यात्रा संस्मरण
हवाई यात्राएँ बहुत बार की हैं पर कुछ समय पूर्व परिवार के साथ दिल्ली से उदयपुर जाते समय महाकवि कालिदास की याद बरबस ही आ गयी। उस दिन वर्षा भी हो रही थी। घने काले, सफेद और धूमिल बादलों से ढके हुए आकाश में ऊपर उड़ते हुए समझ में आया कि कालिदास ने इन बादलों को ही अपना दूत बनाकर 'मेघदूतम्' नामक खण्डकाव्य की रचना क्योंकर की होगी। यह दृश्य इतना मनमोहक था कि नजरें वहॉं से हट ही नहीं रहीं थीं। उन बादलों का आनन्द उठाते हुए मन वास्तव में बहुत प्रसन्न हो रहा था।
उस समय ऐसा प्रतीत हो रहा था कि बादलों पर उड़ते हुए जहाज के नीचे मानो किसी ने सफेद चादर बिछा दी हो। दूर-दूर तक जहाँ तक भी नजर जा रही थी, नीले आकाश पर बिछी हुई वह सफेद दूधिया चादर इतनी खूबसूरत लग रही थी जिसका वर्णन करना गूँगे के गुड़ के स्वाद को बताने जैसा है। उन्नत आकाश को ढकते हुए बादलों ने वास्तव में मेरे इस मन को भी हर लिया। बादलों को यूँ भी मनसिज कहते हैं क्योंकि हमारे मन की कल्पना के अनुसार उनका रूप ढल जाता है। जो आकृति हम बादलों में देखना चाहते हैं, कुछ ही समय में वह वहॉं बन जाती है।
किंवदन्तियों के अनुसार कालिदास बचपन में अशिक्षित और मूर्ख थे। कुछ धूर्त विद्वानों ने बदला लेनेके लिए उनका विवाह परम विदुषी राजकुमारी विद्योत्तमा से करवाया था। लेकिन जब उसे अपने पति की मूर्खता का अहसास हुआ तो उसने उन्हें घर से निकाल दिया। अपने पूर्व जीवन में निपट मूर्ख महाकवि कालिदास ईश्वर की उपासना और विद्वानों की संगति में रहकर महान कवि बने थे। देवी काली के भक्त होने के कारण उनके नाम 'कालिदास' पड़ा। सहृदय कवि को न इन बादलों ने अपने जाल में निश्चित ही फॅंसा लिया था।
सेवा करते नवविवाहित यक्ष को पूजा के लिए बासी कमल के फूल लाने पर राजा कुबेर ने उन्हें रामगिरि पर्वतों पर एक वर्ष तक अकेले रहने की सजा दी थी। हवाई जहाज की तरह यात्रा करते हुए बादलों को हिमगिरि पर्वत से उज्जयिनी का रास्ता बताते हुए जितना सजीव चित्रण कालिदास ने किया है शायद ही किसी और ने किया होगा। इस वर्णन की सुन्दरता से मोहित कवियों ने अपने पाठकों के लिए विश्व की अनेक भाषाओं में इस 'मेघदूतम्' खण्डकाव्य का अनुवाद किया।
हवाई जहाज जब ऊपर आकाश में ऊॅंचा उड़ता है तो उस समय धरती पर कुछ भी नहीं दिखाई देता। परन्तु जब वह थोड़ी-सा नीचे आता है तब बड़े-बड़े वृक्ष देखने में बोनसाई पौधों की तरह लगते हैं। सड़कों पर दौड़ती हुई गाड़ियाँ ऐसी लगती हैं मानो बच्चे घर के फर्श पर या मेज पर अपनी गाड़ियाँ दौड़ा रहे हों। ऊँचे बहुमंजिला भवन ऐसे दिखाई देते हैं मानो खेलते-खेलते बच्चों ने अपने ब्लाक्स थोड़ी-थोड़ी दूरी पर रख दिए हों और कुछ ही पल बाद उन्हें उठाकर फिर कहीं और रख देंगे।जब उनका मन करेगा, वे फिर से उनके साथ खेलने लगेंगे।
आसमान में जब हवाई जहाज बहुत ऊँचाई पर उड़ता है, उस समय बड़े-बड़े पेड़ों, नदियों, सड़कों, भवनों और प्रदेशों की सीमाएँ कहीं खो-सी जाती हैं। ऐसा प्रतीत होता है मानो यहाँ पर सब कुछ एक-ही हैं। ऊँचे और नीचे के कोई भेदभाव नहीं दिखाई देता, कहीं कोई अलगाव नहीं होता, बस सब बराबर यानी एकसमान। ऊपर से चाहो तो भी उन्हें किसी भी तरह बाँटना सम्भव नहीं होता। हवाई जहाज के नीचे आने पर सब सीमाऍं बंटती हुई दिखाई देने लगती हैं। दूसरे शब्दों में हम यह कह सकते हैं कि ऊपर से एकाकार होते हुए सब नीचे आते-आते अपने वास्तविक स्वरूप में प्रकट हो जाते हैं।
इसी प्रकार जो भी कोई व्यक्ति अपने जीवन के किसी भी क्षेत्र में ऊँचाइयों को छू लेता है, उसे भी समद्रष्टा बन जाना चाहिए। अपने अधीनस्थों के साथ सहृदयता पूर्वक तथा समानता का व्यवहार करना चाहिए। घर-परिवार अथवा बन्धु-बान्धवों के साथ भी एक जैसा व्यवहार रखना चाहिए। तभी उसकी महानता का लौहा सब मानते हैं। देश के उच्च पदासीनस्थ को भी धर्म- जाति, ऊँच-नीच, छोटे-बड़े, अमीर-गरीब, रंग-रूप आदि की सभी सीमाओं को तोड़ देना चाहिए और सबके साथ समानता का व्यवहार करना चाहिए। शासक वही सफल होता है जिससे प्रजा बिना डरे अपने मन की बात शेयर कर सके।
हम सभी मनुष्य पक्षियों की तरह पंख लगाकर ऊॅंची उड़ान भरना चाहते हैं। नित्य नए-नए अनुभव संजोना चाहते हैं। इस हवाई यात्रा ने मेरे मन में जो भी उथल-पुथल मचाई है, उसे आप सभी सुधी मित्रों के साथ साझा करके मुझे बहुत ही आत्मसन्तोष हो रहा है। मुझे लगता है आप सब भी मेरे विचारों से एकमत होंगे और इन सबका अनुभव करना चाहेंगे।
चन्द्र प्रभा सूद
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