बच्चे का डर जाना एक स्वाभाविक प्रक्रिया है। कहते हैं पैदा होने के बाद कुछ समय तक उसे पिछले जन्मों की अच्छी-बुरी बातें याद आती रहती हैं। इसी कारण वह बिना बात के कभी हंसने लगता है तो कभी रोने। कभी-कभी डर के मारे चौंक जाता है और रो पड़ता है।
सुनने में शायद आप सबको अटपटा लगेगा पर सच्चाई यही है कि प्रायः माताएँ बचपन से ही अपने मासूमों को अनजाने में घुट्टी में डर पिला देती हैं। बचपन का वह डर उनके हृदय में ऐसा घर कर जाता है कि आयुपर्यन्त वह किसी-न-किसी बात पर डरता रहता है।
छोटा बच्चा जब थोड़ी-थोड़ी बात समझने लगता है और बोलने लगता है तब उसकी मासूम शरारतें सबका ही मन मोह लेती हैं। प्रायः बच्चे रात को देर तक खेलते रहते हैं और जागते रहते हैं। जब तक वे नहीं सोते तब तक किसी और को भी नहीं सोने देते। उन्हें सुलाने के लिए माता को अनेक यत्न करने पड़ते हैं। कभी वह उसे लोरी सुनाती है तो कभी कहानी। कभी लाइट बंद करके उसे सोने के लिए प्रेरित किया जाता है। जब उसे सुलाने के सारे प्रयत्न असफल हो जाते हैं तब माता उसे किसी भी अनजान व्यक्ति अथवा किसी वस्तु का डर दिखाकर सुलाने का प्रयास करती है।
यहीं से डर का बीज उस नासमझ बच्चे के मन में गहरे बैठ जाता है। उसे ऐसा लगने लगता है कि यदि वह नहीं सोएगा तो उसका शायद अनिष्ट हो जाएगा या वाकई कोई उसे पकड़कर ले जाएगा।
इसी क्रम में वह बारबार किसी-न-किसी से डरता रहता है। अपनी गलती के लिए अपने बड़ों से अथवा अध्यापकों से डरना तो उचित है। उसके लिए उसको पछताना चाहिए और उनसे माफी माँगकर भविष्य में उसे न दोहराने का वचन भी देना चाहिए। ऐसा करना उस बच्चे के सर्वांगीण विकास के लिए बहुत ही आवश्यक है। यह गुण हर बच्चे को अपनाना चाहिए। माता-पिता को चाहिए कि वे अपने बच्चे को इस कार्य के लिए प्रोत्साहित करें।
बच्चे प्रायः अनजान व्यक्ति को देखकर डरते हैं क्योंकि उनके मन में इस बात का भय रहता है कि शायद वह उसे उठाकर ले जाएगा और मार डालेगा। इसलिए शीघ्र ही उसका हाथ छुड़ाकर भागने का प्रयास करते हैं।
बच्चे कुत्ते, बिल्ली, बन्दर आदि जानवरों से डरते हैं। उन्हें डर लगता है कि यदि वे काट लेंगे तो इंजेक्शन लगवाने पड़ जाएँगे और इंजेक्शन से बच्चे तो क्या बड़े लोग भी डरते हैं। इसलिए वे उनसे बचकर निकलते हैं। बच्चे काक्रोच और चूहे आदि जीवों से भी डरते हैं। सड़क पर चलने वाले गाय, भैंस, गधा, घोड़ा, हाथी आदि पशु भी किसी को टक्कर मारकर नुकसान पहुँचा सकते हैं इसलिए उनसे बचने की हिदायत बच्चों को दी जाती है।
सड़क पर चलने वाले वाहनों से बच्चों को डराने के स्थान पर उन्हें चलते समय उनसे सावधानी बरतने का परामर्श देना चाहिए। यदि वे लापरवाही से सड़क पर चलेंगे तो उन्हें चोट लग सकती है या जान भी जा सकती है।
बच्चे के मन में यदि बहुत अधिक डर समा जाए तो बात-बात पर चौंकने लगता है। जरा-सी डाँट पड़ने का अंदेशा हो तो वह काँपने लगता है। कभी-कभी कोई बच्चा डर के डिप्रेशन में चला जाता है। नित्य प्रति माता-पिता की आपस में मार-कुटाई होना, गाली-गलौच करना या चीख-चिल्लाहट भी बच्चे के डर का कारण बन जाते हैं। बच्चों के सामने ऐसे झगड़ों से बचना चाहिए।
माता-पिता को ध्यान रखना चाहिए कि जहाँ तक हो सके बच्चे के मन में किसी भी तरह का डर घर न कर पाए इसका यत्न करना चाहिए। बच्चे को प्यार से अपने पास बिठाकर किसी भी विषय के हर पहलू के बारे में समझाना चाहिए। बच्चे को अच्छे और बुरे दोनों ही पक्षों की जानकारी दे देनी चाहिए। फिर उस बच्चे के विवेक पर इस बात को छोड़ देना चाहिए कि वह किसका चुनाव करता है।
चन्द्र प्रभा सूद
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रविवार, 15 नवंबर 2015
बच्चे में डर
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