अपनों से जीवन में जब कष्ट मिलता है तब मानव मन तार-तार हो जाता है। वह अपनों से प्रेम, विश्वास, सहानुभूति, सहृदयता और अपनेपन की अपेक्षा करता है। इस कसौटी पर जब अपने बन्धु-बान्धव खरे नहीं उतरते और उसकी अवहेलना करते हैँ, तब उसे लगता है कि उसके जीवन की कोई उपयोगिता नहीं रह गई।
उसे संसार में रहते हुए ऐशो-आराम के सारे साधन व्यर्थ लगते हैं। इसी प्रकार थाली में सजे छप्पन भोग भी बेस्वाद प्रतीत होते हैं। किसी अन्जान से ठोकर लगे तो उतना कष्ट नहीं होता जितना स्वजनों की बेरुखी मनुष्य को तोड़ देती है।
अवमानना की इस अवस्था में होने की विवेचना को इस दृष्टान्त के माध्यम से समझते हैं। एक राजा के महल में एक स्त्री और उसका बेटा काम करते थे। एक दिन राजमहल में कामवाली के बेटे को हीरा मिला। उसने माँ को मिला हुआ हीरा दिखाया। कामवाली होशियारी से वो हीरा बाहर फैंककर कहती है यह काँच है, हीरा नहीं। कामवाली घर जाते वक्त चुपके से वह हीरा उठाकर ले जाती है। वह सुनार के पास जाती है सुनार समझ जाता है कि इसे कहीं से मिला होगा। यह असली या नकली इसे पता नहीं है। इसलिए पूछने आई है। सुनार भी होशियारी से वह हीरा बाहर फैंककर कहता है। ये काँच है हीरा नहीं। कामवाली लौट जाती है।
सुनार वह हीरा चुपके सेे उठाकर जौहरी के पास जाता है, जौहरी उस हीरे को पहचान लेता है। अनमोल हीरा देखकर उसकी नियत बदल जाती है। वह भी हीरा बाहर फैंककर कहता है ये काँच है हीरा नहीं। जैसे ही जौहरी हीरा बाहर फैंकता है उसके टुकडे-टुकडे हो जाते है।
एक राहगीर यह सब निहार रहा था उसने हीरे से जाकर पूछा कि कामवाली और सुनार ने दो बार तुम्हे फैंका तब तो तुम नहीं टूटे। फिर अब ऐसा क्या हुआ कि तुम टूट गए?
हीरा बोला कामवाली और सुनार ने मुझे फैंका क्योंकि वे वास्तव में मेरी असलियत से अनजान थे। वे मेरे मूल्य को नहीं पहचानते थे। इसलिए मुझे उनके कृत्य पर अन्तर नहीं पड़ा। परन्तु जौहरी को तो मेरे बहुमूल्य होने का ज्ञान था, फिर भी उसने लालच के कारण मेरे साथ दुर्व्यवहार किया। यह दुःख मैं सहन नहीं कर सका और टूट गया।
ऐसा ही हम मनुष्यों के साथ भी होता है। जो लोग हमें जानते हैं, समझते हैँ उसके बावजूद भी यदि दिल दुःखाते है तब उस समय मनुष्य को भी यह बात सहन नही होती कि वह अपनों के द्वारा ठुकराया जाए। कोशिश यही करनी चाहिए कि कभी अपने स्वार्थ के लिए स्वजनों को आहत न किया जाए और न ही उनका दिल ही तोड़ा जाना चाहिए।
हमारे आसपास बहुत से लोग हीरे जैसे अमूल्य होते है। उनके दिल को कभी नहीं दुखाना चाहिए। किसी की भावनाओं से खिलवाड़ करना अच्छा नहीं होता और न ही उनके सद् गुणों के टुकड़े करके उन्हें बिखरने के लिए विवश करना चाहिए।
अपने आसपास हीरे जैसे लोगों को लताशना कोई कठिन कार्य नहीं है। वे तो लाखों की भीड़ में भी सरलता से पहचाने जाते हैं। अपने सहृदय व्यवहार और परोपकारी वृत्ति के कारण वे अनजाने में ही सबके हृदयों पर राज करने लग जाते हैं। सबके साथ समानता का व्यवहार करने वाले ये महानुभाव हर जीव के दुख-दर्द का सहभागी बन जाते हैं। विश्वसनीयता इनका विशेष गुण होता है जो इन्हें सबका प्रिय भाजन बना देता है।
अपना व्यवहार मनुष्य को सदा ही ऐसा रखना चाहिए कि वह यदि किसी का अच्छा नहीं कर सकता तो कम-से-कम बुरा भी न करे। वह किसी के दुख, परेशानी अथवा अपमान का कारण न बने। यदि हर व्यक्ति ऐसा सोचने लगे तो दूसरों को मानसिक आघात देने के दोष से बच सकता है।
चन्द्र प्रभा सूद
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सोमवार, 16 मई 2016
अपनों के कष्ट से मन तार-तार
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