छेड़ो तार बटोही
अपनी वीणा के तुम
खो जाना चाहती हूँ अशेष
इसकी मधुर सुरीली झंकार में अब
चाहती हूँ तुम कोई
ऐसा नया गीत गाओ
तन मन झूम उठे बिन हाला के
मेरा मैं मुझमें न रहे ऐसा करो विधान
अपना सारा जीवन
चातक बन राह निहारूँ
मुँदी पलकों में भी पा जाऊँ
छवि तुम्हारी निहार-निहारकर इतराऊँ
देख रहे हो तुम
अरमानों से मुझको
मैं भी तुममें समा जाऊ
तुम मुझको समेट लो अपने अंतस में
मैं और तुम दोनों
हो जाएँगे एक ही
सदा-सदा के लिए
जन्म-मरण के बंधन से मैं भी मुक्त रहूँ।
चन्द्र प्रभा सूद
Twitter : http//tco/86whejp
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें