बच्चे में हकलाने की आदत होने का अर्थ यह है कि उसमें आत्मविश्वास की कमी है। उसे माता-पिता और परिवार के प्यार की बहुत आवश्यकता है।
बच्चे में पाई जाने वाली इस आदत के कारणों पर यदि विचार किया जाए तो यही समझ में आता है कि जिन बच्चों के माता-पिता किसी भी कारण से आपस में लड़ते-झगड़ते रहते हैं, गाली-गलौच करते रहते हैं, वहाँ बच्चे सहमे से रहते हैं। माता-पिता जब अपना आक्रोश उन मासूमों पर निकालते हैं तब वे किसी गलती के न किए जाने पर भी मार या डाँट खाने के डर के कारण हकलाने लगते हैं।
कुछ घरों में बच्चों पर अनावश्यक रूप से कड़ा अनुशासन थोपा जाता है। अब बच्चे हैं तो यदाकदा शरारत भी करेंगे। गलती तो किसी से भी हो सकती है। बच्चे तो फिर बच्चे हैं। उनसे गलती हो जाना भी स्वाभाविक है। सबसे बड़ी बात यह है कि बच्चे झूठ नहीं बोलते। बड़े होने पर तो वे भी दुनिया के सब छल-फरेब शीघ्र ही सीख जाते हैं। गलती के हो जाने पर उनसे माता-पिता या अध्यापक जब सख्ती से पूछते हैं तो बच्चे डाँट अथवा मार के डर से इतना अधिक घबरा जाते हैं कि जवाब देने के बजाय वे हकलाने लगते हैं।
पहले तो सबको यही लगता है कि बच्चे लाड के कारण ऐसे अटककर बोल रहे हैं। परन्तु जब इन बच्चों को इस तरह हकलाकर बोलने की आदत पड़ जाती है उस समय असली समस्याओं का आरम्भ होता है। सबसे बड़ी समस्या तब आती है जब थोड़ा-सा बड़ा होने पर बच्चों में हीन भावना घर करने लगती है।
उन्हें समझ में आने लगता है कि वे आम बच्चों की तरह नार्मल नहीं हैं वे उनकी तरह फर्राटे से नहीं बोल सकते। वे रुक-रुककर या अटकते हुए बोलते हैं। फिर वे दूसरों के सामने बोलने में कतराने लगते हैं। जब वे बोलने हैं तब साथी उनका मजाक उड़ाते हैं और नाम रखते हैं।
इसलिए धीरे-धीरे ऐसे बच्चा सदा एकान्त में ही रहना पसन्द करने लगते हैं। वे दोस्तों के साथ खेलने नहीं जाना चाहते। पार्टी आदि में भी जाने से कतराते हैं। बस उन्हें यही लगता है कि वे बेचारे बन गये हैं। जहाँ जाएँगे लोग उनकी खिल्ली ही उड़ाएँगे अथवा उन पर तरस खाएँगे और बेचारा समझेंगे।
यदि अपने माता-पिता इन्हें बोझ की तरह समझेंगे और दूसरों के सामने उन्हें ले जाने में या अपनी सन्तान के रूप में उनका परिचय करवाने में कतराएँगे तब फिर कौन इनका हाथ थामकर इन्हें जीवन में संघर्ष करने का मार्ग बताएगा? कौन इन्हें जीवन की परीक्षा में पास कराएगा?
कई ऐसे बच्चे हैं जो हकलाने की अपनी इस कमजोरी से एक सच्चे योद्धा की तरह लड़कर जीत जाते हैं। वे जीतकर अपने जीवन में आगे बढ़ जाते हैं। उनकी इस सफलता में उनके माता-पिता का पूरा सहयोग रहता है। वे सदा ही उनकी पीठ थपथपाकर उन्हें प्रेरित करने का सफल प्रयास करते हैं। उनके कारण ही ये बच्चे स्वयं में आत्मविश्वास जगा पाते हैं। इनका इलाज स्पीच थैरेपी क द्वरा कराया जा सकता है। इससे उनमें सुधार आ सकता है।
इन बच्चों पर तरस खाने की अथवा सहानुभूति प्रदर्शित करने की आवश्यकता नहीं होती। इन्हें बस आपका प्यार और आशीर्वाद चाहिए जिस पर सदा से उनका हक है।
चन्द्र प्रभा सूद
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मंगलवार, 17 नवंबर 2015
बच्चों में हकलाने की आदत
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