महानता ऐसा विशिष्ट गुण है जिस पर किसी व्यक्ति विशेष का एकाधिकार नहीं होता। हर व्यक्ति को महान बनने का पूरा अधिकार है। जो भी मनुष्य इस महानता के मार्ग पर चलना चाहता है उसे अपनी नित्य प्रति की जीवनशैली में थोड़ा-सा परिवर्तन करना पड़ता है। यानि स्व से पर अथवा व्यष्टि से समष्टि की ओर बढ़ना होता है।
दूसरे शब्दों में हम कह सकते हैं कि उसे अपने हृदय को संकुचित करने के स्थान पर विशाल बनाना होता है। केवल अपने घर-परिवार, बन्धु-बान्धवों के साथ-साथ उसे प्राणिमात्र का हितसाधक बनना होता है। इस संसार के सभी जीवों को उसे अपने कुटुम्ब के सदस्य की तरह ही मानना होता है।
जीवन में आगे बढ़ने और सफल होने के लिए मनुष्य को फूँक-फूँककर कदम रखना होता है। दूसरों को नीचा दिखाने के स्थान पर वह सबकी उन्नति की कामना करनी होती है। दूसरों की सफलता से ऐसा मनुष्य जलता नहीं है बल्कि प्रसन्न होता है। दूसरों के धन को मिट्टी के ढेले के समान समझता है। इसलिए वह उसे हड़प करने के बारे में मन से भी नहीं सोचता। वह जो भी ग्रहण करता है, उसे बादल की तरह संसार को लौटा देने के लिए कटिबद्ध रहता है।
दूसरों की निन्दा-चुगली करने के स्थान पर वह अपने समय का सकारात्मक उपयोग करता है। सदा सद् ग्रन्थों का स्वाध्याय करता है। परोपकार के कार्यों में समय व्यतीत करता है। सबको जीवन में प्रयत्नपूर्वक आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करता है।
महान लोग अपने जीवन में लक्ष्य निर्धारित करके उसे पूर्ण करने के लिए जुट जाते हैं। अपने जीवन को यज्ञमय बनाते हैं। उनका सारा जीवन समाज, देश और धर्म के सुधार कार्यों में ही व्यतीत होता है। हमेशा समाज में फैली हुई कुरीतियों के प्रति लोगों को सावधान करते रहते हैं।
अपने जीवन को सदा ही सामाजिक, नैतिक और धार्मिक नियमों के अनुसार चलाने वाले ये लोग दूसरों से भी उन नियमों का पालन करने की अपेक्षा करते हैं। तभी ये समाज में अग्रणी बनकर दिशादर्शन का कार्य बखूबी निभाते हैं।
किसी भी मनुष्य की व्यथा कथा से ये सहृदय लोग आहत हो जाते हैं। उसके कष्ट को दूर करने का यथासम्भव प्रयास करते हैं। ये महापुरुष पूर्णरूपेण विश्वसनीय होते हैं। दूसरों के रहस्यों को खजाने की तरह गुप्त रखते हैं।
महान लोगों का सबसे बड़ा गुण होता है निर्विकार और निरहंकार रहना। ये महानुभाव हर किसी की परवाह अपने-पराए के भेदभाव से परे रहकर करते हैं। उनके मन में कर्त्तापन का अभिमान कदापि नहीं आता। इसलिए ये सरल व कोमल होते हैं। इन लोगों के साथ कोई कितना भी दुर्व्यवहार कर ले, उन्हें भला-बुरा कह ले, उसे दण्ड देने के स्थान पर क्षमा कर देने में विश्वास रखते हैं। इसीलिए इन्हें क्षमाशील कहा जाता है।
ये महानात्मा इस संसार के सभी कार्य-व्यवहार करते हुए भी जल में कमल की तरह निर्लिप्त रहते हैं। अपनी धुन में मस्त ये लोग राग-द्वेष से दूर रहते हैं। किसी को भी इनके संयमित व्यवहार से छल-कपट अथवा किसी प्रकार के षडयन्त्र की बू तक नहीं आती।
अपने अंतस् में महानता का गुण समेटे ये महानुभाव सदा 'सर्वजनहिताय सर्वजनसुखाय' अर्थात् सब लोगों के हित के कार्य करना और सबके सुख की चिन्ता करने को ही अपने जीवन का परम उद्देश्य बना लेते हैं। जो भी इन गुणों को आत्मसात कर लेता है, वह भी महान हो जाता है। जिस पथ पर ये चलते हैं, उसी मार्ग के उन पदचिह्नों पर आने वाली पीढ़ियाँ चलकर अपने जीवन को धन्य बनाती हैं।
चन्द्र प्रभा सूद
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शनिवार, 13 फ़रवरी 2016
महानता रूपी गुण
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