बजुर्गो को चाहिए कि घर-परिवार में सदा सामंजस्य बनाए रखने के लिए, अपने हठ का परित्याग करें। इससे उनकी हेठी नहीं होगी, बल्कि समय व परिस्थितियों के अनुसार वे अपने लिए सम्मान ही अर्जित करेंगे। यदि यही सोचा जाए कि हर समय बच्चे एडजस्ट करें तो यह उचित नहीं है। घर में बड़ों और बच्चों सभी को इसके लिए मिलकर प्रयास करना चाहिए।
आज इतनी मंहगाई के समय में जब तक दोनों पति-पत्नि मिलकर गृहस्थी की गाड़ी को न चलाएँ, तो परिवार का भरण-पोषण अच्छे ढंग से नहीं हो सकता। यदि दोनों नौकरी या व्यवसाय न करें, तो सब सदस्यों की आवश्यकताओं को पूरा करना सम्भव नहीं हो पाता।
घर में बच्चों की शिक्षा, उन्हें सेटल करना, उनकी शादी करने के साथ-साथ मित्रों व संबंधियों के साथ वरतना भी होता है। घर-परिवार की सभी जरूरतों को पूरा करना, अपने अच्छे-बुरे समय के लिए भी कुछ बचत कर रखना होता है। इसलिए दोनों को ही दिन-रात कठोर परिश्रम करना पड़ता है। इसके अतरिक्त उनके पास कोई चारा नहीं बचता।
बच्चों की इतनी कठोर दिनचर्या के चलते यदि बजुर्ग अपना स्वयं का थोड़ा-सा कार्य कर लें तो इसमें कोई बुराई नहीं है। यदि घर का छोटा-मोटा काम यानि बच्चों को सवेरे स्कूल बस के लिए छोड़कर आना, दोपहर को घर वापिस लेकर आना, उन्हें बना हुआ खाना खिला देना, बच्चों को ड्रेस बदलवाकर स्कूल से मिले गृहकार्य में उनकी सहायता करना, उनसे गपशप लगना, उनके साथ खेलना अथवा बाजार से हल्का-फुल्का सामान लेकर आना- ये सभी कार्य उन्हें प्रसन्नता पूर्वक कर लेने चाहिएँ।
बजुर्गों को यह कदापि नहीं सोचना चाहिए कि इस प्रकार इन कामो को करने से वे घर के नौकर बन जाएँगे। इन सभी कार्यों को करते समय उन्हें अपने अहम का प्रश्न नहीं बनाना चाहिए। उन्हें यही सोचना चाहिए कि घर उनका है और बच्चे भी उन्हीं के है, इसलिए जिम्मेदारी भी उन्हीं है कि बच्चों की देखभाल की जाए। यदि बजुर्ग यह रवैया अपना लें तो घर की बहुत सारी समस्याओं से बचा जा सकता है।
बजुर्गों की सबसे बड़ी समस्या समय बिताने की होती है। शारीरिक क्षमता कम होने के कारण वे चुस्ती से कार्य नहीं कर पाते। इसलिए खाली दिमाग शैतान वाली बात हो जाती है। दिनभर खाली बैठकर वे क्या करें? यह प्रश्न उन्हें कष्ट देता रहता है। कुछ लोग ताश खेलकर और कुछ लोग व्यर्थ टीका-टिप्पणी करके या इधर-उधर निठल्ले बैठकर समय व्यर्थ बरबाद करते रहते हैं।
यदि घर में बैठे हुए बजुर्ग बच्चों की सहायता करने के सकारात्मक कार्य करते हैं, तो उनका कुछ समय भी बीत जाएगा और वे सारा समय बोर नहीं होंगे। इससे बच्चो की मदद भी हो जाएगी। बच्चे भी अपनी ड्यूटी करते समय निश्चिन्त रह सकते हैं। उन्हें पीछे घर की चिन्ता नहीं रहने से वे दोगुने उत्साह से अपने कार्य कर सकते हैं।
इन सबके अतिरिक्त बात-बात पर बजुर्गों को बच्चो की तरह रूठकर नहीं बैठ जाना चाहिए। एक-दो बार तो बच्चे मना लेगे, परन्तु यदि इसे अपनी आदत बना लेंगे तो बच्चे परेशान हो जाएँगे। वे घर-परिवार के कठोर दायित्वों को निभाएँगे या फिर आपके आगे-पीछे फिरते रहेंगे। धीरे-धीरे वे यही मानने लगेंगे कि इनकी तो आदत ही यही बन गई है। आपके इस रवैये से तंग आकर, वे आपकी ओर से लापरवाह बन जाएँगे। तब यह स्थिति सचमुच सहनशक्ति से परे हो जाएगी।
बच्चों पर भार बनने के स्थान पर, विचारों में थोड़ा परिवर्तन करके बजुर्ग अपने खालीपन को अपने पोते-पोतियों के साथ समय बिताकर भर सकते हैं। इससे उन्हें अपना जीवन भार नहीं लगेगा।
बजुर्गों को जीवन के अन्तिम पारी में उत्साह रहित न होकर जीवन्त बनना चाहिए। घर में तालमेल बने रहने से मन में उत्साह रहता है और जिजीविषा बनी रहती है।
चन्द्र प्रभा सूद
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शुक्रवार, 4 दिसंबर 2015
बजुर्ग अपना हठ छोड़ें
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