सज्जनों या महापुरुषों का जीवन दीपक की तरह होता है जो अपना सब सुख-चैन किनारे करके दिन-रात दूसरों के जीवन में प्रकाश करते रहते हैं। किसी के जीवन को प्रकाशित करने वाला मनुष्य हमेशा महान कहलाता है।
दीपक सदा अंधकार को दूर करके प्रकाश करता है। ऐसा करके दीपक को तो कुछ नहीं मिलता। उसका जलना उसकी प्रकृति है जो महत्त्वपूर्ण होती है। कितने भी आँधी-तूफान आ जाएँ, दीपक की लौ थरथरा सकती है परन्तु वह बुझता नहीं है। स्वयं को कष्ट देकर भी वह दूसरों का हित करता है, प्रकाश देता है। यही उस छोटे से दीपक की विशेषता होती है जो उसे अन्य पदार्थों से विशेष बना देती है।
छोटे से दीपक का जीवन इसलिए महान अथवा पूज्य नहीं होता कि वह जलता रहता है अपितु इसलिए वन्दनीय होता है कि निस्वार्थ भाव से दूसरों के लिए जलता है। ऐसा कार्य विरले ही कर सकते हैं। अपनी जलने की पीड़ा को अनदेखा करते हुए वह महान परोपकार करता है।
सोचने की बात यह है कि दीपक जैसी छोटी-सी वस्तु जब ऐसा महान कार्य कर सकती है तो हम मनुष्य क्यों पीछे रह जाते हैं?
इसका कारण है हमारा स्वार्थ। वह हमें अपना कदम पीछे लौटा ले जाने के लिए विवश कर देता है। हम अपने घर-परिवार तक सीमित होते जा रहे हैं। हमारी संवेदनाएँ शायद शून्य होती जा रही हैं। बहुधा अपनी समस्याओं के चलते चाहकर भी हम दूसरों के बारे में सोच नहीं पाते। इसीलिए हम जरूरतमन्दों का सान्त्वना नहीं दे पाते।
परोपकारी जीव अपने जीवन में आने वाली कठिनाइयों को अनदेखा करके भी दूसरों के प्रति चिन्तित रहते हैं, उनके कष्टों को दूर करने का उपाय करते हैं। जहाँ तक हो सके उनका सम्बल बनते हैं। उनका एकमात्र ध्येय दूसरों के प्रति सहानुभूति का भाव रखना होता है।
परोपकारी सज्जन जो भी इस ब्रह्माण्ड से लेते है, उसे भलाई के कार्यो में लगा देते हैं। उनके अपने पास कुछ बचे या नहीं वे अपने इस महान उद्देश्य से पीछे नहीं हटते। तन, मन और धन से वह माता प्रकृति की तरह सभी जीवों पर उपकार करते हैं।
इनके पास जो भी व्यक्ति अपनी कोई भी समस्या लेकर आते हैं, उसका समाधान निकालकर उनकी सहायता करते हैं। ये सभी के विश्वासपात्र होते हैं। कैसी भी समस्या व्यक्ति के जीवन में आ जाए, इनके साथ बिना हिचकिचाए साझा की जा सकती है। इनका हृदय इतना विशाल और गम्भीर होता है कि वे अपने भीतर सागर की तरह सब कुछ समेट लेते हैं। किसी के भी रहस्य को दूसरों के समक्ष किसी भी स्थिति में चटखारे लेकर न सुनाना उनका स्वभाव होता है।
उनके साथ कोई कैसा भी व्यवहार क्यों न करे, वे किसी का भी तिरस्कार नहीं करते हैं। वे अपने अथवा पराए सभी लोगों का खुले दिल से स्वागत करते हैं क्योंकि उनकी नजर में कोई भी पराया नहीं होता। वे प्राणिमात्र को अपना समझते हैं।
हर रिश्ते का सम्मान करना उनका स्वभाव होता है। छोटे-बड़े, ऊँच-नीच, रंग-रूप, जात-पात आदि किसी भी कारण से भेदभाव करना उनकी प्रकृति में नहीं होता। सभी के साथ समानता और अपनेपन का व्यवहार करते हैं। किसी का अहित करने के विषय में वे स्वप्न में भी नहीं सोचते।
ऐसे महत् जन ही संसार के दीपक होते हैं। सबका हित साधने वाले महापुरुष देश, धर्म और समाज के अमूल्य रत्न होते हैं जो इतिहास में अमर हो जाते हैं। युगों तक उनकी चर्चाएँ होती रहती हैं। इन्हें सहेजकर रखना सबका दायित्व होता है। जिस मार्ग पर ये चलते हैं, वही आने वाली पीढ़ियों का रास्ता बन जाता है। उस पथ का अनुसरण करके अपने जीवन को धन्य बना सकते हैं।
चन्द्र प्रभा सूद
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गुरुवार, 4 फ़रवरी 2016
सज्जन दीपक की तरह
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