आकर्षक पैकेजिंग से सावधान
आकर्षक पैकेजिंग को देखकर हम प्रभावित हो जाते हैं और यह मान लेते हैं कि इसके अन्दर रखी वस्तु भी उतनी ही अच्छी क्वालिटी की होगी जितनी यह दिखाई देती है। परन्तु हमेशा ही ऐसा नहीं होता। यहॉं पर बहुधा हम धोखा खा जाते हैं और अपने धन एवं समय की हानि कर बैठते हैं। बाद में हम पश्चाताप करते हैं। तब हम पानी पी-पीकर उन धोखेबाजों को कोसते हैं। यह बात समझनी चाहिए कि पर अपने पैर पर स्वयं कुल्हाड़ी मारने के बाद पछतावा व्यर्थ हो जाता है।
उस समय हम स्वयं को ठगा हुआ सा महसूस करते हैं। तब हमें इतना क्रोध आता है कि हमें ठगने वाला यदि हमारे सामने आ जाए तो उसका सिर फोड़ दें। परन्तु यह तो समस्या का कोई समाधान नहीं है। आज किसी एक व्यक्ति या संस्था विशेष ने हमें धोखा दिया है तो इसकी क्या गारंटी है कि कोई और उसके झांसे में आकर ठगा नहीं जाएगा। हमें पग-पग पर सतर्क रहने की महती आवश्यकता है। अनावश्यक ही स्वयं को इन धूर्तों के चंगुल में नहीं फंसने देना चाहिए।
सोशल मीडिया पर, टी. वी.पर, समाचार पत्रों में हमें अक्सर ऐसे विज्ञापन दिखाई देते हैं जो किसी भी व्यक्ति को बहुत अधिक प्रभावित कर लेते हैं। उनमें तरह-तरह के लालच परोसे जाते हैं। उन्हें देखकर लोग उनकी ओर आकर्षित हो जाते हैं। अपनी मेहनत से कमाए गए धन को लुटाकर लोग बर्बाद हो जाते हैं।
आप लोगों को शायद याद होगा कि कुछ वर्ष पूर्व प्लांटेशन वालों ने सबको बहुत भरमाया था। समयावधि का तो मुझे ध्यान नहीं जिसके पश्चात इन्वेस्ट की गई राशि से कई गुणा राशि लौटाने का वादा किया गया था। उसके बाद सब कहाँ चले गए किसी को पता नहीं। उस समय लोगों अपनी जमा पूॅंजी उस योजना में लगा दी थी। मुझे याद है कि कुछ लोगों ने इस योजना में शामिल होने के लिए अपनी जमीन और अपने घर तक बेच दिए थे। अपने भविष्य को सुरक्षित करने के लिए लोगों को बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ी थी।
गली-मुहल्लों में भी बहुत बार ठगने की नियत से लोग आते हैं जो वादा करते हैं कि सोने को दुगना कर देंगे। सोने को दुगना तो क्या करेंगे परन्तु वे ठग कर चले जाते हैं। गृहणियॉं इन धूर्तों की चिकनी-चुपडी बातों में आ जाती हैं और अपना सोना गॅंवा बैठती हैं। वे धूर्त तो पलभर में नौ दो ग्यारह हो जाते हैं। वे महिलाऍं अपनी मूर्खता की कहानी किसी को सुना भी नहीं सकतीं। बस मन मसोसकर रह जाती हैं।
इसी प्रकार बहुत-सी ऐसी कम्पनियाँ हैं जो उनके पास पैसा इन्वेस्ट करने वालों को बैंक की ब्याज दर से दुगना या तिगुना देने का वादा करती हैं। पर फिर थोड़े दिनों के पश्चात ही आम लोगों की मेहनत की कमाई बटोरकर रातोंरात गायब हो जाती हैं। अब ढूँढ लीजिए उन मक्कारों को। आप बस खोजते रहिए ऐसे दुष्टों को। वे आपके हाथ नहीं लगने वाले। पुलिस में शिकायत कर लीजिए। कुछ नहीं होता। वे लोग जो पहले ही फरार हो जाते हैं। हम कह नहीं सकते कि कब वे न्याय व्यवस्था के हत्थे चढ़ पाते हैं।
