समय बहुत मूल्यवान है। इस समय का मूल्य पहचानते हुए मनुष्य को इसकी कद्र करनी चाहिए। जो लोग समय की कीमत नहीं पहचानते उन्हें सिर धुनकर पछताना पड़ता है। कवि ने हमें समझाने का प्रयास किया है कि-
काले खलु समारब्धा नीतय: फलन्ति।
अर्थात् यथासमय आरम्भ की गई नीतियाँ ही सदा फलदायी होती हैं।
समय बीत जाने के बाद लकीर पीटते रहने का कोई लाभ नहीं होता। वे नीतियाँ हमारे लिए अनुपयोगी होकर मात्र कागजों में कैद होकर रह जाती हैं। चाहकर भी वे हमारे लिए कुछ नहीं कर सकती।
न जाने विश्व की कितनी ही महान संस्कृतियाँ इस काल के गाल में समा गई हैं, जिनके बारे में आज शायद ही कोई जान पाता होगा। इसी प्रकार बड़े-बड़े साम्राज्यों को भी समय ने सम्हलने के लिए मोहलत नहीं दी। फिर हम लोग किस खेत की मूली हैँ? जो समय हमारे साथ ही सहानुभूति रखेगा। इसीलिए मनुष्य को समय का मूल्य पहचानना चाहिए।
समय पलक झपकते ही एक राजा को रंक बना देता है और रंक को राजा। यह वक्त नूर को भी बेनूर बना देता है और बेनूर को नूर दे देता है। समय कोयले को भी कोहिनूर बना देता है। बड़े कहते हैं- ‘वक्त बलवान तो गधा पहलवान।: यानी मनुष्य का समय यदि अनुकूल हो तो मूर्खों की भी पौ बारह हो जाती है। अन्यथा बड़े-बड़े पहलवानों को भी यह समय पटखनी दे देता है अर्थात् इन्सान देखता रह जाता है और यह समय चुटकियों में उन्हें मसलकर रख देता है।
हर मनुष्य को जिन्दगी बदलने के लिए एक अवसर अवश्य मिलता है। जो उस मौके का लाभ उठा लेते हैं वे समाज के सफल व्यक्तियों में गिने जाते हैं। जो लोग मिले हुए अवसर को गँवा देते हैं वे सारी उम्र अच्छे समय के आने की प्रतीक्षा करते रहते हैं पर उनका मनचाहा पुनः उन्हें कभी नहीं मिल पाता। यदि मिलता है तो लम्बा इन्तजार। दूसरे शब्दों में कहें तो उन्हें समय बदलने के लिए जिन्दगी दोबारा नहीं मिल सकती। यदि समझदारी से वक्त को पहचान करके मनुष्य अपनी योजनाओं को क्रियान्वित कर सके तो उसे ऊँचाइयाँ छूने से कोई नहीं रोक सकता।
इसके विपरीत समय को किसी भी कारण से अथवा आलस्यवश गँवाने वाले रेस में पिछड़कर नाकामयाबी का तमगा अपने माथे पर लगाकर घूमते हैं।
सयाने एक उक्ति कहते हैं - 'का वर्षा या कृषि सुखाने' अर्थात् उस वर्षा का क्या लाभ जब खेती सूख गई।
इसका यही अर्थ है कि जुते हुए खेत वर्षा के अभाव में सूख गए, वहाँ अब खेती नहीं हो सकती और आकाल पड़ना निश्चित हऊओ गया है, यदि तब छमाछम करती मूसलाधार बारिश हो भी जाए तो सब व्यर्थ है। जो जान-माल का नुकसान होना था, सो तो हो गया।
समय पर वृक्ष फल देते हैं, माली चाहे सैंकड़ों घड़े पानी क्यों न डाल दे। एक छोटा बच्चा जिसने अभी विद्यालय में प्रवेश लिया है, वह अपनी चौदह वर्ष की अवधि के बाद ही स्कूल की पढ़ाई करके वहाँ से बाहर निकलेगा। उसके बाद उच्च शिक्षा, फिर नौकरी या व्यापार और तब शादी करके अपने जीवन को व्यवस्थित करता है।
सारे जीवन की आधार निश्चित ही समयावधि की गणना है। इतने वर्ष पश्चात एल. आई. सी. या एफ. डी. परिपक्व हो जाएगी, हम अपना घर बना लेंगे, बच्चों की शादियाँ करके हम फ्री हो जाएँगे, मकान या गाड़ी का लोन चुक जाएगा, रिटायर हो जाएँगे आदि। इसी तरह मनुष्य का सारा जीवन समय की गणना करते हुए बीत जाता है, इसमें कोई सन्देह नहीं।
इसीलिए हमारे मनीषी समय के महत्त्व को पहचानने पर बल देते हैं। इस वक्त को अपनी मुट्ठी में कोई भी कैद नहीं कर सकता। यह रेत पर पड़ी मछली की तरह मनुष्य के हाथ से फिसल जाता है। यदि इसकी कद्र की जाए तो यह मनुष्य को आसमान छूने में सहायक बनता है और इसे बरबाद करने वालो को मसलकर रख देता है।
चन्द्र प्रभा सूद
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सोमवार, 9 मई 2016
समय को पहचानो
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