जीवनभर मनुष्य एक-एक पाई करके धन-सम्पत्ति का संग्रह करता है। जैसे बूँद-बूँद जल से घट भरता है उसी प्रकार वह अपने खजाने की वृद्धि करता है। अपने ऐशो-आराम के लिए दुनिया के सभी साधन जुटाता है। वह मन से चाहता है कि उसके परिवारी जन सुविधा पूर्वक जीवन व्यतीत करें। किसी भी दुख की काली परछाई तक उन्हें छू न सके।
इसीलिए वह बच्चों को अच्छे-से-अच्छे स्कूल में पढ़ाता है। उच्च शिक्षा भी दिलाता है। उन्हें योग्य बनता देखकर मन-ही-मन प्रसन्न होता है। अपने आपको वह दुनिया का सबसे सौभाग्यशाली इन्सान समझकर इतराता फिरता है। हर किसी से अपने बच्चों का परिचय बड़े गर्व से करवाता है। उसे अपने ऊपर मान होता है कि वह एक अच्छा बेटा, अच्छा पिता या अच्छा पति है। चारों ओर उसकी कर्मठता के डंके बजते हैं।
मनुष्य सोचता है कि उसने धन-दौलत कई पीढ़ियों के लिए जमा कर ली है। बच्चे बैठकर भी खाएँ तो समाप्त नहीं होगी। इतना सब होने के बाद भी उसके मन के किसी कोने में यह कसक रह जाती है कि मैंने जो इतना सब इकट्ठा कर लिया है क्या वह उसके साथ अगले जन्म में साथ नहीं जा सकता?
उसकी इस पीड़ा को इस कहानी के माध्यम से समझते हैं। एक दौलतमंद इन्सान ने अपने बेटे के लिए वसीयत करते हुए लिखा कि मरने के बाद उसके पैरों मे उसके फटे हुऐ मोजे (जुराबें) पहना देना। उसकी इस इच्छा को पूरी करने के लिए आग्रह किया। पिता के मरने के बाद उसे नहलाया गया। बेटे ने पण्डित से अपने पिता की अन्तिम इच्छा बताई।
पण्डित ने कहा हमारे शास्त्रों के विधान के अनुसार केवल कफन पहनाने की अनुमति है। बेटा आज्ञाकारी था और जिद पर अड़ा हुआ था कि उसे पिता की अन्तिम इच्छा पूरी करनी है। बहस इतनी बढ़ गई की शहर के अन्य विद्वानों को जमा किया गया लेकिन कोई परिणाम नहीं निकला।
इसी समय एक व्यक्ति आया और आकर उसने बेटे के हाथ में पिता का लिखा हुआ पत्र दिया। उसमें पिता ने पुत्र के लिए नसीहत लिखी हुई थी-
'मेरे प्यारे बेटे, देख रहे हो? दौलत, बंगला, गाड़ी, बड़ी-बड़ी फैक्ट्री और फॉर्म हाउस होने के बाद भी मैं एक फटा हुआ मोजा तक अपने साथ नहीं ले जा सकता। एक दिन मौत तुम्हारे लिए भी आएगी। इसलिए तुम्हें सावधान कर रहा हूँ कि तुम्हें भी एक कफन में ही इस संसार से विदा होना पड़ेगा। प्रयास यही करना कि इस धन-दौलत का सही इस्तेमाल हो।'
इस कहानी से उस पिता के मन की व्यथा छलकती है जो धन के अम्बार एकत्र करके रख गया परन्तु अपने फटे हुए मोजे तक साथ नहीं ले जा सका। कहने का तात्पर्य यही है कि इस भौतिक संसार के सारे खजाने यहीं रह जाते हैं। हमारे अगले जन्म की यात्रा फिर खाली हाथ से ही आरम्भ होती है क्योंकि मनुष्य खाली हाथ इस दुनिया में आता है और खाली हाथ ही यहाँ से विदा हो जाता है।
ईश्वर ने सृष्टि का निर्माण ही इस प्रकार किया है कि जो भी जीव इस संसार में जन्म लेता है उसे अपने पूर्वजन्म कृत कर्मों के अनुसार प्राप्त आयु को भोगकर यहाँ से विदा होना पड़ता है। यहाँ मनुष्य की मरजी नहीं चलती। उसे तो बस अपने कर्मों पर ध्यान देना है जिसके अनुसार उसे अगला जन्म मिलता है।
हमारे मनीषियों का कथन है कि शुभकर्मों की अधिकता होने पर पुनः मानव योनि मिलती है। इसी तरह पापकर्मों की अधिकता होने पर मनुष्य को चौरासी लाख योनियों में क्रमशः भटकना पड़ता है। अपने दुष्कृत्यों के फल को भोगने के बाद ही उसे पुन: यह मानव शरीर मिल पाता है।
इस संसार में रहकर जो भी कमाया है उसे परोपकार के कार्यों में खर्च करना चाहिए। बेसहारा लोगों का सहारा बनना चाहिए। मरने के बाद मनुष्य के साथ सिर्फ उसके सत्कर्म अथवा दुष्कर्म ही जाते हैं। इसलिए अपने सुकर्मों की पूँजी अगला मानव जन्म लेकर सुखों को भोगने के लिए एकत्र करते रहिए।
चन्द्र प्रभा सूद
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बुधवार, 8 जून 2016
यहाँ जो कमाया साथ नहीं जाता
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