चाहकर भी
समझ नहीं आता
कैसा जीवन दर्शन यह
जो चैन नहीं लेने देता किसी को जग में।
जहाँ भी देखो
हाहाकार है और
संत्रास छाया भू पर
मानव का बन गया दुश्मन ही मानव है।
चारों ओर है
छाया शोर किसी
बम्ब धमाके का वहाँ
फैल रहा अब चीत्कार-ही-चीत्कार है।
मासूम जन को
बिन अपराध यह
कैसी सजा है उनकी
हर लिया जिसने बेचारों का सर्वस्व है।
खो गया देखो
बचपन उन सब
यतीम बच्चों का जो
नहीं जानते आतंक की खूनी सियासत।
कौन खेल रहा
खून की होली है
कैसे ढूँढ सकते हैं
उन आततायिओं के गहरे भेदों के द्वार।
अनजाने भय
पनप रहे मन में
मुक्ति चाहिए इनसे
शान्ति चाहने वाले सभी जन गण को।
किसी आशा में
रहना ही व्यर्थ है
खुद के सामर्थ्य पर
भरोसा कर जीत जाओ मानव जग को।
नहीं हार है
कर्मठ वीरों की
किसी परिस्थिति में
निज बाहुबल का मानकर बढ़ जाओ आगे।
चन्द्र प्रभा सूद
Twitter : http//tco/86whejp
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