ईश्वर ने हम जीवों को यह शरीर शुभ कर्म करने के लिए उपहार स्वरूप दिया है। उसने हमें इस मूल्यवान शरीर के साथ-साथ आँख, कान, नाक, जीभ और मन पाँच इन्द्रियाँ भी दी हैं। इन्हें अपने वश में करके ही हम अपने उद्देश्य में सफल हो सकते हैं। यदि इन इन्द्रियों को मनुष्य अपने वश में नहीं कर सकता तो जीवन की बाजी हार जाता है।
यदि मनुष्य इनके वश में हो जाता तब ये इन्द्रियाँ मनुष्य को भटका देती हैं, जिससे वह अपने लक्ष्य यानि मोक्ष तक नहीं पहुँच सकता। जब उसका अन्त समय आता है तब वह अपने अधूरे लक्ष्यों को पूरा करने के लिए के लिए ईश्वर से रोकर थोड़े से और समय की मोहलत माँगता है। किन्तु उस समय उसे पलभर की भी मोहलत भी नहीं मिल पाती।
विशाल वर्मा द्वारा फेसबुक पर पोस्ट की गई बोधकथा के माध्यम से इस सत्य को समझते हैं। एक बार एक गरीब किसान एक साहूकार के पास आया और उससे अपना एक खेत एक साल के लिए उधार माँगा। उसने वचन दिया कि वह मेहनत से काम करके अपने खाने के लिए अन्न उगाएगा।
साहूकार बहुत ही दयालु व्यक्ति था। उसने किसान को अपना एक खेत दे दिया और उसकी मदद के लिए पाँच मजदूर भी दिए। ताकि उनकी सहायता से उसे खेती करने में आसानी हो जाए।
साहूकार को प्रणाम करके और धन्यवाद देकर किसान उन पाँच मजदूरों को अपने साथ लेकर चला गया। उन्हें खेत ले जाकर काम पर लगा दिया। किसान ने सोचा कि जब ये पाँच लोग खेत में काम कर तो रहे हैं, फिर मैं क्यों करू? किसान दिन रात बस सपने ही देखता रहता कि खेत में जो अन्न उगेगा उससे क्या क्या करेगा। मालिक के न होने पर वे पाँचो मजदूर अपनी मनमर्जी से खेत में काम करते। जब मन करता फसल को पानी देते और अगर उनका मन नहीं करता, तो कई दिनों तक फसल सूखी पड़ी रहती।
जब फसल काटने का समय आया तो किसान ने देखा कि खेत में खड़ी फसल बहुत ही खराब है। जितनी लागत उसने खेत में पानी और खाद डालने में लगाई, खेत में उतनी लागत की फसल भी नहीं पैदा नहीं हुई।
किसान यह देखकर बहुत दुखी हो गया। एक साल बाद साहूकार अपना खेत किसान से वापिस माँगने आया। तब किसान उसके सामने रोने लगा और बोला आपने मुझे जो पाँच मजदूर दिए थे मैं उनसे सही तरीके से काम नहीं करवा पाया। इसलिए मेरी सारी फसल बर्बाद हो गयी। किसान ने साहूकार से एक साल का और समय माँगा ताकि अच्छे से काम कर सके और उसका खेत उसे लौटा दे।
किसान की बात सुनकर साहूकार ने कहा कि बेटा ऐसा मौका बार-बार नहीं मिलता। मैं अब तुम्हें अपना खेत नहीं दे सकता। यह कहकर साहूकार वहाँ से चला गया। उसे रोते हुए किसान पर जरा भी दया नहीं आई।
विचारणीय है कि दयालु साहूकार वह परमपिता परमात्मा है। गरीब किसान हम सभी लोग हैं जो इस शरीर रूपी खेत को उससे कुछ समय के लिए उधार लेते हैं। वह मालिक मदद के लिए आँख, कान, नाक, जीभ और मन आदि पाँच इन्द्रियाँ रूपी मजदूर साथ में देता है। ताकि हम इस संसार में कमल की भाँति रहते हुए, किसी प्रकार की कोताही न करते हुए अपने सभी दायित्वों को ठीक से निभा सकें। ताकि जब भगवान हमसे अपना दिया हुआ यह शरीर वापिस माँगे तो हमें रोना न आये बल्कि हम प्रसन्नता पूर्वक इस दुनिया से विदा ले सकें।
हम मनुष्य इतने नाशुकरे हैं कि दुनिया की रंगीनियों में खोकर सब कुछ भूल जाते हैं। उस समय हमें यह भी याद नहीं रहता कि अपने कृत कर्मो का निपटारा करके शुभ कर्मों को अपने खाते में जोड़ने आए हैं। इस कार्य को पूरा न कर पाने का मलाल मृत्यु के समय नहीं हो, यह प्रयास समय रहते यथासम्भव कर लेना चाहिए।
चन्द्र प्रभा सूद
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गुरुवार, 9 जून 2016
शुभ कर्म करने के लिए शरीर
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