मनुष्य का जीवन नदी की तरह निरन्तर प्रवाहमान है। गत्यात्मकता ही उसकी जीवनदायिनी शक्ति है। जब कभी उसकी यह गति बाधित होने लगती है तभी सारी समस्याओं का जन्म होता है। जैसे नदी की गति चट्टानों के आ जाने से सहज नहीं रह पाती उसी प्रकार मानव जीवन में दुखों और परेशानियों के आ जाने से रुकावट होने लगती है।
रुके हुए शान्त जल में कंकड़ मारने से उसमें हलचल होने लगती है और कुछ स्पष्ट नहीं दिखाई देता। उसी प्रकार जब जीवन में ठहराव आता है और उस समय उसमें दुख या परेशानी का कंकर फैंका जाता है तो जीवन में भी उथल-पुथल होने लगती है। जीवन की आशाएँ निराशा में बदल जाती हैं। निराशाजनक स्थिति में भविष्य अंधकारमय दिखाई देने लगता है। कोई रास्ता नहीं सूझता। इन्सान केवल बेबस होकर रह जाता है और अपने भाग्य को कोसता रहता है।
समय बीतने पर सारी परेशानियाँ स्वयं ही दूर होने लगती हैँ। तब जीवन में आनन्द और उल्लास फिर से लौट आता है। इन्हीं विचारों को महात्मा बुद्ध के जीवन में घटी इस घटना के माध्यम से समझते हैं। यह कथा फेसबुक पर किसी मित्र ने पोस्ट की थी। मुझे बहुत प्रेरणादायक प्रतीत हुई, इसलिए मैंने इस विषय पर यह आलेख लिखने कआ प्रयास किया।
महात्मा बुद्ध अपने कुछ शिष्यों के साथ बौद्ध धर्म का प्रचार करते हुए भ्रमण कर रहे थे। एक गाँव में घूमते हुए उन्हें काफी देर हो गयी और उन्हें बहुत प्यास लगी। उन्होनें अपने एक शिष्य को पानी लाने का आदेश दिया। शिष्य पानी लेने गया तो उसने देखा कि नदी में कुछ लोग कपड़े धो रहे थे, कुछ लोग नहा रहे थे और नदी का पानी काफी गंदा दिख रहा था।
शिष्य ने ऐसा गंदा पानी ले जाना उचित नहीं समझा और वापिस आ गया। महात्मा बुद्ध ने फिर से दूसरे शिष्य को पानी लाने भेजा। कुछ देर बाद वह शिष्य पानी लेकर लौटा। महात्मा ने शिष्य से पूछा कि नदी का पानी तो गंदा था फिर तुम साफ पानी कैसे लेकर आए। शिष्य बोला कि नदी का पानी तो वास्तव में गंदा था। लोगों के जाने के बाद मैने कुछ देर इंतजार किया और जब मिट्टी नीचे बैठ गयी और साफ पानी उपर आ गया, तब मैं शुद्ध पानी लेकर आया।
यह सुनकर महात्मा बुद्ध बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने शिष्यों को यह शिक्षा दी कि हमारा यह जीवन भी पानी की तरह है। जब तक हमारे कर्म अच्छे हैं तब तक सब कुछ शुद्ध है। जीवन में कई बार दुख और समस्या भी आती हैं जिससे जीवन रूपी पानी गंदा लगने लगता है।
कुछ लोग पहले शिष्य की तरह मुसीबत को देखकर घबरा जाते हैं और वापिस लौट जाते हैं। ऐसे लोग जीवन में कभी आगे नहीं बढ़ पाते और उन्नति नहीं कर सकते। वहीं दूसरी ओर कुछ धैर्यशील लोग किसी भी परिस्थिति में व्याकुल नहीं होते। समय बीतने पर गंदगी रूपी सभी समस्याएँ और दुख स्वयं ही समाप्त हो जाते है।
यह कहानी हमें समझाती है कि समस्याएँ और दुख कुछ समय के पश्चात स्वयं ही समाप्त हो जाते है। समस्या और बुराई केवल कुछ समय के लिए जीवन रूपी पानी को गंदा कर सकती है। यदि धैर्य से काम लिया जाए तो दुख और कष्ट खुद ही कुछ समय बाद साथ छोड़ देते है। फिर निर्मल जल में आईने की तरह सब कुछ साफ-साफ दिखाई देने लगता है।
मनुष्य को घबराकर हाथ-पैर नहीं छोड़ देने चाहिए। समय सदा एक-सा नहीं रहता। अपनी विपरीत परिस्थितियों के समय मनुष्य को कुमार्गगामी न बनकर ईश्वर की उपासना, सज्जनों की संगति और सद् ग्रन्थों का स्वाध्याय करते हुए सही समय की प्रतीक्षा करनी चाहिए।
चन्द्र प्रभा सूद
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मंगलवार, 10 मई 2016
जीवन नदी की तरह
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