बाल हठ सबके लिए परेशानी का कारण होता है। बच्चे प्राय: जिद करते हैं। यदि उनकी जिद को पूरा न किया जाए तो वे फर्श पर लेट जाएँगे, चीखे-चिल्लाएँगे, तोड़-फोड़ करेंगे और घर में खूब शोर मचाएँगे। उनके ऐसा व्यवहार करने के उपरान्त यदि माता-पिता उनके हठ को मान लेते हैं तो समझ लीजिए कि बच्चा सौ प्रतिशत हठी बन जाएगा।
इसके विपरीत यदि उसके ऐसे व्यवहार के बदले उसे थोड़ी देर के लिए उसी हालत में अकेला छोड़ दिया जाए तो उसे समझ आ जाएगा कि उसकी दाल नहीं गलने वाली। तब वह थक-हारकर स्वयं चुप हो जाएगा और माता-पिता को मनाने का यत्न करेगा।
यदि बच्चा हठ करने लगे तब उसे प्यार से समझाइए अथवा कोई मजबूरी हो तो बताइए, वह अवश्य मान जाएगा। ऐसा नहीं हो सकता कि वह फिर से कोई ऐसी माँग आपके सामने रखेगा कि आप इन्कार कर दें।
आदर्श स्थिति यही है कि बच्चे के कुछ माँगने से पहले उसकी जरूरतों को पूरा कर दिया जाए। एक बात का विशेष ध्यान रखिए कि आप अपने लिए नित नई वस्तुएँ घर में लाएँगे और बच्चे की माँग पूरी नहीं करेंगे तो बच्चा आपको ताना देने से बाज नहीं आएगा। इसलिए बड़ों के लिए सावधानी और संयम दोनों ही बरतना बहुत आवश्यक है।
इतिहास गवाह है कि दुनिया को झुकाने की सामर्थ्य रखने वाले बड़े-बड़े साम्राज्य तक बाल हठ के समक्ष हार जाते हैं। रामायण में एक प्रसंग आया है कि लव और कुश अपनी माता भगवती सीता को बताए बिना हठ ठान लेते हैं कि वे अश्वमेध का घोड़ा पकड़ेंगे। उन्होनें भगवान राम की चतुरंगिनी सेना की परवाह नहीं की और अश्व पकड़ लिया। उस समय की अदम्य शक्तिशाली सारी सेना देखती रह गई।
इसी प्रकार बाल हनुमान जी ने तो भगवान सूर्य को निगल लेने का हठ पूरा किया।
हठी बच्चे किसी को भी अच्छे नहीं लगते। किसी के घर जाने पर उन्हें वह सम्मान और प्यार नहीं मिल पाता जो उन्हें मिलना चाहिए। लोग उन्हें यह कहकर तिरस्कृत करते है कि 'बड़े ही डीठ बच्चे है, मानेंगे नहीं।' यही जब बड़े होते हैं तो उनके माता-पिता स्वयं ही ऐसे बच्चों से डरने लगते हैं। बताइए ऐसी औलाद का क्या लाभ जो हमेशा सिर पर ही सवार रहे।
बच्चों के हठ यानि जिद को यदि हम सकारात्मक कार्यों में जुनून अथवा धुन के रूप में परिवर्तित कर सकें तो वह हमेशा आश्चर्यचकित कर देने वाले कार्य करती है। इस जुनून की बदौलत ज्ञान, विज्ञान, खेल आदि किसी भी क्षेत्र में आशातीत सफलता प्राप्त की जा सकती है। उसका परिणाम हमारे समक्ष वैज्ञानिक चमत्कारों के रूप में हैं। हमारे सभी महापुरुष इसी श्रेणी में रखे जा सकते हैं।
यदि बाल हठ को हम हौव्वा मानकर चलेंगे तो अपने पैर पर स्वयं कुल्हाड़ी मारने का कार्य करेंगे। आतंकवाद ऐसे ही हठी बच्चों की जिद का परिणाम है जिसकी चपेट में आज पूरा विश्व है। सभी इससे छुटकारा पाना चाहते हैं। बच्चों को ऐसे संस्कार देने की महती आवश्यकता है जिससे वे हठी, जिद्दी या डीठ न बनकर समझदार बच्चे बन सकें। अपना तथा अपने माता-पिता का नाम समाज में रौशन कर सकें। लोग उन्हें हिकारत की नजर से न देखें बल्कि उनके उदाहरण दूसरों के सामने रखने के लिए मजबूर हो जाएँ।
माता-पिता का दायित्व है कि बचपन से ही अपने बच्चों को आपसी सामंजस्य से रहने की और सहनशील बनने की शिक्षा दें। इससे वे अपने माता-पिता का मान बनेंगे और अपने लिए समाज में एक स्थान बना सकेंगे। इन्हीं भावी कर्णधारों के कन्धों पर हमारे देश तथा समाज का दायित्व है।
चन्द्र प्रभा सूद
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बुधवार, 9 दिसंबर 2015
बाल हठ
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