बुरा करने वाले से व्यवहार
अपने साथ बुरा करने वाले इन्सान से जब तक मनुष्य बदला नहीं ले लेता, उसके कलेजे में ठण्डक नहीं पड़ती। वह इस बात को पचा ही नहीं पता कि अमुक व्यक्ति ने उसका अहित क्यों और किसलिए किया? वह सोचता है कि उसने तो उसका कुछ भी नहीं बिगाड़ा था। सब लोगों से अपनी सफाई देते हुए वह कहता फिरता है, "उस व्यक्ति विशेष की हिम्मत तो देखो, मेरे साथ उसने इतना बुरा किया।"
यह वाक्य हर मनुष्य को सदा याद रहता है कि 'ईंट का जवाब पत्थर से देना चाहिए।' इसी बात को संस्कृत भाषा में इस प्रकार कहते हैं-
शठे शाठयं समाचरेत्।
तथा
आर्जवं हि कुटिलेषु न नीति:।
अर्थात् दुष्ट के साथ दुष्टता का व्यवहार करना चाहिए। तथा दुष्टों का साथ सरलता का व्यवहार नहीं करना चाहिए।
अपने गिरेबान में कोई भी मनुष्य झाँककर नहीं देखना चाहता। हर इन्सान समझता है कि वह दूध का धुला हुआ है। वही एक ऐसा मनुष्य है, जो सबके साथ अच्छा व्यवहार करता है। बाकी सब लोग उससे और उसकी तरक्की से जलते हैं। इसीलिए उसका बुरा चाहते हैं और करते भी हैं। वास्तव में ऐसा हो नहीं सकता कि एक मनुष्य ठीक हो और बाकी सारी दुनिया गलत हो।
जब कोई किसी मनुष्य के साथ बुरा व्यवहार करता है, तब उसे एकान्त में बैठकर गहन चिन्तन करना चाहिए। उसे सारी स्थिति को समझने का प्रयास करना चाहिए। उसे जानना चाहिए कि इसका कारण क्या है? दूसरे मनुष्य को आखिर उस सीमा तक जाने की आवश्यकता ही क्यों पड़ी? कहीं गलती उसी की तरफ से तो नहीं हो गई? बात इस हद तक बढ़ी ही क्यों?
मनुष्य को निश्चित ही समझ आ जाएगी कि गलती कहाँ पर हुई। यदि अपनी गलती हो, तो क्षमा याचना कर लेनी चाहिए। इससे अपने मन को शान्ति मिलती है। यदि दूसरे की गलती हो, तो उचित समय देखकर उसे अहसास करवा देना चाहिए। यदि वह पूर्वाग्रह से ग्रसित होगा, तो अकड़ जएगा और अपनी गलती स्वीकार नहीं करेगा। ऐसे मनुष्य से किनारा कर लेना श्रेयस्कर होता है।
अपना अहित करने वाले का प्रतिकार करना हर मनुष्य अपना अधिकार समझता है। इसलिए उसके लिए योजना बनाने में वह जी जान से जुट जाता है। अनेक प्रकार से वह उसकी सफलता को परखता है। जब उसे विश्वास हो जाता है कि वह अपने विरोधी को मात दे देगा, तो वह आगे कदम बढ़ाता है। अब उसकी सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि सामने वाला कितना शक्तिशाली है?
यहाँ मैं एक बात कहना चाहती हूँ कि मनुष्य पहले अपने मन को दुखी करता है। यानी वह बदला लेने के विभिन्न तरीकों को सोचेगा। दूसरे का बुरा तो वह समय आने पर ही करेगा, पर स्वयं को बार-बार परेशान करता है। जैसे माचिस की एक तीली पहले स्वयं को जलाती है, फिर दूसरी वस्तुओं को जलती है। उसी प्रकार मनुष्य पहले स्वयं को जलता है, फिर दूसरों को जलाने का कार्य करता है।
मनुष्य को एक बात सदा याद रखनी चाहिए कि कोई भी व्यक्ति बुरा नहीं होता। कबीरदास द्वारा लिखत निम्न दोहा देखिए-
बुरा जो देखने मैं चला बुरा न मिलया कोय।
जो मन खोजा अपना मुझसे बुरा न कोय।।
अर्थात् जब मैं इस संसार में बुराई खोजने चला तो मुझे कोई बुरा न मिला. जब मैंने अपने मन में झाँक कर देखा तो पाया कि मुझसे बुरा कोई नहीं है।
मेरे विचार में बुरा करने वाले व्यक्ति से बदला लेना, समस्या का कोई हल नहीं है। दोष तो हर व्यक्ति में मिलते हैं। फिर किसी से शत्रुता मोल लेने का कोई औचित्य नहीं रह जाता। शत्रुता का क्रम तो बहुत लम्बा होता है। इसलिए उसे क्षमा करके उसे छोटेपन का अहसास करवा देना चाहिए। मनुष्य को पहल करके स्वयं को जलाने के स्थान पर महान बन जाना चाहिए।
चन्द्र प्रभा सूद
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