बच्चों में आजकल हिंसा की प्रवृत्ति बढ़ती ही जा रही है। वे दिन-प्रतिदिन असहिष्णु बनते जा रहे हैं। पहले बात-बात चाकू-छुरे निकाल लेना तो आम बात थी। आजकल बहुत से बच्चे पिस्तोल व तमंचे भी रखने लगे हैं जिनका प्रयोग वे बिना हिचकिचाहट के शान दिखाते हुए करते हैं।
विदेशों में ऐसी हुई बहुत-सी घटनाओं की चर्चा हमने टी.वी. पर देखी-सुनी है और समाचार पत्रों में पढ़ी है। वहाँ स्कूलों के बच्चों ने अपने साथियों की गोली मारकर हत्या कर दी। कभी-कभी उन्होंने अपने उन अध्यापकों की भी हत्या कर दी जो उनके जीवन के मार्गदर्शक हैं। इन घटनाओ के विषय में जानकर मन में पीड़ा होती है कि आखिर ये बच्चे बनना क्या चाहते हैं? ऐसी घटनाएँ अपने देश भारत में भी यदा-कदा होने लगी हैं। शायद यह पश्चिमी देशों का प्रभाव है।
साथियों को छुरा घोंप देने अथवा गोली मार देने पर उन्हें कौन से स्वर्गिक आनन्द की अनुभूति होती है? इसके पीछे कौन-सी मानसिक विकृति कुलाँचे भरती है? यह कभी समझ में नहीं आ सका।
किसी को जान से मारना हद दर्जे की क्रूरता है। बच्चों में आपसी भाईचारा और प्यार बहुत अधिक होता है। बच्चे जब बड़े हो जाते तब उनमें बड़ों की देखा-देखी स्वार्थ की भावना घर कर जाती है। यह स्वार्थ हिंसक नहीं होता। वह बस अपने और अपनों के इर्द-गिर्द सिमट जाता है। उसमें हिंसा कदापि नहीं होती। नृशंता का यह भाव बच्चों में आ जाना वास्तव में बहुत ही चिन्ता का विषय है।
मुझे इस विषय में एक कारण जो समझ में आ रहा है, वह यह हो सकता है कि बच्चे जितने कार्टून सीरियल टी.वी. पर देखते हैं, उनमें हिंसा की भरमार होती है। विडियो गेम जो उनके लिए बनाए जाते हैं वे भी इन बच्चों में हिंसक वृत्ति को ही जन्म दे रहे हैं।
उनकी भाषा भी सुसंस्कृत नहीं होती। दृश्य और श्रव्य माध्यमों का असर जल्दी होता है। शायद इसीलिए बच्चों को ऐसे हिंसक भाव हम अनजाने में ही परोस रहे हैं। इन सबके अतिरिक्त बच्चो के खिलौने भी उनमें हिंसक वृत्ति को जन्म देते हैं।
शक्तिमान, स्पाइडर मैन आदि सीरियल भी हिंसा को ही पोषित करते हैं और कुछ नहीं। इनके अलावा ऐतिहासिक सीरियल भी कमोबेश हिंसक विचारों को ही बढ़ाते हैं। उन्हे देखकर बच्चो के मन में भी ऐसे ही हीरो बनने की इच्छा बलवती हो जाती है। उन्हें यही लगता है कि कोई जरा-सा भी सिर उठाए तो उसे खत्म कर दिया जाना चाहिए। इस तरह आराम से जिन्दगी जी जा सकती है।
कभी-कभी घर-परिवार अथवा समाज से मिलने वाले तिरस्कार से बच्चे कुँठाग्रस्त होकर भी इस प्रकार हिंसा के मार्ग पर चल पड़ते हैं। यहाँ बदले की भावना प्रमुख कारण होती है। ऐसे बच्चों को प्यार व दुलार की आवश्यकता होती है। उन्हें सही दिशा दिखाना हमारा कर्त्तव्य है।
अपने बच्चों का भविष्य संवारने के लिए इस हिंसक वृत्ति पर लगाम लगाना बहुत आवश्यक है। घर में माता-पिता का कर्त्तव्य बनता है कि हिंसा से भरपूर कार्टून के स्थान पर संस्कार देने वाले कार्यक्रमों को देखने के लिए प्रोत्साहित करें। ऐसे सीरियल कम-से-कम समय के लिए देखने दें। उन्हें बार-बार समझाएँ कि हिंसा से किसी का भला नहीं होता बल्कि नुकसान होता है। मिल-जुलकर भाईचारे से रहने के लिए शिक्षित करें। स्कूल या खेल के लिए जाते समय चौकस रहें कि बच्चे ऐसा कोई हिंसा करने वाला हथियार अपने साथ न ले जाएँ।
विद्यालय में अध्यापकों को भी चाहिए कि जहाँ बच्चे में हिसक प्रवृत्ति पनपती दिखाई दे, वहीं फौरन उनके मिता-पिता तथा स्कूल अथारिटिस को सूचित करें। इससे सम्भवत:इस मनोवृत्ति पर लगाम लगाई जा सके। समय-समय पर कौंसलर के पास ले जाने से बच्चे के मन में आए कुंठा अथवा एग्रेसिव भावों को नियन्त्रित किया जा सके।
ऐसे बच्चों के लिए सरकार ने सुधारगृह बनाए हैं। कई कानून भी बनाए गए हैं। समाजसेवी संस्थाएँ भी अपने स्तर पर इन्हें सुधारने का प्रयास कर रही हैं। इस प्रकार सबके सम्मिलित प्रयास से ही हम अपनी भावी पीढ़ी को इस विनाश से बचा सकते हैं।
चन्द्र प्रभा सूद
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रविवार, 27 दिसंबर 2015
बच्चों मेँ हिंसक प्रवृत्ति
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