शुक्रवार, 20 नवंबर 2015

नौकरों के हाथ में बच्चे

अकेले घर में नौकरों के हाथों में अपने दुलारे जिगर के टुकड़े को सौंपने से पहले उनके विषय में इतनी जानकारी अवश्य एकत्रित कर लीजिए कि वे इस दायित्व के योग्य हैं भी या नहीं। जब आप पूर्णरूपेण संतुष्ट हो जाएँ तभी आप अपने नौनिहालों की देखरेख का जिम्मा उन्हें सौंपे।
          जिन परिवारों में दादा-दादी साथ में रहते हैं वहाँ ऐसी समस्याओं से झूझना नहीं पड़ता बशर्ते कि बच्चे बहुत ही स्वार्थी न हों और बजुर्गों से दुर्व्यवहार करने वाले न हों। बड़ों के रहते बच्चों की किसी प्रकार की समस्या और चिन्ता नहीं रहती। वे भी भावनात्मक रूप से सुरक्षित रहते हैं।
          आजकल एकल परिवारों के चलते बच्चों को 'कहाँ छोड़ें' वाली समस्या विकट होती जा रही है क्योंकि माता-पिता दोनों ही नौकरी अथवा व्यवसाय करते हैं। वे दोनों सवेरे से शाम तक जब घर से दूर रहते हैं तब सारा दिन छोटे बच्चों को सम्हालने, उनकी देखभाल करने वाला कोई तो घर पर होना चाहिए।
          यद्यपि कुछ कम्पनियाँ छोटे बच्चों की जिम्मेदारी लेते हुए उनके लिए अपने यहाँ क्रच का प्रबंध करती हैं ताकि माता-पिता निश्चिंत होकर अपना कार्य कर सकें। इस प्रकार कम्पनी का काम भी सुचारू रूप से चलता रहता है और माता-पिता भी बच्चो की चिन्ता से मुक्त हो जाते हैं। परन्तु सभी लोग ऐसे भाग्यशाली नहीं होते कि उन्हें इस प्रकार की सुविधाएँ मिल सकें। इसलिए उन्हें घरेलू नौकरों पर निर्भर रहना पड़ता है और चिन्तित भी।
          आए दिन समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, टीवी आदि सोशल मीडिया पर बच्चों के साथ घरेलू नौकरों के दुर्व्यवार की घटनाएँ प्रकाश में आती ही रहती हैं। जिनकी सुरक्षा का दायित्व नौकरों को सौंपा जाता है कभी-कभी वही फिरौती के लिए बच्चों  को अगवा तक कर लेते हैं।
         बच्चों को ठीक से न खिलाना, मारना-पीटना, डराना-धमकाना तो आम घटनाएँ हैं। ऐसे नौकरों के पास बच्चे बारबार न रहने की जिद करते हैं पर माता-पिता को डर के कारण उनके कारनामे खुलकर नहीं बता पाते।
           कुछ नौकर बच्चों को नशीली दवाइयाँ खिलाकर सुला देते हैं। इसलिए बच्चे सुस्त रहते हैं पर माता-पिता समझ नहीं पाते कि अच्छा खाने-पीने के बाद भी उनकी ऐसी स्थिति क्यों होती जा रही है। कई बार अपने साथियों के साथ ऐय्याशी करते हुए नौर या नौकरानियाँ पकड़े भी गए हैं।
          इससे भी बकर एक घटना सुनने में आई थी कि बच्चे के माता-पिता के आफिस जाने के बाद नौकरानी उस छोटे बच्चे को लेकर भीख माँगने चली जाती थी। एक दिन उसकी माँ जल्दी घर आ गई तो उसे नौकरानी की करतूत का पता चला और फिर उसकी रिपोर्ट कराई गई।
          भौतिकावादी इस युग में न तो लोगों को ईश्वर का डर है और न ही उनका जमीर उन्हें कचोटता है। बस उनके आराम और स्वार्थो  की पूर्ति होती रहनी चाहिए। आज समाज में घटते जीवन मूल्यों के चलते नौकरों के चारित्रिक हनन को हम नहीं नकार सकते।
         आजकल घर में नौकर रखते समय पहले पुलिस वेरिफिकेशन करवाना कानूनी रूप से भी बहुत आवश्यक हो गया है। हालाँकि यह तो कोई गारंटी नहीं कि ऐसा करने पर कुछ अनहोनी नहीं होगी परन्तु घर और बच्चों की सुरक्षा के लिए यह करवा लेना चाहिए। पुलिस के पास उनका फोटो तथा उनके घर-परिवार की जानकारी हो जाने से वे भी गलत काम करने से घबराते हैं।
           माता-पिता को चाहिए कि आधुनिक तकनीक का सहारा लें। दिन में थोड़े-थोड़े समय पश्चात घर पर फोन करके बच्चों की जानकारी लेते रहें। हो सके तो घर पर सीसीटीवी कैमरे लगवाएँ फिर कार्यालय में बैठे हुए ही अपने घर और बच्चों पर कड़ी नजर रखें। सबकी सुरक्षा के लिए जब तक बहुत मजबूरी न हो अपने माता-पिता व घर को छोड़कर एक ही शहर में रहते हुए अन्यत्र जाने की न सोचें। यदि थोड़ा समझौता करना पड़े तो हिचकिचाएँ नहीं।
चन्द्र प्रभा सूद
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