ऐसे ही कई शेयर या डिविडेंड ऐसे भी हैं जिनमें यह पंक्ति लिखी रहती है कि मार्केट रिस्क इसमें रहेगा। सोच-समझकर पैसा इनमें लगाइए। फिर भी लोग धोखा खाते हैं। तो फिर इनमें पैसा इंनवेस्ट करने का तो मुझे कोई औचित्य समझ नहीं आता। बहुधा लोगों को इनमें पैसा लगाकर नुकसान उठाना पड़ता है।
इसी प्रकार सस्ते व किश्तों पर प्लाट बेचने वाले विज्ञापन भी आकर्षित करते हैं क्योंकि सिर पर छत तो हर व्यक्ति चाहता है। वहाँ लोग पैसा फंसा देते है और जब कब्जा लेने की बारी आती है तो पता चलता है कि वहाँ या तो ऐसी कोई जमीन नहीं जो उन्होंने खरीदी थी या उस जमीन को कई लोगों को बेचा गया है। फिर कवायद शुरू हो जाती है। जो दबंग होगा वह कब्जा कर लेगा। बाकी लोग अपने लुटने का तमाशा खड़े-खड़े देखते रह जाते हैं पर कर कुछ नहीं पाते।
लोगों को विदेश भेजने का धन्धा भी जोरों पर चलता है। बिना पूरे कागजों के विदेश जाने वालों का क्या हाल होता है इसके उदाहरण हमें अपने आसपास ही मिल जाते हैं। अपनी जमीन बेचकर बहुत से लोग इन धूर्तों को पैसा देते हैं ।विदेश जाकर वे छिप-छिप कर रहते हैं। वे लोग पेट भरने के लिए अपनी योग्यता से भी कम पैसों पर काम करते हैं। कभी-कभी तो उन्हें वहॉं पर न्याय व्यवस्था के दोषी मानकर कारागार की सजा भी भुगतनी पड़ जाती है।
यह कुछ उदाहरण मैंने लिखे हैं जहाँ फंसकर मनुष्य न घर का रहता है न घाट का। एक व्यक्ति जब अनजाने में इस तरह के प्रलोभनों में फंस जाता है तो ठगे जाने के बाद ही उसे समझ आती कि वह ठगा जा चुका है। उस समय सिर धुनकर रोने या चिल्लाने से कुछ नहीं होता। वे मक्कार लोग अपना काम कर जाते हैं और लोग असहाय होकर न्याय व्यवस्था का दरवाजा खटखटाते हैं। इस बात की कोई गारंटी नहीं कि उनका लगाया हुआ धन उन्हें मिल भी सकेगा या नहीं।
उस समय यदि कोई साथी या रिश्तेदार उन्हें चेतावनी देने का प्रयास करता है तो उसे वे अपना शत्रु समझते हैं। उन्हें उस समय लगता है कि सभी उसकी तरक्की से जलते हैं। कोई नहीं चाहता कि वह सभी सुख-सुविधाओं से सम्पन्न हो जाए।उस समय वे सोचते हैं कि यह सब प्राप्त करना उनके बूते की बात नहीं है इसलिए ऐसी बातें कर रहे हैं। उनके लिए वे प्रायः इन मुहावरों का प्रयोग करके उनकी हंसी उड़ाते हैं- 'अंगूर खट्टे हैं। और हाथ न पहुँचे थे कौड़ी।'
तुच्छ लालच में आकर इन धोखेबाजों से बचना चाहिए। अपने खून-पसीने की गाढ़ी कमाई को यूँ ही बरबाद नहीं करना चाहिए।
बाद में पुलिस स्टेशन में जाकर कितनी ही शिकायतें कर लीजिए पर वे लुटेरे तो लूटकर कर नौ दो ग्यारह हो जाते हैं। उन्हें पकड़ने में वर्षों लग जाते हैं। केवल सरकार या पुलिस के भरोसे न बैठकर स्वयं अपने विवेक पर भरोसा कीजिए। अपने धन को व्यर्थ न गंवाकर उसे अपने पास या बैंक में सम्हाल कर रखना चाहिए ताकि वह धन भविष्य में हमारे सुख-दुख में काम आ सके। इन लोगों के विषय में हम यही कह सकते हैं-
'ऊँची दुकान फीका पकवान।'
चन्द्र प्रभा सूद
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