किसी को याद करना और किसी को याद आना दोनों अलग-अलग बातें हैं। हम प्रायः उन सबको याद करते हैं जो हमारे अपने होते हैं और जिनसे हमारा कोई-न-कोई सम्बन्ध होता है। कभी हम उन्हें अपने प्यार के कारण याद कर लेते हैं और कभी स्वार्थ के वशीभूत होकर याद करते रहते हैं।
इसके विपरीत उन लोगों को हम सदा याद आते हैं जो हमें अपना समझते हैं। पलक पाँवड़े बिछाकर वे हमारी प्रतीक्षा करते रहते हैं। हमारी पीठ पीछे भी कभी निन्दा नहीं करते बल्कि प्रशंसा करते हैं। उन पर आँख मूँदकर विश्वास किया जा सकता है। ये हमारे लिए अपनों से भी बढ़कर होते हैं। इनके सच्चे प्यार पर हर प्रकार से भरोसा किया जा सकता है।
मनुष्य को यथासम्भव उन लोगों की संगति से बचने का यत्न करना चाहिए जो किसी के पास जाकर हमेशा दूसरों की बुराई करते हैं। कहने का अर्थ है कि उन्हें बस दूसरों की निन्दा-चुगली करने में ही आनन्द आता है। इसमें बिल्कुल सन्देह नहीं कि ऐसे लोग जो हमारे सामने दूसरों की बखिया उधेड़ते हैं, वे दूसरों के पास जाकर हमारी बुराई भी अवश्य करते होंगे।
उन लोगों का बस एक ही उद्देश्य होता है, बिना कारण किसी की छिछालेदार करना। ऐसे लोग बहुत खतरनाक होते हैं। ये न तो कभी किसी के सगे होते हैं और न ही किसी के दिल में अपना स्थान बना पाते हैं। ऐसे लोगों को कोई भी याद नहीं करना चाहता। यदि ये कभी याद आ भी जाते हैं तो सबके मुँह का मानो स्वाद ही बिगड़ने लगता है।
इन्सान गलतियों का पुतला है। यदि वह गलती नहीं करेगा तो साक्षात भगवान बन जाएगा। होना तो यह चाहिए कि जिसकी गलती है उसे विश्वास में लेकर प्यार से समझा दिया जाए और दूसरे किसी को इसकी कानोंकान खबर न होने दी जाए। कारण यही है कि अपनी गलतियों अथवा कमियों को उस व्यक्ति विशेष ने सुधारना है किसी अन्य ने नहीं। इस प्रकार मनुष्य यदि विशाल हृदयता का परिचय देता है तो वास्तव में वह सबका अपना बन जाता है।
इसीलिए सयाने कहते हैं कि जो व्यक्ति अच्छा लगता है उसे बहुत अधिक गौर से या बारीकी से न देखो और न परखो। हो सकता है कि उसमें कोई बुराई दिखाई दे जाए। इससे मनमुटाव बढ़ जाता है और आपसी सम्बन्धों में खटास आने की सम्भावना बनी रहती है।
इसके विपरीत जो व्यक्ति बुरा लगता है, उसे गहराई से देखो और परखो। हो सकता है उसकी कोई ऐसी अच्छाई दिखाई दे जाए जो सचमुच प्रशंसनीय हो। फिर वह व्यक्ति अपने मन को भाने लग जाए और उसकी यादें मधुर बन जाएँ।
यह दुनिया एक रैन बसेरे की तरह है। पता नहीं कितने दिन तक यहाँ रहना है। इसका किसी को भी पता नहीं कि कौन पहले जाएगा और कौन बाद में। यह सब तो उस मालिक को ज्ञात है, जिसने इस सम्पूर्ण माया की रचना की है। जहाँ तक हो सके लोगों के दिलों को जीत लो और उनके मनों में अपनी पैठ बना लो। तब चाहकर भी ऐसे व्यक्ति को कोई भी अपने दिल से नहीं निकाल पाएगा।
जहाँ तक हो सके सबमें प्यार बाँटते चलो। अपने मन में आने वाली कटुताओं को दरकिनार करते हुए उसमें भरने वाले जहर को निकाल फैंक सकें तो समाज में चारों ओर प्यार की नदियाँ बहाई जा सकती हैं। तब हम सबको निश्छल प्यार करेंगे और सभी हमें प्यार कर सकेंगे। उस समय प्यार करना और प्यार होने वाली रेखा समाप्त हो जाएगी। तब किसी को याद करना और किसी को याद आना दोनों का भेद मिट जाएगा, दोनों बातें अलग-अलग नहीं एक हो जाएँगी।
चन्द्र प्रभा सूद
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शनिवार, 28 मई 2016
याद आना और याद करना
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