हमारा यह शरीर बहुत ही अनमोल खजाना है। इसकी हम कद्र नहीं करते और न ही उस ईश्वर का धन्यवाद करते हैं जिसने यह अमूल्य रत्न दिया है। इस शरीर के एक-एक अंग का यदि हम मूल्य लगाने लगें तो स्वयं ही आश्चर्यचकित हो जाएँगे।
इस शरीर में विद्यमान मस्तिष्क, आँखें, हाथ, पैर, हृदय, किडनी, गाल ब्लेडर, लीवर, घुटने आदि जितने भी अंग हैं, यदि अकेले-अकेले उन सबका मूल्य चिकित्सक की दृष्टि से लगाया जाए तो करोड़ों-अरबों रूपए होगा। इसी प्रकार इनके अस्वस्थ हो जाने की स्थिति में एक-एक अंग पर लाखों रूपए खर्च हो जाते हैं।
इतना सब जानते-समझते हुए और अपने आसपास देखते हुए भी हम ईश्वर प्रदत्त अपने इस खजाने से सदा अनजान बने रहते हैं। जब भी मौका मिलता है, बिना सोचे-समझे उस मालिक पर दोष लगाते हैं कि उसने हमें दिया क्या है? हम उस परम न्यायकारी मालिक पर पक्षपात करने का आरोप लगाने से भी नहीं चूकते।
हमारी अवस्था वास्तव में एक भिखारी जैसी है जो किसी भी स्थिति में सन्तुष्ट नहीं रह सकता। उसे सोना, चाँदी अथवा राजपाट सब दे दिया जाए पर उसे सन्तोष नहीं मिलता। उसे तो बस गन्दी नाली में गिरा हुआ, भिक्षा में पहले मिला हुआ ताँबे का सिक्का ही चाहिए।
इसी आशय को यह कथा स्पष्ट करती है। एक राजा का जन्मदिन था। उसने सोचा कि सवेरे उठते ही जो व्यक्ति सबसे पहले उसे मिलेगा, उसे वह खुश कर देगा। प्रातः उठने पर सबसे पहले एक भिखारी उसे दिखाई दिया। राजा ने उस भिखारी के सामने ताँबे का एक सिक्का उछाल दिया। सिक्का भिखारी के हाथ सें छूट कर नाली में जा गिरा। भिखारी नाली में हाथ डालकर ताँबे का वह सिक्का ढूँढने लगा।
राजा ने उसे बुलाकर ताँबे का दूसरा सिक्का दे दिया। भिखारी ने खुश होकर वह सिक्का अपनी जेब में रख लिया और वापिस जाकर नाली में गिरा हुआ वह सिक्का ढूँढने लगा। राजा को ऐसा लगा कि यह भिखारी बहुत ही गरीब है।
उसने भिखारी को फिर बुलाया और एक चाँदी का सिक्का दिया। भिखारी ने राजा की जय-जयकार करते हुये चाँदी का सिक्का रख लिया और फिर नाली में ताँबे वाला सिक्का ढूँढने लगा। राजा ने उसे फिर बुलाकर, उसकी हालत देखकर एक सोने का सिक्का दिया। भिखारी खुशी से झूम उठा और वापिस भागकर अपना हाथ नाली की तरफ बढाने लगा।
राजा को बहुत ही बुरा लगा। उसे खुद से तय की गयी बात याद आ गयी कि पहले मिलने वाले व्यक्ति को उसे आज खुश एवं सन्तुष्ट करना है। उसने भिखारी को फिर बुलाया और कहा कि मैं तुम्हें अपना आधा राज-पाट देता हूँ। अब तो खुश और सन्तुष्ट हो जाओ तुम। भिखारी ने कहा कि वह खुश और संतुष्ट तभी हो सकेगा, जब नाली में गिरा हुआ ताँबे का वह सिक्का भी उसे मिल जाएगा।
हमारा हाल भी उस भिखारी जैसा ही है। आधा राजपाट, सोने-चाँदी के सिक्कों के मिल जाने के बाद भी गंदी नाली में हाथ डालने से बाज नहीं आ रहा। हमें परमात्मा ने मानव शरीर रुपी यह अनमोल खजाना दिया है और हम उसे भूलकर संसार रुपी नाली में से ताँबे के सिक्के निकालने के लिए जीवन गंवाते जा रहे हैं।
इस अनमोल मानव जीवन रूपी उपहार के लिए उस प्रभु का कोटि-कोटि धन्यवाद हमें करते रहना चाहिए। यदि इस शरीर का एक भी अंग किसी कारण से भंग हो जाए अथवा ठीक से अपना कार्य न कर सके तो हमारा यह जीवन नरक के समान कष्टदायी हो जाता है। उसके द्वारा दिए गए इस बेशकीमती खजाने का यदि हम उचित प्रकार से इस्तेमाल कर सकें, तभी हमारा यह जीवन धन्य हो सकेगा।
चन्द्र प्रभा सूद
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गुरुवार, 5 मई 2016
अनमोल मानव शारीर
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