नकारात्मक विचार हमारे अंतस में अंगद की तरह पैर जमाकर विद्यमान रहते हैं। सकारात्मक विचारों पर ये नकारात्मक विचार जब हावी हो जाते हैं तब मनुष्य निराशा के अंधकूप में गोते खाते हुए डगमगाने लगता है।
नकारात्मक विचार से तात्पर्य है कि मनुष्य हर समय निराश रहता है। अच्छी-से-अच्छी बात में भी बुराई ढूँढता रहता है। स्वादिष्ट भोजन में भी उसे आनन्द नही आता। दिन-रात निराशा के गर्त में डूबा वह धीरे-धीरे स्वयं ही सबसे कटने लगता है। न तो उसे किसी का साथ अच्छा लगता है न किसी की सलाह पसंद आती है। टीवी, फिल्म, सैर-सपाटा, मित्रों का साथ, विवाह आदि उत्सव कुछ भी उसे नहीं भाता। इन सबसे वह कन्नी काटने लगता है और इस तरह वह अपने आप को अकेला कर लेता है। सारा समय उल्टा-सीधा सोचता रहता है।
ऐसी स्थिति यदि लम्बे समय तक चलती रहे तो मनुष्य को किसी पर विश्वास नहीं रहता। उसे ऐसा लगने लगता है कि सभी उसके दुश्मन हैं और उसे किसी-न-किसी बहाने से मार डालेंगे।
'आत्मानुशासन' नामक पुस्तक का यह श्लोक हमें समझा रहा है-
जीविताशा धनाशा च येषां तेषां विर्धिविधि:।
किं करोति विधिस्तेषां येषामाशा निराशता।
अर्थात जिनको जीने की और धन की आशा है उनके लिए विधि विधि है परन्तु उन लोगों का विधि या भाग्य क्या करेगा जिनकी आशा निराशा में बदल गई हो।
जो व्यक्ति आशा को छोड़कर निराशा का दामन थाम लेता है वह डिप्रेशन का शिकार हो जाता है। तब उसे डाक्टरों के पास जाकर अपना मेहनत से कमाया हुआ पैसा व समय नष्ट करना पड़ता है।
'जातकमाला' नामक पुस्तक में स्पष्ट कहा गया है-
निरीहेण स्थातुं क्षणमपि न युक्तं मतिमता।
अर्थात बुद्धिमान का एक भी क्षण निरीह की तरह रहना उचित नहीं। यानि उसे पल भर भी निराश नहीं होना चाहिए।
जिस क्षण मनुष्य के मन में नकारात्मक विचारों का उदय होता है उसी पल उनका दुष्प्रभाव उसके शरीर पर भी परिलक्षित होने लगता है। शरीर पर होने वाले कुछ प्रभाव यहाँ दे रही हूँ -
1. शरीर एसिड छोड़ता है।
2. मनुष्य की औरा प्रभावित होता है।
3. आत्मविश्वास में कमी आती है।
4. शरीर का पाचन तंत्र प्रभावित होता है।
5. हार्ट बीट बढ़ती है।
6. बल्ड प्रेशर बढ़ता है।
7. अनचाहे हारमोन शरीर से निकलते हैं।
नकारात्मक विचारों के चलते मनुष्य स्वयं को तो हानि पहुँचाता ही है और दूसरों को भी हानि पहुँच सकता है। ऐसा इंसान आत्महत्या जैसा जघन्य अपराध तक कर बैठता है। वह तो इस जीवन से मुक्त हो जाता है पर अपने पीछे परिवारी जनों के लिए समस्याओं का अंबार लगा जाता है।
जहाँ तक संभव हो सकारात्मक विचारों को अपनाएँ। अपने समय का सदुपयोग कीजिए। सबके साथ मिलजुल कर रहना आरम्भ कीजिए। स्वयं को हमेशा क्रियात्मक कार्यो में व्यस्त रखने का यथासंभव प्रयास कीजिए। एवंविध उपायों को अपनाने लें तो इस निराशा से छुटकारा पा सकते हैं। इसलिए सदा ही सकारात्मक विचारों को अपनाकर नकारात्मक विचारों से बचा जा सकता है और प्रसन्न रहा जा सकता है।
बुधवार, 15 अप्रैल 2015
नकारात्मक विचार
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