आजन्म मनुष्य को धन की आवश्यकता होती है और वह इसे पाने के लिए अनथक प्रयास भी करता है। मनुष्य का वास्तविक धन क्या है? आज हम इस विषय पर चर्चा करते हैं।
हम सांसारिक लोग हैं, हमारे घरों में यदा कदा अतिथि आते रहते हैं। कुछ अतिथि थोड़े समय के लिए आते हैं और कुछ अतिथि हमारे साथ कुछ दिन व्यतीत करते हैं। हम सबकी आवभगत अपनी सामर्थ्य के अनुसार करते हैं। जब कोई अतिथि हमारे घर कुछ दिन रहता है और जाते समय प्रसन्न मन यह से कहता है कि आपके घर में आकर मेरा मन रम गया है, यहाँ से जाने का दिल नहीं कर रहा। यह घर नहीं एक मन्दिर है तो यह मनुष्य का सबसे बड़ा धन होता है।
जब माता-पिता अपने बच्चों के व्यवहार से, उनकी सेवा सुश्रुषा से प्रसन्न होते हैं तब उनके मन से अपने आप ही आशीर्वाद निकलते हैं। वे अनायास ही यह कहते हैं कि ये बच्चे हमारे कलेजे का टुकड़ा हैं। मेरे विचार में किसी भी मनुष्य के लिए इससे बढ़कर और कोई धन हो ही नहीं सकता।
घर-परिवार में सामञ्जस्य का वातावरण हो। बच्चे माता-पिता की आज्ञाकारी सन्तान हों, उनका आदेश बच्चों के लिए ब्रह्मवाक्य हो। ऐसे माहौल में यदि कोई बेटा या बेटी यह कहे कि मेरे माँ बाप ही मेरे भगवान हैं तो यह मनुष्य की सबसे बड़ी पूँजी कहलाएगी।
पति-पत्नी में परस्पर प्यार और विश्वास हो और वे दोनों एक बंद मुट्ठी की तरह मिलकर रहते हों, उनके बच्चे भी संस्कारी हों तो ऐसा घर स्वर्ग से भी बढ़कर सुखी होता है। शादी के बीस साल के बाद भी पति-पत्नी का एक-दूसरे के प्रति लगाव कम न होकर बढ़ता रहे तो उनके इस प्रेमधन के समक्ष अन्य सभी धन फीके पड़ जाते हैं।
घर-परिवार में प्रायः सास और बहु की नोकझोंक चलती रहती है। यदि वहाँ सभी को यथोचित सम्मान देने की परम्परा हो तो इस समस्या से बचा जा सकता है। बहु अपनी सास को सास नहीं माँ माने और इसी प्रकार सास भी अपनी बहु को बहु नहीं बेटी मान लें तो अधिकतर झगड़े समाप्त हो जाएँ। दोनों ही एक-दूसरे की गलतियों को अनदेखा करके यदि परस्पर सौहार्द बनाए रखें तो वहाँ टकराव होगा ही नहीं। उस घर की खुशबू दूर-दूर तक फैलती है। यही गृहस्थी का सबसे बड़ा धन है।
जिस घर में घर में बड़ों को मान और छोटों को प्यार भरी नजरों से देखा जाता है वहाँ सुख-शान्ति का वास होता है। बड़ों को चाहिए कि वे अपना हृदय विशाल बनाकर बच्चों को उनके किसी भी दोष के लिए क्षमा कर दें।ऋइसी प्रकार बच्चों का दायित्व भी बनता है कि वे बड़ों की कोई बात रुचिकर न लगने की स्थिति में घर में बवाल न मचाकर प्यार से समाधान करें। छोटे-बड़े सभी को हठधर्मिता छोड़कर रिश्तों में तालमेल बनाए रखे। ऐसा करने पर घर के सभी सदस्यों का आपसी व्यवहार सन्तुलित रहेगा। बाहर जाने पर घर में भागकर आने का मन करेगा। अब आप ही बताइए कि इससे बड़ा कोई और धन हो सकता है?
भाई-बन्धुओं अथवा घर-परिवार के किसी सदस्य की यदि जरूरत के समय आप प्रसन्नतापूर्वक, अपना फर्ज समझकर, बिना अहसान जताए सहायता कर सकें और वह आपको अपने दिल की गहराई से दुआ दे तो यह सबसे धन होगा। यह धन आत्मसन्तुष्टि का भाव देता है।
यदि अपने विवेक से ऐसा धन मनुष्य पा सके तो उससे बढ़कर भाग्यशाली कोई और हो ही नहीं सकता। मनुष्य को अपने घर को यत्नपूर्वक ऐसा बनाना चाहिए कि उसके मन में कोई और कामना न रह जाए। ईश्वर की कृपा से हर किसी व्यक्ति को ऐसे परम धन की प्राप्ति हो और वह खुशहाल जीवन जी सके।
चन्द्र प्रभा सूद
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बुधवार, 25 मई 2016
वास्तविक धन
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