सप्तपदी की
कसमें खाने के
बाद आरम्भ किए गए
जीवन में निभाया है सच कितना बोलो?
क्या रख पाए
तुम दोनो ही यहाँ
रिश्तो की मर्यादाएँ
या सोचा है कि इस जीवन में बस तोलो?
मात्र केवल यूँ
अपने स्वार्थो को
हवा देते रहे बिनसोचे
कुछ मिल सका क्या जीवन में अब बोलो?
व्यर्थ अहम
ले डूबेगा तुमको
सोचो समय है जागो
कैसे घोलोगे समरसता जीवन में बोलो?
पूरब पश्चिम
दोनों बन जाओगे
तब कौन लगाएगा
जग में नैया पार तुम्हारी कुछ तो बोलो?
चन्द साँसो की
इस माया नगरी में
मिल हाथ पकड़ कर
कदम-कदम चल थोड़ा साथ निभा लो।
चन्द्र प्रभा सूद
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