गुरुवार, 18 फ़रवरी 2016

देशप्रेम

देशप्रेम एक ऐसा अनमोल भाव है जो हर उस मनुष्य के खून में उबाल मारता रहता है जो अपने देश पर बलिदान हो जाने के लिए सिर पर कफन बाँधकर रखता है। अपने देश के लिए मर-मिटने का यही एक जज्बा मनुष्य को सच्चा देशभक्त बनाता है।
           देशप्रेम कोई खिलौना नहीं है जिसे बाजार जाकर खरीद लिया जाए। जब तक मन ने चाहा उससे खेल लिया और जब मन भर गया तो उसे तोड़कर कूड़ेदान में डाल दिया जाए अथवा किसी और को दे दिया जाए। यह देशप्रेम कोई स्वादिष्ट मिठाई भी नहीं है जिसे खरीदकर गप्प से खा लिया जाए। फिर महान देशभक्त होने का तमगा पहन लिया जाए।
          यह देशप्रेम बहुत ही पवित्र और उच्च भावना है। जिस समय लोग रजाई ओढ़कर या ए.सी. चलाकर चैन की नींद सोते हैं। उस समय इस देशप्रेम के कारण लेह-लद्दाख में -40 या -50 डिग्री तापमान होने पर और रेगिस्तान की झुलसा देने वाली दोपहरी में बिना अपने प्राणों की परवाह किए वफादार सैनिक देश की रक्षा के लिए सन्नद्ध रहते हैं। उनके तप और त्याग की बदौलत हम जीवन का सुख भोगते हैं।
         जिस मनुष्य को अपने देश, अपने वेष, अपनी भाषा, अपनी संस्कृति से प्रेम नहीं है, वह मनुष्य कहलाने का अधिकारी नहीं है। जो वास्तव में सच्चा देशप्रेमी होता है, वह कभी अपने देश के दुश्मनों के साथ मिलकर उसका सौदा नहीं करता। वह किसी प्रकार के प्रलोभनों में नहीं फंसता। उसका ईमान अपनी मातृभूमि की रक्षा करना होता है।
           गीता में भगवान कृष्ण ने कहा है-
    'जित्वा वा भोक्ष्यसे महीं हतो वा प्राप्यसि स्वर्गं'
अर्थात् देश के लिए अपनी आहुति देने वाले को स्वर्ग मिलता है, इसे हम आम भाषा में  वीरगति पाना कहते हैं। यदि युद्ध में विजयी हो जाओ तो राज्य का भोग करो।
          जब अपना देश पहले मुगलों के और फिर अंग्रेजों का गुलाम था तब देश को परसत्ता से मुक्त करवाने के लिए लड़ाई लड़ी गई थी। हमारे रणबाँकुरों ने युवावस्था में ही अपने माता-पिता अथवा परिवार की परवाह न करते हुए, देश को स्वतन्त्र कराने के लिए मातृभूमि पर स्वयं को स्वेच्छा से होम कर दिया था। उनके बलिदानों को इतने सस्ते में व्यर्थ नहीं गंवाया जा सकता।
           जिन लोगों को विदेशियों अथवा देशद्रोहियों से लगाव हो उन्हें अपने देश को छोड़कर, उस तथाकथित अपने प्रिय देश में चले जाना चाहिए तब उन्हें अपनी औकात ज्ञात हो जाएगी। उस समय वे न घर के रहेंगे और न घाट के। पश्चाताप करने पर भी उन्हें चैन नहीं मिल सकेगा।
          रावण को युद्ध में परास्त करके जब भगवान राम ने लंका का राज्य विभीषण को सौंपा था, उस समय उन्होंने अपने छोटे भाई लक्ष्मण से कहा था-
        न मे सुवर्णमयी लकाSपि रोचते लक्ष्मण।
         जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी॥
अर्थात् हे लक्ष्मण! यह सोने की लंका भी मुझे रुचिकर प्रतीत नहीं होती। जननी और जन्मभूमि स्वर्ग से भी महान होती हैं।
           ऐसी महान सोच रखने वाले हमारे भारत देश में देशविरोधी उन ताकतों का समर्थन किसी भी शर्त पर नहीं किया जाना चाहिए। देशद्रोह अथवा देश का अहित करने वालों के लिए कहते हैं कि उन्हें नरक से भी अधिक असहनीय कष्टों का सामना करना पड़ता है।
           अपना देश कैसा भी हो, उसमें रहते हुए चाहे कठिनाइयों का सामना करना पड़े तब भी उसके प्रति वफादारी में किसी भी तरह की कमी नहीं आनी चाहिए। अपने तुच्छ स्वार्थों के लिए अपने देश की जड़ों को खोखला करने वालों को ईश्वर भी क्षमा नहीं करता।
           जिन लोगों को विदेशियों अथवा देशद्रोहियों से लगाव हो, उन्हें अपने वास्तविक देश को छोड़कर, अपने उस तथाकथित प्रिय देश में चले जाना चाहिए तब उन्हें अपनी औकात ज्ञात हो जाएगी। उस समय वे न घर के रहेंगे और न घाट के। पश्चाताप करने पर भी उन्हें चैन नहीं मिल सकेगा।
          रावण को युद्ध में परास्त करके जब भगवान राम ने लंका का राज्य विभीषण को सौंपा था, उस समय उन्होंने अपने छोटे भाई लक्ष्मण से कहा था-
न मे सुवर्णमयी लकाSपि रोचते लक्ष्मण।
जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी॥
अर्थात् हे लक्ष्मण! यह सोने की लंका भी मुझे रुचिकर प्रतीत नहीं होती। जननी और जन्मभूमि स्वर्ग से भी महान होती हैं।
           ऐसी महान सोच रखने वाले हमारे भारत देश में देशविरोधी उन ताकतों का समर्थन किसी भी शर्त पर नहीं किया जाना चाहिए। देशद्रोह अथवा देश का अहित करने वालो के लिए कहते हैं कि उन्हें नरक से भी अधिक असहनीय कष्टों का सामना करना पड़ता है।
           अपने देश कैसा भी हो, उसमे रहते हुए चाहे कठिनाइयों का सामना करना पड़े तब भी उसके प्रति वफादारी में किसी भी तरह की कमी नहीं आनी चाहिए। अपने तुच्छ स्वार्थों के लिए अपने देश की जड़ों को खोखला करने वाले को ईश्वर कदापि क्षमा नहीं करता।
          मनुष्य की वास्तविक पहचान उसके अपने देश से ही होती है। विदेश में जाकर शरण लेने वाले व्यक्तियों को वह सम्मान नहीं मिलता जो अपने देश के नागरिकों को दिया जाता है। इसलिए अपने देश के प्रति वफादार रहना चाहिए। जिस थाली में खाओ उसमें छेद करने वाला नहीं बनना चाहिए।
         देशविरोधी ताकतों के कारण अपना महान भारत देश इस समय संक्रमण काल से गुजर रहा है। सभी राजनीतिज्ञों और देशवासियों को अपने पूर्वाग्रह छोड़कर एकजुट होकर देश की सुरक्षा के लिए प्रयास करना चाहिए ताकि हमारे भारत देश की गरिमा और अखण्डता बनी रह सके।
चन्द्र प्रभा सूद
Twitter : http//tco/86whejp

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें