ईश्वर ने हर मनुष्य को मौन और मुसकान नामक दो हथियार इस ससार में आते समय आत्मरक्षा के लिए दिए हैं। इन दोनों का वार कभी खाली नहीं जा सकता। अब यह मनुष्य पर निर्भर करता है कि वह उनका उपयोग किस प्रकार करता है।
हमारे ऋषि-मुनि आत्मबल बढ़ाने के लिए मौन धारण करते हैं। इसकी शक्ति वही पहचान सकता है जो इसे साध लेता है। हम कह सकते हैं कि यदि मनुष्य मौन रहने की आदत अपना ले तो बहुत से झगड़े समाप्त हो सकते हैं और कुछ टाले भी जा सकते हैं। घर-परिवार में किसी की बात नापसन्द होने पर यदि प्रतिकार किया जाता है तो वह पलक झपकते विवाद का रूप ले लेती है।
कभी-कभी ये झगड़े इतने बढ़ जाते हैं कि परिवार में विघटन तक हो जाता है अथवा पति-पत्नी में अलगाव हो जाता है। सदियों पुरानी मित्रता भी विवाद के चलते होम हो जाती है। कभी-कभी शत्रुता पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलती रहती है, जिससे किसी का भला नहीं होता। इस दुश्मनी के किस्से हम फिल्मों और टीवी सीरियलों पर देखते हैं। समाचार पत्रों और सोशल मीडिया में पढ़ते रहते हैं।
इसी प्रकार अपने कार्यक्षेत्र में भी चुप के शस्त्र से अपने विरोधियों को सरलता से परास्त किया जा सकता है और अपना दबदबा बनाकर रखा जा सकता है।
यदि ठण्डे दिमाग से यदि विशलेषण कर लिया जाए तो समझ आ जाता है कि मामले को अकारण तूल दी गई। उस समय सब हाथ से निकल चुका होता है। जो हानि होनी थी वह हो चुकी होती है, तब उसकी भरपाई कठिन हो जाती है। मनोमालिन्य इतना बढ़ चुका होता है कि कोई भी एक-दूसरे की शक्ल तक देखना पसन्द नहीं करते। ये स्थितियाँ कभी भी अच्छ
मौन से जो कहा जा सकता है उसे शब्दों से नहीं कहना चाहिए। इसीलिए कहते हैं- एक चुप सौ को हराए अथवा एक चुप सौ सुख।
चुप रहना वास्तव में हमारे सस्कारों का प्रतीक है लेकिन कुछ लोग ऐसे संस्कारियों कायर या मूर्ख समझने की भूल करते हैं। यदि मौन रहकर अपरिहार्य स्थितियों से बचा जा सके तो यह सौदा किसी भी तरह महँगा नहीं कहा जा सकता।
एक प्यारी-सी मनमोहक मुस्कान से मनुष्य किसी भी पराए को अपना बना सकता है। यदि मुस्कान सरल व सहज है तो उसी प्रकार सरलता से सबका दिल जीत लेती है जैसे एक बच्चे की निश्छल मुस्कान। परन्तु कुटिल मुस्कान मनुष्य को सबसे काटकर अलग-थलग कर देती है। इसका कारण है कि वह कुटिल मुस्कान बर्बरता का प्रतीक होती है। हर आततायी के चेहरे पर यही दिल दहला देने वाली क्रूर मुस्कान ही होती है। इसको देखकर सभी को भयभीत होते हैं।
एक बार गौतम स्वामी ने भगवान महावीर से पूछा था, ' प्रभु मौन और मुस्कान में क्या अंतर है?'
भगवान महावीर ने बहुत ही सुन्दर जवाब दिया था- 'मौन और मुस्कान दो शक्तिशाली हथियार हैं। मुस्कान से कई समस्याओं को हल किया जा सकता है और मौन रहकर कई समस्याओं को दूर रखा जा सकता है।'
जहाँ तक हो सके इस मौन की साधना करने का यत्न करना चाहिए। ईश्वर का ध्यान लगाने अथवा उसकी उपासना करने के लिए भी मौन की आवश्यकता होती है। अपने दैनन्दिन कार्यो को करते हुए, घर-परिवार के दायित्वों का निर्वहण करते हुए और कार्यालयीन कार्यों को दक्षता से निपटाते हुए प्रतिदिन थोड़ा से समय के लिए मौन रखें। इससे आत्मबल तो बढ़ता ही है साथ ही अपने कार्यों के सुचारु रूप से सम्पादन के लिए ऊर्जा भी मिलती है।
कितने भी कष्ट व परेशानियाँ क्यों हों, अपनी मोहक मुस्कान को खोना नहीं चाहिए। उसकी बदौलत हम अपन कष्टों को भी कुछ समय तक भूल जाते हैं और बन्धु-बान्धवों के चहेते बन जाते हैं।
अतः मौन और मुस्कान को अपनाने वाले की कभी हार नहीं हो सकती। शारीरिक रूप से शक्तिहीन होने पर भी मनुष्य का मानसिक व आत्मिक बल बढ़ता है। उसके चाहने वालों की संख्या दिन प्रतिदिन बढ़ती रहती है। सबको साथ लेकर चलने से मनुष्य का यश चहुँ दिशि फैलता है।
चन्द्र प्रभा सूद
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रविवार, 29 मई 2016
मौन और मुस्कान
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