गुरुवार, 27 नवंबर 2025

निठल्ला बैठना सबसे कठिन कार्य

निठल्ला बैठना सबसे कठिन कार्य

मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि खाली रहना अर्थात् निठल्ला बैठना दुनिया का सबसे कठिन कार्य है। परिश्रम करते-करते जब थक जाते हैं तब हम कहते हैं कि अब हमें ब्रेक चाहिए। थोड़ा-सा विश्राम करके या फिर घूम-फिर कर हम तरोताजा हो जाते हैं और फिर अपने काम में उसी ऊर्जा से वापिस जुट जाते हैं।
           मैं कभी-कभी उन लोगों के विषय में सोचती हूँ जो सवेरे से शाम तक कोई कार्य नहीं करते। यानी निरुद्देश्य जीवन जीते हैँ। सारे दिन में बस खा लिया और सो गए। बहुत हुआ तो दोस्तों के साथ शापिंग कर ली या फिर क्लब की सैर कर ली। इस प्रकार के जीवन में न कोई जिम्मेदारी होती है और न ही कोई आकर्षण होता है।
        कुछ गृहिणियाँ जो ईश्वर की कृपा से समृद्ध हैं और घर पर रहती हैं। उनके घर में नौकर-चाकर काम करते हैं। उन्हें तो यह भी पता नहीं होता कि बच्चे स्कूल गए हैं या छुट्टी कर गए। उन्होंने कुछ खाया भी है या नहीं। नौकरों ने जो कुछ उल्टा-सीधा बना दिया, वह बच्चे को पसन्द आया या नहीं। उसने वह खाया था क्या? उनका पति अपने व्यापार के लिए कुछ खाकर या बिना खाए कब घर से चला गया? 
          इसी प्रकार जो पुरुष भी खाली बैठे रहते हैं, वे भी अपने जीवन से निराश हो जाते हैं। कुछ लोग ताश खेलकर या व्यर्थ निन्दा-चुगली करके समय व्यतीत करते हैं। नवयुवा जो इधर-उधर डोलते रहते हैं, उन्हें सब टोक देते हैं कि कोई काम-धन्धा करो, अवारा मत फिरो। स्पष्ट बात यह है कि खाली बैठा हुआ कोई भी व्यक्ति सबकी आँखों में खटकता है। अपना कार्य करने में व्यस्त व्यक्ति को ही सब पसन्द करते हैं।
            खाली बैठने के कारण मनुष्य धीरे-धीरे अनावश्यक बीमारियों से ग्रस्त हो जाता है। उसका एक काम बढ़ जाता है, वह काम है रोज डाक्टरों के पास चक्कर काटना। जबकि उनकी बीमारी होती है उनका खालीपन होती है।
            खाली बैठकर अनावश्यक सोचते रहने से मन और शरीर दोनों प्रभावित होते हैं। विचार प्रवाह प्रायः नकारात्मक होने लगता है सकारात्मक नहीं। सयाने कहते हैं कि-
               खाली घर भूतों का डेरा।
अर्थात् खाली पड़ा हुआ घर हमेशा भूतों की निवास स्थली बन जाता है। 
          कहने का तात्पर्य है यह है कि वहाँ उस घर में नकारात्मक ऊर्जा आने लगती है। जब वहाँ चहल-पहल होने लगती है तब स्थितियाँ अलग हो जाती हैं। वही हाल खाली दिमाग का भी होता है। इसीलिए कहते हैं-
           खाली दिमाग शैतान का घर।
यानी कि फालतू बैठे-बैठे सोचते रहने से दिमाग में प्रायः सकारात्मक विचार नहीं आ पाते बल्कि नकारात्मक विचार घर करने लग जाते हैं। उस समय ऐसा लगने लगता है कि मानो मस्तिष्क की नसें फटने लगी हैं। मनुष्य का सारा शरीर बेकार-सा हो रहा है। 
          ऐसी स्थिति में जो स्वयं को सम्हाल पाते हैं वे बच जाते हैं और जिनका अपने ऊपर वश नहीं रहता, वे समय बीतते मनोरोगी बन जाते हैं। नित्य डाक्टरों के चक्कर लगाते हुए वे धन व समय को व्यय करते हैं।
          अपने आप को किसी सकारात्मक कार्य में लगाए रखना चाहिए। जहाँ तक सम्भव हो किसी हाबी में स्वयं को व्यस्त रखना चाहिए। किसी सामाजिक कार्य को करते हुए भी व्यस्त रहा जा सकता है।
        कहने का तात्पर्य है कि इस दिमाग को खाली मत छोड़ो। जहाँ इसे मौका मिलता है, यह तोड़फोड़ करना आरम्भ कर देगा। जितना अधिक यह व्यस्त रहेगा उतना ही खालीपन का या अकेलेपन का अहसास नहीं करेगा। यह कहने का अवसर नहीं मिलेगा कि क्या करे बोर हो रहे हैं। इसे भी खुराक मिलती रहनी चाहिए अन्यथा यह बागी होकर कहर ढाने लगता है।
चन्द्र प्रभा सूद 

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