सफलता किसी की बपौती नहीं है। कोई भी मनुष्य सफलता की उँचाइयों को छू सकता है। मानव को अपने जीवन में सफल होने तथा सबका प्रिय बनने के लिए कुछ विशेष बातों का ध्यान रखना चाहिए। उन्हें यदि अपने जीवन में ढाल लिया जाए तो दुनिया की ऐसी कोई शक्ति नहीं है जो उसे उसका मनचाहा पाने से रोक सके।
समाज में रहते हुए मनुष्य हर प्रकार के लोगों से सम्पर्क में रहता है। कभी वह दूसरों की सहायता करता है और कभी अन्य लोग उसकी। उसे किसी के उपकार को कभी भूलना नहीं चाहिए। जो कष्ट के समय अपना साथ दे उसका कृतज्ञ होना चाहिए। उसके प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करनी चाहिए।
इसके विपरीत दूसरों के प्रति किये गए परोपकार के कार्यो को भूल जाना चाहिए। सयाने कहते हैं- 'नेकी कर दरिया में डाल।' हमें कभी यह उम्मीद नहीं रखनी चाहिए कि जिसका भला हमने किया है, वह व्यक्ति आजन्म हमारे समक्ष नजरें झुकाकर रहे अथवा जिन्दगी भर के लिए गुलाम बनकर हमारी चाकरी करता रहे।
किए गए उपकार का यदि हर समय बखान करते रहने से उसका महत्त्व समाप्त हो जाता हैं। उसके बदले में हमें किसी से कुछ मिलने की आशा नहीं रखनी चाहिए। हालाँकि यह बहुत कठिन कार्य है क्योंकि इन्सानी कमजोरी है कि वह सदा अपनी प्रशंसा चाहता है।
मनुष्य को स्वयं पर पूर्ण विश्वास होना चाहिए। अपने बाहुबल, अपनी मेहनत, अपनी लग्नशीलता पर उसे सदा विश्वास रखना चाहिए। यदि उसे स्वयं पर विश्वास नहीं होगा तो वह एक कामयाब इन्सान नहीं बन सकता। वह दुनिया की रेस में पिछड़ जाता है।
इसी प्रकार अपने भाई-बन्धुओं एवं अपने सहयोगियों पर भी विश्वास करना चाहिए। परस्पर विश्वास से ही दुनिया के सभी कार्य व्यवहार चलते हैं। दूसरों पर सन्देह करने से जीना दुष्वार हो जाता है। यह अविश्वास घुन या दीमक की तरह जीवन को खोखला कर देता है। स्वयं पर, अपने स्वजनों पर विश्वास के साथ-साथ परमपिता परमात्मा पर भी मनुष्य को अटूट विश्वास होना चाहिए। सदा यही मानना चाहिए कि वह जो भी करेगा हमारे हित के लिए ही होगा।
'क्षमा बड़न को चाहिए' ऐसा कहकर मनीषियों ने क्षमा के महत्त्व को प्रतिपादित किया है। मनुष्य को सदा क्षमाशील होना चाहिए। यह गुण मनुष्य को सृष्टि के अन्य जीवों से विशेष बनाता है। यह ईश्वरीय गुण है। किसी को उसकी गलती के लिए क्षमा कर देना वास्तव में विशालहृदयता का परिचायक है।
वे लोग बहुत ही संकीर्ण मानसिकता के होते हैं जो किसी की गलती होने पर उसे सबके समक्ष तिरस्कृत करते हैं, उसका उपहास करते हैं। उनकी ऐसी हरकत के कारण कोई भी उन्हें पसन्द नहीं करता। इसलिए क्षमा रूपी दिव्य गुण को अपनाने से मनुष्य सबके हृदयों में अपना स्थान बना सकता है।
मनुष्य के मन में सदा ही यह भाव रहना चाहिए कि इस संसार में वह अपने कर्मानुसार निश्चित अवधि के लिए आया है। जिस भी जीव का जन्म यहाँ होता है उसकी मृत्यु अवश्यंभावी है। यह वैराग्य भाव जब मनुष्य के मन में आता है तब वह जल में कमल की तरह सांसारिक कार्य कलापों में लिप्त हुए बिना जीवन व्यतीत करता है।
यदि हर मनुष्य इस अटल सत्य को आत्मसात कर ले तो किसी कार्य को करने से पहले दस बार सोचेगा। तब वह कोई भी अनुचित कार्य नहीं कर सकता। उचित मार्ग पर चलता हुआ मानसिक सुखानुभूति कर सकता है।
एवंविध इन सूत्रों को जीवन में अपना करके मनुष्य सही मायने में अपना इहलोक और परलोक दोनों ही सुधार सकता है।
चन्द्र प्रभा सूद
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बुधवार, 22 जून 2016
सफलता किसी की बपौती नहीं
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