बुधवार, 1 जून 2016

समय रहते जीवन का आनन्द लें

इस संसार में कोई भी ऐसा अमीर व्यक्ति आज तक पैदा नहीं हुआ जो बीते हुए समय को खरीद सकता। यदि ऐसा हो जाता तो बड़े-बड़े राजा-महाराजा जिनके पास अकूत धन-सम्पदा थी, वे आज हमारे बीच जीवित होते। तब इस धरा पर रत्ती भर जगह पैर रखने के लिए नहीं बचती। परन्तु यह होना असम्भव है।
         सत्य यह है कि विधि के विधान को बदलने की सामर्थ्य किसी में भी नहीं है। जिन्हें हम भगवान मानकर पूजते हैं, वे फिर हमारे पास ही होते। वे अपने नश्वर शरीर को छोड़कर इस दुनिया से विदा नहीं लेते और न ही हमें छोड़कर कोई और जन्म लेते। समय प्रवहमान है, उसे पकड़कर कैद करने की शक्ति किसी व्यक्ति में नहीं है। वह अपनी गति से निरन्तर बढ़ता रहता है।
           इसीलिए मनीषी हमें समझाते हैं कि भूतकाल में जो हो गया उससे सबक लेकर आगे बढ़ो। उसे अपने साथ बन्दरिया की तरह चिपकाए मत घूमो। भविष्य के गर्भ में क्या है हम नहीं जानते। इसलिए उसकी चिन्ता मत करो। केवल वर्तमान ही हमारे समक्ष है उसके विषय में सोचो और उसे संवारो। यानि कि -
Time is money. Enjoy the today.
           इसी भाव को आशीष तलवार द्वारा फ़ेसबुक पर पोस्ट की गई एक बोध कथा के माध्यम से समझते हैं। एक गिलहरी रोज अपने काम पर समय से आती थी और अपना काम पूर्ण मेहनत तथा ईमानदारी से करती थी। गिलहरी जरूरत से ज्यादा काम करके भी खूब खुश थी क्योंकि उसके मालिक, जंगल के राजा शेर नें उसे दस बोरी अखरोट देने का वादा किया था।
         गिलहरी जब काम करते-करते थक जाती थी तो सोचती थी कि थोडी आराम कर ले। तभी उसे याद आ जाती थी दस बोरी अखरोट की। गिलहरी फिर काम पर जुट जाती। वह जब दूसरी गिलहरियों को खेलते-कूदते देखती तो उसकी भी खेलने और मस्ती करने इच्छा होती पर अखरोट याद आते ही पुनः काम पर लग जाती।
       शेर कभी-कभी उसे दूसरे शेर के पास भी काम करने के लिये भेज देता था। ऐसा नहीं था कि शेर उसे अखरोट नहीं देना चाहता था, वह बहुत ईमानदार था।
           ऐसे ही समय बीतता रहा एक दिन ऐसा भी आया जब शेर ने गिलहरी को दस बोरी अखरोट देकर आजाद कर दिया। गिलहरी अखरोट के पास बैठ कर सोचने लगी कि अब ये सारे अखरोट हमारे किस काम के? पूरी जिन्दगी काम करते-करते दाँत घिस गये, अब इसे खाऊँगी कैसे?
           यह कहानी हम सभी के जीवन की भी हकीकत बन चुकी है। कभी घर-परिवार और कभी बच्चों के प्रति दायित्वों को पूरा करने में इन्सान मन मारकर सारा जीवन अपनी इच्छाओं का त्याग करता रहता है। सारी जिन्दगी नौकरी करते हुए बिता देता है। मनुष्य जब 60 वर्ष की उम्र में रिटायर होता है तब उसे उसे जीवन भर की कभाई हुई उसकी पूँजी यानि प्रोविडेंट फण्ड मिल जाता है। उस समय उसके पास पैसा और समय दोनों होते हैं पर उसे शरीर अस्वस्थ होने लगता है। इसलिए चाहकर भी वह अपनी इच्छाओं को पूरा नहीं कर पाता।
           परिवर्तनशील समय में पीढ़ी बदल
जाती है। उह समय परिवार चलाने वाला मुखिया भी बदल जाता है। वह नया जोश से भरा युवा मुखिया कभी इस बात का अनुमान नहीं लगा पिता कि पुराने मुखिया ने इस जमा पूँजी (फण्ड) को पाने के लिये सारा जीवन अपनी कितनी इच्छाओं का दमन किया होगा? कितने कष्टों-परेशानियों का सामना किया होगा? कितने ही अपने सपनों को होम किया होगा?
          इस वृद्धावस्था में फण्ड की यह राशि उसे मिल जाती है जिसे पाने के लिए पूरी जिन्दगी दिन-रात अथक श्रम किया था। डाक्टरों द्वारा बताए गए परहेज के कारण वह उस धन का वैसा आनन्द नहीं उठा पाता जैसा वह जीवन पर्यन्त सोचता रहता था। अपनी इस लाचारी के कारण वह अपना मन मसोसकर कर रह जाता है।
         अतः समय कैसा भी हो उसको कोसना नहीं चाहिए। धूप-छाँव तो जीवन का हिस्सा हैं, उस समय के लिए सुरक्षा का उपाय करते हुए अपने साधनों के अनुसार जीवन का भरपूर आनन्द उठाना चाहिए। जिससे जीवन हार जाने का मलाल न रहे।
चन्द्र प्रभा सूद
Twitter : http//tco/86whejp

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