बच्चे बहुत ही जिज्ञासु प्रवृत्ति के होते हैं। वे बहुत जल्दी ही सब कुछ जान और समझ लेना चाहते हैं। अपने ज्ञान को बढ़ाने के लिए उन सबसे प्रश्न पूछते रहते हैं जो उनके सम्पर्क में आते हैं। बहुधा ऐसा होता है कि उनके प्रश्नों के उत्तर बड़ों के पास भी नहीं होते।
बच्चों के मन में अहम का प्रश्न नहीं होता। वे अपने भोलेपन से सबको मोह लेते हैं। उनके पूछे जाने वाले छोटे-छोटे तार्किक प्रश्न कभी-कभी बड़ों को भी सोचने के लिए विवश कर देते हैं। प्राय: छोटे बच्चों को क्या हुआ, क्यों हुआ, कब हुआ और कैसे हुआ की गुत्थी सुलझानी होती है। इसलिए सारा समय वे प्रश्न करके सबको परेशान कर देते हैं।
बहुधा उन्हें डाँटकर चुप करवा दिया जाता है। बड़े लोगों को जीवन के पचासियों झगड़े सुलझाने होते हैं। उन्हें घर-गृहस्थी और कार्यालय के सभी कार्य करने होते हैं। इसलिए वे उनके ढेरों प्रश्नों से ऊब जाते हैं और बच्चों को डपट देते हैं। इस डाँट-डपट का वे कभी बुरा नहीं मानते। कुछ देर शान्त बैठने के बाद फिर अपनी भोली-सी सूरत बनाए अपने ज्ञानवृद्धि के मिशन पर चल पड़ते हैं।
जब फुर्सत के पल होते हैं तो बच्चों की बातों का उत्तर तसल्ली से दिया जाता है। परन्तु जब वे बाल की खाल निकालने लगते हैं तब समयाभाव के कारण उनके प्रश्नो की बौछार सहनशक्ति की सीमा से परे हो जाती है।
मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि बच्चों के सभी प्रश्नों का उत्तर सहनशीलता पूर्वक देना चाहिए। जो भी उनकी स्वाभाविक ज्ञिज्ञासाएँ हैं उनका शमन होना ही चाहिए। इससे बच्चों की बुद्धि प्रखर होती है और वे मेधावी बनते हैं। जीवन के किसी भी क्षेत्र में वे सफलता की सीढ़ियाँ चढ़ते हैं। सभी उन उनकी और उनके माता-पिता की प्रशंसा करते नहीं अघाते।
इसके विपरीत जिन बच्चों के ज्ञानार्जन की समस्याओं का समाधान नहीं होता उनकी बुद्धि कुँठित हो जाती है वे जीवन की रेस में पिछड़ जाते हैं। चाहकर भी ऐसे बच्चे उन मेधावी साथियों के बराबर पहुँचकर उन्हें छू नहीं पाते। इस बात का दुख उन्हें जीवनपर्यन्त रहता है।
इक्कीसवीं सदी में आज के बच्चे बहुत समझदार हैं। उन्हें आप कभी मूर्ख नहीं बना सकते। न ही उनके प्रश्नों के आप उल्टे-सीधे उत्तर दे सकते हैं। इसका कारण यह है कि जब कभी उन्हें अपना सही उत्तर मिल जाएगा तो वे आपको यह अहसास कराने से नहीं चूकेंगे कि आप गलत जवाब देते हैं। उनके अनुसार आपको कुछ भी नहीं आता।
यदि बच्चे के मन में यह बात घर कर गई कि उनके माता-पिता कुछ नहीं जानते तो वे बात-बात में दोहराते रहेंगे कि रहने दो आपको तो कुछ भी नही पता। किसी के भी सामने उन्हें यह कहने में जरा-सी झिझक महसूस नहीं होगी। जिसे सुनना कोई भी पसंद नहीं करेगा कि उनके बच्चे उन्हें मूर्ख समझें।
बच्चों के सर्वांगीण विकास के लिए यह आवश्यक है कि उनके मन में उठने वाली सभी जिज्ञासाओं का समाधान किया जाए। यदि उनके किसी प्रश्न का उत्तर नहीं भी समझ में नहीं आता तो उन्हें प्यार से समझाइए। स्वयं उस विषय की जानकारी एकत्र करके उन्हें ज्ञान से समृद्ध कीजिए। इस प्रकार उनको मानसिक संतोष देने का प्रयास करना चाहिए।
चन्द्र प्रभा सूद
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सोमवार, 16 नवंबर 2015
बच्चों की जिज्ञासु प्रवृत्ति
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