स्वप्न देखिए पर दिवा स्वप्न नहीं। सपनों की अपनी एक दुनिया है। हम विभिन्न प्रकार के सपने सोते-जागते देखते हैं। कुछ सपनों को हम अपने अथक परिश्रम से साकार कर लेते हैं परन्तु कुछ को यत्न करने पर भी पूर्ण नहीं कर पाते। इसकी पीड़ा हमें मृत्यु पर्यन्त कचोटती है।
हम अपने बूते से बढ़कर सपने देखते हैं तो अपने प्रयासों में सफल नहीं होते। अपनी सामर्थ्य के अनुसार देखे गए स्वप्न अवश्य फलीभूत होते हैं।
इसका यह अर्थ कदापि नहीं कि हम सपने सजाना छोड़ दें। हाँ इतना अवश्य कहना चाहूँगी कि सपनों की दुनिया में खोकर घर-परिवार, भाई-बन्धुओं अथवा अपनी रोजी-रोटी के प्रति अपने दायित्वों को नजरअंदाज न कर दें। ऐसा करना तो जीवन से भागना कहलाएगा। जो व्यक्ति अपना रवैया इसी प्रकार का रखता है उसे कहीं भी सम्मान नहीं मिलता। समाज की नजर में वह असफल होता है।
किसी नगर में एक नवयुवक था। वह काम-धन्धा नहीं करता था पर दिनभर सोचता रहता था, सपने बुनता रहता था। किसी प्रकार उसके पास सत्तू का मटका भर गया। एक दिन वह उस मटके के नीचे चारपाई बिछाकर सो रहा था। तब उसने एक बहुत ही सुन्दर स्वप्न देखा कि उसने सत्तू बेचकर एक गाय खरीदी। एक-के-बाद धीरे-धीरे उसके पास बहुत-सी गाय हो गयीं। फिर वह किसी सद् गृहस्थ के दरवाजे पर जाकर अपने विवाह की चर्चा की। विवाह के पश्चात उसका एक बेटा हुआ। कुछ माह बाद वह जब चलने लगा तो एक दिन वह गौवों की तरफ बढ़ रहा था। उसे चोट लग जाएगी इस डर से उसे बहुत क्रोध आ गया। गुस्से में उसने अपनी पत्नी को लात मारी कि वह बच्चे को संभालती क्यों नहीं। यह क्या हुआ उसके लात मारने से मटका टूट गया। सारा सत्तू उसके ऊपर बिखर गया। तब उसका स्वप्न टूट गया और अपने दुर्भाग्य पर वह रोने लगा। प्रलाप करने लगा। अब तो कुछ नहीं हो सकता था सिवा पश्चाताप के। उसकी सारी जमा पूँजी नष्ट हो गई थी। उसके पास अब कुछ भी नहीं बचा था।
यह कहानी केवल उस दिवास्वप्न देखने वाले युवक की नहीं हम सबकी गाथा है जो मात्र स्वप्नों की दुनिया में खोए रहते हैं और परिश्रम नहीं करना चाहते। जब कुछ लुट जाता है तब जागते हैं और प्रलाप करते हैं। उस समय अपने भाग्य सहित सबको जीभर कर कोसते हैं।
सपने देखना बहुत आवश्यक है। यदि हम सपने नहीं देखते तो अपने जीवन में उन्नति नहीं कर सकते। सपने देखकर यथोचित प्रयास करके हम उन्हें पूरा कर सकते हैं।
विश्व में जितनी उन्नति हुई है, जितने अविष्कार हुए हैं वे सभी किसी-न-किसी के सपनों का ही तो फल है। आकाश में उड़ना, सागर का सीना चीरकर मोती निकाल लाना, ऊँचे पर्वतों पर चढ़ाई करना आदि सभी ही तो सपनों का प्रतिफल हैं।
कई बार हम ऐसे सपने देखते हैं जो हमें भविष्य का संकेत देते हैं। वे हमारे जीवन की दिशा व दशा बदल देते हैं। हमें सफलता की ऊँचाइयों पर ले जाते हैं। ऐसे सपनों को व्यर्थ मानकर कूड़े में नहीं फैंकना चाहिए।
इस प्रकार सपने सितारों की तरह होते हैं उन्हें हम कदापि छू नहीं सकते। वे हमें हमारे भविष्य की ओर अग्रसर करते हैं अर्थात हमारा मार्गदर्शन करते हैं।
मंगलवार, 14 अप्रैल 2015
स्वप्न देखिए दिवास्वप्न नहीं
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