बच्चों को जहाँ तक हो सके बचपन से ही स्वावलम्बी (independent) बनाने का यत्न कीजिए। ऐसा करने से छोटे बच्चों में आत्मविश्वास बढ़ता है। तब उन्हें ऐसा लगता है कि वे अब बड़े हो गए हैं। तभी माता-पिता उन पर विश्वास करने लग गए हैं।
बच्चे हर काम को स्वयं करना चाहते हैं। बहुत छोटे बच्चे दूध पीते समय बोतल को स्वय पकड़ना चाहते हैं। उन्हें खाना होता है तो चम्मच अपने हाथ से पकड़ने की जिद करते हैं, चाहे वे खा पाएँ या बिखेरते रहें। सबके बीच में बैठा हुआ बच्चा यही कोशिश करता है कि अपनी प्लेट में खुद ही खाना खाए। जो भी सब्जी वगैरह बड़ों की प्लेट में हैं वे सब उनकी प्लेट में भी होनी चहिए।
बच्चे जब थोड़े और बड़े होते हैं तब बड़ों की देखा-देखी वे भी स्वयं ही अपना खाना परोसना चाहते हैं। हर बात पर उनका यही उत्तर होता है कि वे अब बड़े हो गए हैं। उनके इस कथन का मान रखते हुए थोड़े-थोड़े काम सौंपिए। सच मानिए बच्चे बहुत खुश होते हैं जब उन्हें यह अहसास होता है कि वे बड़े हो गए हैं, इसलिए उन्हें काम करने के लिए कहा गया है।
पापा घर से दफ्तर जाते है या दफ्तर से वापिस घर आते हैं तो अपनी सामर्थ्य के अनुसार बच्चा भाग-भागकर पापा की सेवा में हाजिर हो जाता है। वह उनके कहे कामों को करके और उनसे शाबाशी पाकर स्वयं को गौरवान्वित महसूस करता है।
इसी तरह अपनी माँ को घर का काम करते देख बच्चा भागकर हाथ बटाने चला आता है। कभी वह डस्टिंग करने लगता है तो कभी झाड़ू उठा लेता है। कभी-कभी तो वह रोटी बनाने तक की जिद कर बैठता है। वह बात अलग है कि ऐसा करते समय काम कुछ अधिक फैल जाता है।
इसी तरह घर में रहने वाले पालतू जीव को खिलाना, उसके साथ खेलना और उसे घूमाना भी वह पंसद करता है। पौधो को पानी देने में भी उसे मजा आता है। उसका खेल भी हो जाता है और काम भी।
बच्चे को प्रोत्साहित करते हुए उसे काम करने की आदत डालिए। हो सकता है कि निकट भविष्य में विदेशों की तरह यहाँ भी काम करने वाले नहीं मिलें। उस समय बच्चे बिना परेशान हुए मिल-जुलकर कार्य कर सकेंगे।
बच्चा जब चलना शुरू करता है और बात को समझने लगता है तभी से उसे स्वावलम्बी ब़नाने की ट्रेनिंग देनी पड़ती है। छोटा-छोटा सामान रसोई में रखकर आना, खिलौने सम्हालने में मदद करना, अपने जूते व कपड़े पहनना, कचरा इधर-उधर न फैंकर कूड़ेदान में डालकर आना आदि कार्य करने के लिए बच्चे को सिखाया जाना चाहिए।
जब और बड़ा हो तो उसकी आयु के अनुसार घर में कार्य दिए जाएँ। बाजार से दूध, ब्रेड, आइसक्रीम या और जरूरत का छोटा-मोटा सामान लाने के लिए सिखाया जाए। एकाध बार यदि कोई गलती हो जाए तो उसे डाँटने के बजाय प्यार से समझाएँ ताकि उसका उत्साह बना रहे। उसे यह कभी नहीं लगना चाहिए कि उसके हर काम में मीनमेख निकालकर उसे लताड़ा जाता है। दो-चार बार ऐसा हो जाने पर उसका आत्मविश्वास डगमगा जाएगा।
ज्यो-ज्यों बच्चे बड़े होते हैं त्यों-त्यों वे स्वावलम्बी बनते जाते हैं। उन्हें इतनी ट्रेनिंग अवश्य दी जानी चाहिए कि वे अपना पेट भरने लायक कुछ भी बना सकें। ऐसा करने पर उनके भूखे रहने की चिन्ता नहीं रहती और माता-पिता भी निश्चिन्त होकर अपने कार्य कर पाते हैं।
माता-पिता का यह दायित्व बनता है कि बच्चों को अनावश्यक प्रोटेक्ट न करके उन्हें बचपन से ही स्वावलम्बी बनाएँ। उन्हें सही-गलत की शिक्षा भी दें जिससे बच्चे अपने भले-बुरे की पहचान कर सकें और अपने लिए फैसले लेने की सामर्थ्य उनमें आ सके।
चन्द्र प्रभा सूद
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मंगलवार, 1 दिसंबर 2015
बच्चों को स्वावलंबी बनाएँ
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