रविवार, 24 सितंबर 2017

घर जैसा कोई नहीं

मनुष्य चाहे संसार के किसी भी कोने में घूम ले, मौज-मस्ती कर ले, स्वर्ग जैसे आनन्द भोग ले पर सुख उसे अपने घर में आकर ही मिलता है। घर से दूर यदि चले जाओ तो थोड़े दिनों के बाद ही अपने घर की याद सताने लगती है। उस समय मन करता है कि उड़कर अपने आशियाने (घर) में वापिस पहुँच जाएँ।
         इसका कारण है सृष्टि के रचयिता परमात्मा ने घर को एक धुरी बना दिया है। इसके इर्द-गिर्द हम गोल-गोल घूमते रहते हैं। घर से निकलते हैं तो दफ्तर, स्कूल आदि जाते हैं। समय बीतने पर शाम को या दोपहर को लौटकर वापिस आ जाते हैं। शापिंग के लिए बाजार जाते हैं, शादी-ब्याह में सम्मिलित होते हैं, पार्टी करते हैं, घूमने-फिरने के लिए देश-विदेश कहीं भी जाते हैं फिर लौटकर घर ही आते हैं। कहीं भी जाओ पर ठौर घर ही है।
         घर के सदस्यों में कितना मनमुटाव क्यों न हो, खूब लड़ाई-झगड़े होते हों, जूतम पैजार भी होती हो, चाहे वे एक-दूसरे का चेहरा तक देखना पसंद न करें परन्तु फिर भी घर का मोह ऐसा है जो उन्हें बाँधे रखने में सफल होता है। जहाँ शाम ढली और रात हुई वहाँ मन घर भागने के लिए बेचैन होने लगता है।
         अपना घर चाहे आलीशान महल हो, फ्लैट हो, झोंपड़ी हो या टूटा-फूटा हो यानि कि कैसा भी हो घर तो घर ही होता है। यह हर  मनुष्य के लिए एक विश्राम स्थली होता है। सारे दिन की थकान घर आ आने के बाद गायब होने लगती है।
        यदि घर बनाने का चलन न होता हो शायद हम सभी खानाबदोश लोगों की तरह एक स्थान से दूसरे स्थान पर भटक रहे होते। जहाँ रात होती वहीं जमीन पर सो जाते और प्रातः होते ही फिर घूमन्तुओं की तरह चल पड़ते। तब हमारे पास ये सभी सुख-सुविधाओं के साधन भी न होते जैसे अब हमने अपने घरों में जोड़ रखे हैं। इस युग में हम उस जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकते जहाँ न सुख-सुविधा के साधन थे, न घर जैसी सुरक्षा थी और न ही इतने अच्छे यातायात के ही साधन थे।
           ईश्वर ने हम पर बहुत ही उपकार किया है। मालिक ने जैसे दिन के बाद रात हमारे विश्राम के लिए बनाई है वैसे ही घर बनाने की परिकल्पना ने मनुष्य को आराम करने का एक स्थायी स्थान दिया है। जहाँ आकर वह बिना रोकटोक अपनी मनमर्जी से रह सकता है और जुटाई हुई सुविधाओं का भोग कर सकता है।
       अपने घर आने के बाद जो सुख मनुष्य प्राप्त करता है वह बलख और बुखारे जैसे समृद्ध स्थानों में भी नहीं मिलता। इसी बात को छज्जू भक्त ने इन शब्दों में कहा है-
       जो सुख छज्जू दे चौबारे
        ओ न बलख न बुखारे।
चन्द्र प्रभा सूद
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