मनुष्यों को उनकी प्रकृति (स्वभाव) के अनुसार तीन श्रेणियों में विभाजन किया गया है। प्रथम श्रेणी के लोगों को उत्तम जन कहा जाता है। ये अपने इरादों में बड़े पक्के होते हैं। मध्यम श्रेणी के लोग द्वितीय कोटि के होते हैं इनमें कुछ गुण महान लोगों की तरह होते हैं और अपने को मजबूत बनाना चाहते हैं। परन्तु निम्न कोटि के लोगों की तरह हड़बड़ाहट में रहते हैं। इसलिए जल्दी घबरा कर अपने लक्ष्य से चूक जाते हैं। तीसरी कोटि के लोगों को निम्न श्रेणी का कहा जाता है। ये ढुलमुल व्यवहार करते हैं और शीघ्र ही घबरा जाते हैं। किसी कार्य को करने का कष्ट ही नहीं उठाते।
अपने-अपने व्यवहार के कारण ही तीन श्रेणियों में बांटे गए लोगों के विषय में यहाँ हम भर्तृहरि के इस श्लोक के माध्यम से विवेचन करते हैं-
प्रारभ्यते न खलु विघ्नभयेन नीचै:
प्रारभ्य विघ्नविहिता न विरमन्ति मध्या:।
विघ्नै: पुनः पुनरपि प्रतिहन्यमाना:
प्रारभ्य तु उत्तमजना न परित्यजन्ति॥
नीच यानि निम्न कोटि के लोग विघ्नों (मुसीबतों) के डर से किसी कार्य को आरम्भ ही नहीं करते। वे परेशान रहते हैं। मध्यम कोटि के लोग कार्य आरम्भ करते हैं परन्तु जब विघ्न आते हैं तो घबराकर उसे बीच में ही छोड़ देते हैं। इनके विपरीत उत्तम कोटि के लोग बारबार मुसीबतें आने पर भी कार्य को बीच में नहीं छोड़ते अपितु पूरा करके ही चैन लेते हैं।
इस वर्गीकरण के अनुसार तृतीय श्रेणी के लोगों को हम कायर कह सकते हैं। वे जीवन में आगे बढ़ना तो चाहते हैं पर कोई कार्य करना नहीं चाहते। अब बैठे बिठाए तो कुछ नहीं मिलता, कष्ट तो उठाना पड़ता है। थाली में पड़ा हुआ रोटी का निवाला खुद मुँह में नहीं जाता बल्कि उसे तोड़कर मुँह में डाला जाता है। तभी भोजन का आनन्द लिया जा सकता है और पेट भी भरता है।
मध्यम श्रेणी के लोग जीवन में सबकुछ पाना चाहते हैं। उसके लिए योजना बनाते हैं और फिर क्रियान्वित भी करते हैं। अब यह तो संभव नहीं कि कोई कार्य निर्विरोध या निर्विघ्न संपन्न हो जाए। बाधाएँ तो कदम-कदम पर रास्ता रोक कर खड़ी रहती हैं। हमें उन रास्ते की रुकावटों को दूर करके आगे लक्ष्य की ओर बढ़ना होता है। परन्तु इस श्रेणी के लोग जहाँ तक सब बाधारहित है तो सब भला और जहाँ सामने परेशानी आई वहीं पल्ला झाड़ लेते हैं। स्वयं को उससे परे कर लेते हैं। ऐसे ये हमेशा ही अपनी मूर्खताओं से जीवन की रेस में पिछड़ जाते हैं।
उत्तम श्रेणी के लोग महान होते हैं। ये एकबार किसी कार्य को करने का संकल्प लेते हैं तो पीछे मुड़कर नहीं देखते। कितने ही आंधी-तूफान जीवन में आ जाएँ ये बिना डरे, बिना घबराए अपने लक्ष्य की ओर मजबूती से कदम बढ़ाते हैं। जब तक उनका मनचाहा कार्य पूर्ण नहीं हो जाता पलभर भी आराम नहीं करते। ऐसे कर्मठ एवं जुझारू ही जीवन के हर क्षेत्र में सफल होते हैं। ये सब पर अपनी छाप छोड़ते हैं। इन्हीं लोगों को समाज में एक महत्त्वपूर्ण स्थान मिलता है।
अपने अंतस में झाँककर देखिए और आत्मविशलेषण कीजिए कि आप किस श्रेणी में आ रहे हैं? यदि प्रथम श्रेणी में आने की कामना करते हैं तो अभी से कृतसंकल्प होकर जुट जाइए, अपने मन में आने वाले सभी डरों को शीघ्र ही झटककर प्रभु का स्मरण करते हुए तत्क्षण आगे बढ़िए सफलता आपकी प्रतीक्षा कर रही है। ईश्वर अवश्य ही मनवांछित फल देगा।
बुधवार, 8 अप्रैल 2015
मनुष्यों की तीन श्रेणियाँ
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