अंगूठा चूसने की आदत प्राय: बच्चों में पाई जाती है। बहुत छोटे बच्चे अपने किसी भी पैर या किसी भी हाथ का अगूठा मुँह में डालते हैं। कभी-कभी तो पूरा हाथ भी मुँह में डाल लेते हैं। इसमें कुछ नयापन नहीं है। परन्तु समस्या वहाँ आड़े आती है जब कुछ बच्चों में अंगूठा चूसने की यह आदत बड़े होने पर भी नहीं छूटती। वे बच्चे ऐसा क्यों करते हैं इसके पीछे मनोवैज्ञानिक कारण है।
दुधमुँहे बच्चे जब अंगूठा या कोई अंगुली मुँह में डालकर चटखारे लेते है तो वह आनन्द ही कुछ और होता है। माता-पिता या घर के बड़े चौकने रहते हैं कि बच्चे में यह आदत पक्की न हो जाए। इसलिए वे बार-बार उसके मुँह से अंगूठा या अंगुली निकाल देते हैं। इससे बच्चे में यह आदत पनपती ही नहीं है।
परन्तु जब घर के लोग किसी भी कारणवश बच्चे की ओर ध्यान नहीं दे पाते तो बच्चे में यह आदत पक्की होने लगती है। धीरे-धीरे वह अंगूठा या अंगुली चूसने का आदी हो जाता है।
इसका कारण जो समझ में आता है वह यही है कि बच्चे को जब भूख लगती है तब वह अंगूठा मुँह में डालता है। इससे उसे कुछ समर के लिए तसल्ली हो जाती है। दूसरा कारण यह प्रतीत होता है कि बच्चे को जब डर लगता है तो भी वह ऐसा करता है। इसके अतिरिक्त कुछ बच्चों को सोते समय किसी सहारे की आवश्यकता जब महसूस होती है तब वे मुँह में अंगूठा डाल लेते हैं और सो जाते हैं।
सबसे बड़ा व महत्त्वपूर्ण कारण मुझे लगता है बच्चे का अकेलापन। घर के लोग जब बच्चे की ओर ले लापरवाह होते है तब वह अपने अकेलेपन को दूर करने के लिए इस बुरी आदत का सहारा लेता है।
ये बच्चे बहुत बड़ी आयु हो जाने पर भी इस आदत से मुक्ति पाने में सफल नहीं हो पाते। हाँ, तब किसी दूसरे के सामने होने पर उन्हें इस बात से शर्म वे महसूस करते हैं कि कोई देखेगा तो क्या कहेगा? उस समय वे लुक-छिपकर अंगूठा चूसते हैं पर आदत को छोड़ नहीं पाते।
ऐसा तो हो नहीं सकता कि उनकी इस लुका-छुपी की आदत का किसी को पता न चले। जब घर के या बाहर के लोग उनका मजाक उड़ाते हैं तो उन्हें शर्मिन्दगी का सामना करना पड़ता है। स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों का तो दूसरे बच्चे हर समय मजाक बनाते हैं चाहे वे स्कूल में हों या खेल के मैदान में हों।
यह तो चर्चा हुई बच्चों की समस्या की। अब हमें विचार यह करना है कि इस समस्या से इन मासूमों को छुटकारा कैसे दिलाया जाए?
माता-पिता को बहुत ही समझदारी का परिचय देना होता है बच्चों को इस आदत से बचाकर निकालने के लिए। उन्हें सबसे पहले अपने बच्चे के अकेलेपन को दूर करने के लिए प्रयत्न करना होगा। बच्चों को यह आश्वासन देना होगा कि उनके माता-पिता उनके साथ हैं वे अकेले नहीं हैं। कैसी भी परिस्थिति हो उन्हें हमेशा इस बात का ध्यान रखना है कि अपने वे बच्चे को बेसहारेपन या अकेलेपन का दश नहीं देंगे। जब बच्चे का अकेलापन दूर होगा तो वह इस आदत से मुक्त हो सकेगा।
बच्चा का जब माता-पिता के साथ अपनापा जुड़ता है तो वह उनके करीब हो जाता है। उनके साथ जब वह अपनी परेशानियों को बाँटने लगता है तब उसका डर और अकेलापन सब गायब हो जाते हैं। उस समय वह भी स्वयं को दूसरे बच्चों की तरह सौभाग्यशाली समझने लगता है।
अपने बच्चों के चहुँमुखी विकास के लिए उनके मित्र बनिए, हौव्वा नहीं। तभी वे भी अपनी बुरी आदतों से मुक्त होकर सामान्य जीवन जी सकेंगे।
चन्द्र प्रभा सूद
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गुरुवार, 19 नवंबर 2015
बच्चे का अंगूठा चूसना
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