आत्मनिरीक्षण आवश्यक
मनुष्य को अपने जीवन में आत्मनिरीक्षण नित्य करते रहना चाहिए। प्रतिदिन उसे सोने से पूर्व दिनभर के कार्य कलाप पर दृष्टि डालनी चाहिए। तभी उसे ज्ञात हो पाता है कि इस दिन उसने कौन-से अच्छे कार्य किए और कौन-से अकरणीय कार्य किए। कितने लोगों का उसने दिल दुखाया और कितने लोगों की उसने सहायता की। आत्मपरीक्षण के बिना मनुष्य अपने गुणों और दोषों दोनों की ही जानकारी नहीं ले सकता।
यदि उस दिन आचरण दोषपूर्ण रहा हो, तो उन दोषों को दूर करने का उपाय करना चाहिए। विश्लेषण करने पर यदि लगे कि कहीं चूक हो गई, तो अगले दिन उसे सुधारने का प्रयास करना चाहिए। इस प्रकार धीरे-धीरे मनुष्य अपनी कमियों को दूर करने में समर्थ हो सकता है। यदि लगे कि आज कुछ अच्छे काम किए, तो अगले दिन और अधिक अच्छे कार्य करने चाहिए। इस प्रकार अपनी कमजोरियों पर विजय प्राप्त की जा सकती है और शुभकार्यों को बढ़ाया जा सकता है।
मनुष्य की विजय का यह एक सरल-सा उपाय है। तभी किसी मनुष्य की आध्यात्मिक उन्नति सम्भव हो सकती है। आत्मिक उन्नति चाहने वाले मनुष्य के लिये जितना साँस लेना अनिवार्य होता है, उसके लिए आत्मनिरीक्षण भी उतना ही आवश्यक होता है। सूक्ष्मातिसूक्ष्म दोषों को जानकर आत्मनिरीक्षण करने वाला व्यक्ति उन्हें स्वयं से दूर करने में समर्थ हो जाता है। तब वह संयमी बन जाता है।
मनुष्य के जितने दोष दूर होते चले जाते हैं, उतना ही उसका मन दर्पण की तरह निर्मल एवं पवित्र होता चला जाता है । जिस दिन मनुष्य का मन पूर्णरूप से शुद्ध हो जाता है, उस दिन वह अपने सात्विक स्वरूप को देखकर आनन्द की अनुभूति कर पाता है। यह कोई कठिन कार्य नहीं है। केवल इच्छाशक्ति दृढ़ होनी चाहिए। इस तरह निरन्तर प्रयत्न करते रहने से व्यक्ति महानता को प्राप्त हो जाता है ।
आत्मनिरीक्षण पर बल देते हुए किसी कवि ने मनुष्य को निम्न श्लोक में समझाया है-
प्रत्यहं प्रत्यवेक्षेत नरश्चरितमात्मनः।
किन्नु मे पशुभिस्तुल्यं किन्नु सत्पुरुषैरिति।।
अर्थात् प्रतिदिन मनुष्य आत्मनिरीक्षण करना चाहिए। उसे यह देखना चाहिए कि आज उसका आचरण पशुओं के समान था अथवा सत्पुरुषों के समान था?
सुभाषितकार ने आत्म-निरिक्षण के माध्यम से स्वयं को सुधारने का सटीक उपाय बताया है। मनुष्य को यह निरीक्षण करना चाहिए कि उसमें कौन-सी पशुओं जैसी प्रवृत्तियाँ हैं? उन प्रवृत्तियों को दूर करने का प्रयत्न करना चाहिए। दूसरी तरफ किसी महापुरुष के साथ अपनी तुलना करके देखना चाहिए कि उनमें जो भी अच्छाइयाँ हैं, वे उसमें हैं या नहीं। महान लोगों में विद्यमान उन अच्छाइयों को ग्रहण करने का प्रयास करना चाहिए।
आत्मनिरीक्षण किसी भी समय किया जा सकता है। रात का समय इसके लिए सबसे अच्छा होता है। मनुष्य इस समय तक अपने दैनिक कार्यों से निवृत्त हो जाता है। तब वह शान्त मन से बैठकर या लेटकर पूरे दिन के घटनाचक्र को फिल्म की रील की तरह चलाकर देख सकता है। उसे देखकर वह अपना परीक्षण स्वयं कर सकता है। दिनभर में उसका कौन-सा व्यवहार या कार्य उचित था और कौन-सा अनुचित?
इस सबका फैसला वह स्वयं जज बनकर कर सकता है। उसी के अनरूप अगले दिन के लिए वह दृढ़प्रतिज्ञ होकर कार्य कर सकता है। कोई उसे उसकी गलती के लिए टोके या अपमानित करे, उससे अच्छा यही है कि उसे स्वयं ही सम्हल जाना चाहिए। किसी दूसरे को कहने का अवसर ही नहीं देना चाहिए। यह सब मनुष्य के आत्मविश्लेषण के कारण ही सम्भव हो सकता है।
अतः मनुष्य को इस शुभकार्य को शीघ्र ही आरम्भ कर देना चाहिए। उसे आत्मनिरीक्षण करते हुए, स्वयं ही अपना मार्गदर्शक बन जाना चाहिए। ऐसा करके दोषरहित बनता हुआ वह मनुष्य सबकी प्रशंसा का पात्र बन जाएगा। निस्सन्देह ऐसे मनुष्य का यश चारों दिशाओं में प्रसारित होगा।
चन्द्र प्रभा सूद
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