषि-मुनि भी अपने गृहस्थाश्रम का पालन करते हुए संसार में निर्लिप्त होकर रहते थे। ईश्वर की उपासना करते हुए वे अपने लक्ष्य मोक्ष की ओर कदम बढ़ाते थे।
विशेष अनुष्ठान में कमल के फूलों को अर्पित किया जाता है हर पूजा में नहीं। इसी से इस फूल का महत्त्व समझ में आ जाता है।
इसी प्रकार संसार में कमल के फूल की तरह रहने वाले मनुष्य भी विशेष होते हैं। वे दुनिया की भेड़चाल में नहीं रहते अपनी अलग पहचान रखते है। इसी से ही उनके महत्त्व को हम समझ सकते हैं। वे जन साधारण की सोच से परे होते हैं। उनके साथ स्पर्धा करना हर किसी के बस की बात नहीं होती। वे असाधारण प्रतिभा संपन्न, दयालु, परोपकारी सज्जन अपने दिव्य गुणों के कारण युगों तक स्मरणीय होते हैं।
इस श्रेणी में हम उन विभूतियों को स्मरण कर सकते हैं जिन्होंने अपनी परवाह किए बिना देश, जाति व समाज के आत्मोत्सर्ग किया। ऐसे महापुरुष इतिहास के रचने वाले होते हैं और उन्हें उनके उन निस्वार्थ बलिदानों को युगों-युगों तक आने वाली पीढ़ियाँ श्रद्धावनत होकर याद करती रहती हैं।
जल में कमल की तरह रहना ही इस संसार का सार है। जिसने इस असार संसार के सार को समझ लिया मान लीजिए उसका बेड़ा पार हो गया। जन्म-मरण के बन्धनों से मुक्त होकर, चौरासी लाख योनियों के फेर से वह स्वतन्त्र हो जाता है। वह अपने परम लक्ष्य मोक्ष को निश्चित ही प्राप्त कर लेता है। ऐसा ही जीव संसार में सबका अपना बनकर महान हो जाता है व ईश्वर का प्रिय हो जाता है।
शनिवार, 11 अप्रैल 2015
जल में कमल की तरह रहना
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