गुरुवार, 23 जून 2016

जीवन साथी कैसा हो

जीवन साथी कैसा हो? इस विषय में हर मनुष्य की कल्पना अलग-अलग होती है। वह अपने मनोनुकूल साथी को पा लेने का हरसम्भव प्रयास भी करता है। यह निश्चित है कि कुछ गुण ऐसे हैं जो हर व्यक्ति अपने जीवन साथी में चाहता है। उनमें परस्पर विश्वास, आपसी प्रेम, सद्भाव, एक-दूसरे की परवाह आदि गुण प्रमुख हैं।
          जीवन साथी का चुनाव करते समय यह विचार अपने मन में रखना आवश्यक है कि यह साथ उम्रभर का है, पलभर का नहीं। यह जीवनसाथी है कोई खिलौना नहीं जिसे मन भर जाने पर कहीं फैंक दिया जाए और फिर बाजार जाकर नया खरीदकर लाया जा सके। हमारे मनीषियों ने इस साथ को जन्म-जन्म का यानि सात जन्मों का माना है।
           मात्र गोरा रंग अथवा फिल्मी हीरो-हीरोइन जैसे हावभाव देखकर या उसके उन्मुक्त स्वभाव से प्रभावित होकर ऐसा कोई निर्णय नहीं लेना चाहिए जो भविष्य में जी का जंजाल बन जाए। आयुपर्यन्त स्वयं को कोसने की स्थिति बनी रहे और उस एक पल के लिए पश्चाताप करना पड़ जाए जब गलत साथी का चुनाव किया था।
          अपनी शिक्षा, आर्थिक स्थिति और अपनी कदकाठी के अनुरूप ही जीवन साथी का चुनाव करना चाहिए। दोनों में से एक के पास भी इनकी अधिकता अथवा कमी जीवन भर के लिए परेशानी बना सकती है। ऐसी स्थिति में सारी आयु एक-दूसरे को ताने देने में ही गुजर जाती है। इससे मानसिक शान्ति खो जाती है, घर का माहौल बोझिल हो जाता है और फिर जो जग हँसाई होती है सो अलग।
          शारीरिक सौन्दर्य तो चार दिन की चाँदनी होता है परन्तु मनुष्य के गुण हमेशा परखे जाते हैं। रूप सौन्दर्य तो किसी एक्सीडेंट, बिमारी अथवा आयु ढलने पर फीका पड़ जाता है। इसके विपरीत आत्मिक सुन्दरता दिन-प्रतिदिन निखरती जाती है। इसका यह अर्थ कदापि नहीं कि सुन्दर व्यक्ति को अपना हमसफर न बनाया जाए। यदि सुन्दरता के साथ गुणों का समावेश भी साथी में हो तो यह सम्मिलिन सौभाग्यदायी हो जाता है।
         इसका अर्थ है कि भौतिक सौन्दर्य के साथ ही अपने अंतस में सद् गुणों का विकास भी करना चाहिए। तभी सोने पर सुहागे वाली उक्ति चरितार्थ होती है।
          घर-गृहस्थी चलाने के लिए परस्पर सामञ्जस्य होना आवश्यक है। यदि दोनों अपने रंग-रूप, ऊँचे पद, अधिक वेतन आदि के नशे में चूर रहकर अपने साथी की अवहेलना करें तो इसे कोई भी उचित नहीं ठहराएगा।
          घर में एक मटका भी खरीदा जाता है तो ठोक बजाकर परखा जाता है। फिर यहाँ तो सारी आयु के साहचर्य की बात है। अपने जीवन साथी का चुनाव भी अच्छी तरह देख-परखकर करना चाहिए। जब तक तसल्ली न हो जाए हाँ नहीं करनी चाहिए।
          सबसे प्रमुख बात है साथी का चाल-चलन। उस पर पैनी नजर रखनी चाहिए। जिस भी साथी को घर के सदस्यों से अपने दोस्तों का साथ अधिक पसन्द हो वह अपने साथी के प्रति वफादार नहीं हो सकता। इसीलिए हमारे अनुभवी बुजुर्ग शादी-ब्याह के समय कुल या परिवार की ओर अधिक ध्यान देते थे। इसका कारण था युवाओं में घर-परिवार और समाज का डर व शर्म। इसलिए तब प्रायः सही चुनाव होते थे और यदि कभी गलत हो भी जाते थे तो न के बराबर।
           जीवन साथी वही होना चाहिए जो अपने दूसरे साथी के मनोभावों को समझने वाला हो। उसके सामने आप खुलकर हँस सकें और आवश्यकता पड़ने पर उसके कन्धे पर सिर रखकर रो भी सकें। उसका साथ आप आपको अच्छा लगता हो। पूरा दिन उसके साथ हँसते, खेलते और गप्पे लगाते बिताने पर भी ऊब न हो, ऐसा साथी जिसे सौभाग्य से मिल जाए तो उसका सम्मान करते हुए अपना पूरा जीवन बिताकर स्वयं को धन्य मानिए। साथ ही ईश्वर के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करें कि उसने इतना अच्छा जीवन साथी दिया।
चन्द्र प्रभा सूद
Twitter : http//tco/86whejp

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें