दोनों हाथों से खुशियों को बटोरिए और बाँटिए। फिर देखिए जीवन में कितना सुकून मिलता है। आज की भागमभाग वाली जिन्दगी में यदि कुछ पल खुशियों भरे मिल जाएँ तो किसी का भी जिन्दगी का सफर सुहाना हो सकता है।
दूसरों को खुशियाँ तभी बाँटी जा सकती हैं यदि मनुष्य पहले स्वयं प्रसन्न रहना सीख जाएगा। उसके लिए पहले अपने जीवन में संतोष का होना ही बहुत आवश्यक है। संतोष रूपी धन जब जीवन में आ जाता है तो शेष सभी धन मिट्टी के समान लगने लगते हैं। तब फिर भौतिक पदार्थों के लिए व्यर्थ भटकने की मनुष्य को कदाचित आवश्यकता नहीं रहती। जब मन दुख और परेशानी से व्यथित होता है तो वे भाव उसके चेहरे पर प्रत्यक्ष दिखाई पड़ते हैं। उसी प्रकार सन्तुष्टि का भाव भी मनुष्य के चेहरे पर स्पष्ट रूप से छलकता है।
असार संसार के आकर्षण मनुष्य को ललचाते हैं। उनको और और पाने की चाहत उसे गुमराह कर देती है। तब मनुष्य अनजाने में गलत राह या कुमार्ग पर चल पड़ता है जिससे वापसी असम्भव तो नहीं परन्तु कठिन अवश्य हो जाती है। मनुष्य सभी प्रकार के सच-झूठ व छल-प्रपंच करने लगता है। अपनी सफेदपोशी की पोल खुल जाने का डर उसे विचलित करता रहता है। फिर उसका पीड़ित हो जाना तो समझ में आता है। ऐसा दिशाहीन होता हुआ मनुष्य अपने पैर पर खुद ही कुल्हाड़ी मारता हुआ परेशानियों के जंगल में चौबीसों घंटे व्यर्थ ही इधर-उधर भटकता रहता है।
जब हमारे मन को ये ईर्ष्या, द्वेष, काम, क्रोध, अहंकार आदि शत्रु डसने लगते हैं तब वह बेचैन होकर बेबस पक्षी की तरह फड़फड़ाने लगता है। उस समय ऐसा प्रतीत होता है मानो कोई हमारा दिन-रात का सब सुख-चैन हर रहा है। तब सारा समय हम दूसरों को गाली-गलौच करने या कोसने में व्यतीत करते हैं।
ऐसी स्थिति में मन की शांति नष्ट हो जाती है जो वास्तव में दुर्भाग्यपूर्ण है। जब मन ही शांत नहीं होगा तो हम भी प्रसन्न नहीं रह सकते। फिर ऐसे में अपने घर, परिवार, मित्रों व बच्चों सबको खुशी कैसे दे सकते हैं?
यह आवश्यक नहीं कि हम लाखों-करोड़ों खर्च करें तभी दूसरों को खुश रख सकते हैं। दूसरों के दुख को बांटकर उन्हें प्रसन्न कर सकते हैं। उनके कष्ट के समय इतना अहसास भर दिलाना ही उनकी खुशी के लिए बहुत होता है कि हम उनके साथ हैं।
अपनी सामर्थ्य के अनुसार दूसरों के छोटे-छोटे अभावों को दूर करके हम उन्हें खुशियाँ दे सकते हैं। असहायों के लिए दीनबन्धु बन सकते हैं। अपने व्यवहार को संतुलित करके भी हम अन्यों को संतुष्ट कर सकते हैं। अनाथालय, अंधविद्यालय, ओल्ड होम आदि जैसे स्थानों पर जाकर उनके साथ कुछ पल बिताकर उन्हें खुशियाँ दे सकते हैं।
खुशियाँ फूलों की भाँति कोमल होती हैं जो चारों ओर अपनी सुगन्ध से सबको सुवासित करती हैं और अपने सौंदर्य से सबको मोहित कर लेती हैं। इन्हें निस्वार्थ भाव से बांटने पर दूसरों को प्रसन्नता तो मिलती ही है अपना मन भी खुश व शांत रहता है। ऐसा करने एक आत्मतुष्टि का भाव रहता है कि हमने सकारात्मक कार्य किया। यथासंभव अमोल खुशियों की चाँदनी बिखेरते रहने का यत्न हम सभी को करना चाहिए।
शनिवार, 25 अप्रैल 2015
खुशियाँ बाँटिए
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