मंगलवार, 11 नवंबर 2025

सफलता पाकर इतराता अयोग्य व्यक्ति

सफलता पाकर इतराता अयोग्य व्यक्ति

अयोग्य व्यक्ति को यदि उसकी योग्यता से बढ़कर सम्मानित पद मिल जाए तो उसके पाँव जमीन पर नहीं पड़ते। यह वास्तविकता है कि वह सीधी चाल नहीं चलता बल्कि टेढ़ा-टेढ़ा चलता है। इन्सानी प्रकृति ही ऐसी है कि उसमें अहंकार शीघ्र आता है। तब वह अपने सामने किसी को कुछ नहीं समझता। हो सकता है कि ऐसे व्यक्ति को उच्च पद चापलूसी करने से अथवा भाग्य से मिल गया हो। कारण कोई भी हो सकता है पर सच्चाई यही होती है कि उसे उच्च पद प्राप्त है गया। उसे अपने पर अभिमान करने से कोई रोक नहीं सकता।
            इसी कड़ी में किसी ऐसे व्यक्ति की यदि सौभाग्य से लाटरी लग जाए जिसके पास दो जून रोटी खाने का भी जुगाड़ नहीं है तो ऐसे उस मनुष्य की मानसिक स्थिति की जरा कल्पना कीजिए। बताइए उसके पैर इस जमीन पर क्योंकर पड़ने लगें? वह तो अपने आप को किसी भी सूरत में राजा-महाराजा से कम नहीं समझेगा। उसे तो बस यही लगेगा कि दुनिया का कोई भी मनुष्य उसकी बराबरी नहीं कर सकता। वह भूल जाता है कि इस संसार में धनवानों की कोई कमी नहीं है। तब उसे अपना कद ऊॅंचा लगने लगता है और वह दूसरों को छोटा समझने लगता है।
        इसी प्रकार किसी नीचे पद वाले को ऊँचे पद पर बिठा दिया जाए तो वह हर किसी से अकड़कर बात करेगा। अपनी तरक्की के अहं में बद् दिमाग बन जाएगा। हर किसी को अपना गुलाम बनाने का प्रयत्न करेगा। ओछा व्यक्ति भाग्य से उच्च पद पाने पर बहुत ही इतराने लगता है। इसी बात को रहीम जी ने इस प्रकार कहा है-
        जो रहीम ओछौ बढ़ै, तौ अति ही इतराय।
        प्यादे सों  फरजी  भयो, टेढ़ो-टेढ़ो  जाय॥
अर्थात् रहीम जी कहते हैं कि ओछे लोग जब प्रगति करते हैं तो बहुत ही इतराते हैं। वैसे ही जैसे शतरंज के खेल में जब प्यादा फरजी बन जाता है तो वह टेढ़ी चाल चलने लगता है। वैसे मुझे चौसर के खेल का बहुत ज्यादा ज्ञान नहीं पर कहते हैं उसमें भी कुछ ऐसा ही होता है। जब प्यादा वजीर बन जाता है तब वह सीधी चाल न चलकर वह टेढ़ा-टेढ़ा चलने लगता है। 
          यहाँ पर हम कछुए और खरगोश की कहानी को उदाहरणार्थ ले सकते हैं। यह कहानी हम सबने अपने बचपन में पढ़ी है। एक जंगल में एक खरगोश को अपनी तेज दौड़ने की क्षमता पर घमण्ड था। वह प्रायः धीमी गति से चलने वाले कछुए का मजाक उड़ाता था। एक दिन कछुए ने खरगोश को रेस लगाने के लिए चुनौती दी। खरगोश ने उस चुनौती को स्वीकार कर लिया। रेस शुरू होते ही खरगोश बहुत तेज दौड़ा। उसे दूर-दूर तक कछुआ कहीं दिखाई नहीं दिया। वह घमण्ड में आकर बीच में ही पेड़ के नीचे आराम करने लगा और सो गया। इस बीच कछुआ धीरे-धीरे पर लगातार चलता रहा। वह खरगोश से पहले ही निर्धारित लक्ष्य पर पहुँच गया। 
यानी कछुआ खरगोश की बेवकूफी के कारण रेस जीत गया। ऐसे ही अन्य बहुत से लोग होंगे जो सौभाग्य से दूसरों की मूर्खता के कारण योग्यता न होने पर भी सफल हो जाते हैं। तब फिर उनके पैर जमीन पर नहीं पड़ते। वे आकाश में ऊँची उड़ान भरने लगते हैं।
           जायज-नाजायज तरीकों से धन कमाने वाले चोर, डाकू, स्मगलर, भ्रष्टाचारी और रिश्वतखोर आदि की भी यही स्थिति होती है। अनाप-शनाप तरीकों से कमाया धन उनके सिर पर चढ़कर बोलने लगता है। जैसे सिरसाम(दिमागी बुखार) हो जाने पर मनुष्य उल्टा-सीधा बोलने लगता है। वैसा ही व्यवहार ये लोग दूसरों से करने लगते हैं।
          ऐसे लोग अपनी पुरानी हैसीयत की किसी को हवा भी नहीं लगने देना चाहते। ये अहंकारी लोग स्वभाव से क्रूर बन जाते हैं। इसलिए स्वार्थी हो जाते हैं। हर किसी का अपमान करने में अथवा पंगा लेने में खुशी महसूस करते हैं। मैं, मेरे बच्चे और मेरा परिवार बस, इससे आगे की वे नहीं सोचते। सारी दुनिया को भी आग लगा देने में उन्हें कोई परहेज नहीं होता। किसी की भी जान की कीमत उनके लिए कुछ नहीं होती। वे सारी दुनिया के लोगों को कीड़े-मकोड़ों की तरह समझते हैं।
            ऐसे लोगों को अपने पद अथवा धन का इतना नशा हो जाता है कि खुद को भगवान समझने लगते हैं। ये भगवान को अपने से हीन समझने की भूल कर बैठते हैं। वास्तव में इन्हें मालिक का धन्यवाद करना चाहिए जिसने उन्हें उनकी सामर्थ्य से कई गुणा अधिक दिया है। मेरी बात का चाहे आप विश्वास न करें। अपने आसपास आपको बहुत से ऐसे उदाहरण देखने को मिल जाएँगे। वैसे समाचार पत्रों, टीवी और सोशल मीडिया पर भी गाहे-बगाहे ऐसे लोगों की चर्चाएँ आ जाती हैं।
            ऐसे लोगों को हम सुधार तो नहीं सकते परन्तु उनसे किनारा अवश्य कर सकते हैं। अपनी इज्जत अपने हाथ होती है इसलिए सदा सावधानी बरतनी आवश्यक होती है।
चन्द्र प्रभा सूद 

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