बहुत विचार करने पर भी मुझे यह समझ में नहीं आ रहा कि आज एक भाई अपने दूसरे भाई के खून का प्यासा क्यों होता जा रहा है? क्या वे प्यार से मिल-जुलकर नहीं रह सकते? क्या आज सबके खून सफेद हो रहे हैं? ऐसा क्या हो गया है कि रिश्तों के मायने ही बदलते जा रहे हैं?
हमारे स्वार्थ शायद इतने अधिक टकराने लगे है कि हम असहिष्णु होते जा रहे हैं। उन्हें पूरा करने के लिए हम सब अनावश्यक ही दिन-रात अपना सुख-चैन गँवाकर निरन्तर रेस में शामिल हो रहे हैं। मैं, मेरा परिवार और मेरे बच्चे बस यहीं तक हम सभी सीमित होते जा रहे हैं। इनके अतिरिक्त न हमें कोई दिखाई देता है और न ही हम किसी अन्य भाई-बन्धु के विषय में सोचना चाहते हैं।
हमारा अहंकार इतना अधिक प्रबल होता जा रहा है जो किसी शर्त पर, किसी के साथ भी समझौता नहीं करना चाहता। सारी दुनिया को देख लेने अथवा उसमें आग लगा देने की मानसिकता समाज का बहुत अहित कर रही है। हमारा यही अहं हमें दूसरों के साथ सामञ्जस्य स्थापित नहीं करने देता। इसलिए हमें सबसे अलग-थलग करने में सफल हो रहा है और हम इसके शिकार हो रहे हैं।
ये स्वार्थ और अहंकार दोनों ही घर-परिवार के बिखराव में अहं रोल निभा रहे हैं। यही कारण है कि बच्चे माता-पिता की धन-सम्पत्ति, व्यापार आदि का उनके जीवन काल में ही बटवारा करके सुख की साँस लेना चाहते हैं। उन्हें सदा यही लगता है कि दूसरे भाई या बहन को माता-पिता कहीं उनसे अधिक न दे दें। यदि ऐसा हो गया तो वे घाटे में रह जाएँगे। सबसे बड़ी बात कि घाटे का सौदा कोई भी नही करना चाहता। इसलिए अपने स्वार्थों की पूर्ति के लिए वे जुगत भिड़ाते रहते हैं। जायज-नाजायज हथकंडे अपनाकर वे माता-पिता की मेहनत की कमाई हथिया लेते हैं।
आज के बच्चों को अपने अधिकारों को पाना तो आता है परन्तु अपने दायित्वों से अनजान बने रहना चाहते हैं। माता-पिता की सेवा करना तो वे प्राय: भूल जाते हैं। अपने भाई-बहनों के साथ अच्छा व्यवहार करना भी उन्हें याद नहीं रहता।
अपने पैतृक घर में ऊपर-नीचे के तल अथवा मंजिल में बच्चे नहीं रह सकते परन्तु फ्लैटों जाकर दूसरे अनजान लोगों के साथ रहना पसन्द करते हैं। वहाँ रहकर समझौता कर सकते हैं पर अपने भाई-बहनों की शक्ल तक वे देखना पसन्द नहीं करते। उन्हें लगता है कि परायों के साथ रहकर वे सुखी रहेंगे पर जीवन में ऐसा हो नहीं पाता।
इन्सानी कमजोरी है कि जिस किसी वस्तु की वह कामना करता है और जब वह उसे उपलब्ध हो जाती है, तब वह उससे ऊब जाता है और कुछ नया पाना चाहता है। यही उसके भटकाव का कारण है जो उसे कहीं भी चैन नहीं लेने देता।
सम्बन्धों में आपसी मनमुटाव के कारण ही शायद खून सफेद होने की बात कह दी जाती है। भाई-बहन धन-सम्पत्ति के लालच में इतने अन्धे हो जाते हैं कि एक-दूसरे के खून के प्यासे बन जाते हैं। इसके लिए एक-दूसरे की हत्या करने या करवाने के लिए षडयन्त्र तक रच डालते हैं। फिर जीवन पर्यन्त घर-परिवार, समाज और न्याय के दुश्मन बन जाते हैं। जिनके लिए ऐसा जघन्य अपराध करते हैं, उन्हें दुनिया की भीड़ में संघर्ष करने के लिए अकेला छोड़ देते हैं।
हमारे सयाने कहते हैं- 'अपना यदि मारेगा तो भी छाया में फैंकेगा।' कहने का तात्पर्य है कि ईश्वर प्रदत्त अपने सम्बन्धों की कद्र करनी चाहिए। वह मालिक नहीं चाहता कि अपने भाई-बन्धुओं से अनुचित व्यवहार किया जाए। धन-वैभव तो आना-जाना है, इसके लिए आत्मीय सम्बन्धों को दाँव पर लगाने से बचना चाहिए। हम सभी को सथासम्भव भाईचारा बनाकर रखना चाहिए।
चन्द्र प्रभा सूद
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रविवार, 21 फ़रवरी 2016
भाई खून के प्यासे क्यों?
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