गुरुवार, 17 दिसंबर 2015

योगियों के लिए रात

गीता के दूसरे अध्याय में भगवान कृष्ण कहते हैं-
       या निशा  सर्वभूतानां  तस्यां  जागर्ति संयमी।
       यस्यां जाग्रति भूतानि सा निशा पश्यतो मुने:॥
अर्थात सब प्राणियों के लिए जो रात्रि के समान है, उसमें संयमी जागृत होता है। जिन विषयों में जीव जागृत होते हैं, वह मुनि के लिए रात्रि के समान हैं।
         भगवान कृष्ण हमें समझाने का प्रयत्न कर रहे हैं कि रात्रि का समय योगी और भोगी सबके लिए होता है। भोगी अपने भोगों में व्यस्त रहते हैं और उस समय को व्यर्थ गंवाते हैं। योगी अपने उस समय का सदुपयोग करते हैं। वे ईश्वर की उपासना करते हुए अपना परलोक सुधारते हैं।
          मनुष्य रात्रि में अनेकानेक व्यवहारों में संलग्न रहते हैं। कुछ लोग इस समय अपनी कामेच्छाओं की पूर्ति करते हैं। अन्य क्लब, पार्टी अथवा पब आदि में व्यस्त रहते हैं। चोर-डकैत अपने कुत्सित कार्यो को अंजाम देते रहते हैं। स्मगलर आदि अपने माल को इधर-उधर करने की जुगत भिड़ाते रहते है। कुछ लोग अपनी नाइट ड्यूटी करते हैं। कहने का तात्पर्य है कि दुनिया में सभी प्रकार के स्याह-सफेद कारोबार रात के समय में ही किए जाते हैं।
       योगी जनों की इन सांसारिक व्योपारों में कोई रुचि नहीं होती। उनका मन केवल हरि भजन में रमता है। रात्रि के उस एकान्त में जब प्राय: लोग सो जाते हैं, वे उठकर अपनी साधना करते हैं, प्रभु भजन करते हैं। तब शोर-शराबा नहीं होता और वातावरण शान्त होता है। उस मालिक के ध्यान में मन खूब रमता है, जिसने इस ससार की रचना करके हम सब जीवों पर बहुत उपकार किया है।
         संसार में रहने वाले सभी जीवों की वृत्ति ईश्वर की साधना करने में नहीं लग पाती। वे दुनिया की चकाचौंध में खोए रहते हैं। दुनियावी सुखोपभोग में उन्हें आनन्द आता है। वे समझते हैं कि ईश्वर की उपासना करने के लिए उनका समय अभी नहीं आया है। जब वृद्धावस्था आएगी तब हरि भजन कर लेंगे। वे भूल जाते हैं कि यदि बचपन से प्रभु के ध्यान में मन नहीं लगाया तो बुढ़ापे में जब शरीर अशक्त हो जाएगा व अस्वस्थता के कारण मन भटकने लगेगा तब तो उस मालिक का स्मरण नहीं कर पाएँगे।
          सारी आयु संसार के ताने-बाने में उलझे हुए कब यहाँ से विदा लेने का समय आ जाएगा, पता ही नहीं चल पाएगा। अन्तकाल में पश्चाताप करने की मोहलत भी वह परम न्यायकारी नहीं देता। उसका विधान बहुत कड़ा और पक्षपात रहित है। उसमें दया की कोई गुँजाइश नहीं होती। सीधा और सरल-सा उसका गणित है कि जैसे कर्म करोगे वैसा ही फल मिलेगा।
           वह समय-समय पर चेतावनी देता रहता है। यह हम पर निर्भर करता है कि हम उसके अनुसार चल करके लौकिक एवं पारलौकिक सुख की प्राप्ति करते हैं अथवा उसे अनसुना करके केवल इहलौकिक ऐश्वर्यों को भोगते हैं। परलोक की चिन्ता को बिसरा देते हैं।
         ईश्वर हमें अपने जीवन को सुधारने के लिए बहुत अवसर देता है। बारबार वह दुख और कष्ट रूपी बाधाएँ हमारे रास्ते में खड़ी करता है, ताकि हम उसे याद करते रहें। हम हैं कि बस जहाँ सुख आया उससे मुँह मोड़ लेते हैं। अहंकार से भरकर हम आत्मप्रशंसा करते नहीं अघाते।
         इन सबका विश्लेषण करते हुए ही संयमी जन सदा ईश्वर की उन्मुख होते हैं। दुनिया के सभी कार्य-कलाप उसी को समर्पित करते हुए वे उस मालिक सदा याद करते हैं। इसीलिए जन साधारण का रात्रि काल उनके लिए विशेष होता है। उसका सदुपयोग वे जगत्पिता का ध्यान करते हुए करते हैं।
चन्द्र प्रभा सूद
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