मंगलवार, 2 सितंबर 2025

बाल विवाह एक कुरीति

बाल विवाह एक कुरीति

भारत में जड़ कर गई कुरीतियों में बाल विवाह एक ज्वलन्त समस्या है। इक्कीसवीं सदी में जहाँ विश्व सफलता की बुलन्दियों को छू रहा है, हम इन सामाजिक कुरीतियों पर चर्चा कर रहे हैं। बड़े दुख की बात है कि टीवी व इन्टरनेट के जमाने में भी न जाने कितने मासूम इन ढकोसलों की बलि पर चढ़ जाते हैं। माता-पिता इन बच्चों का भविष्य सुधारने के स्थान पर बर्बाद कर देते हैं। यह हमारे देश का दुर्भाग्य है कि माता-पिता भविष्य में अपने बच्चों के साथ होने वाली समस्याओं को अनदेखा करके अपने मासूमों को रूढ़ियों की बलि चढ़ाने में संकोच नहीं करते।
             वैदिक काल में बाल विवाह जैसी रूढ़ियाँ नहीं थी। तब पुरुष की विवाह की आयु 25 वर्ष निश्चित थी। भारतीय कानून के अनुसार, विवाह योग्य आयु पुरुषों के लिए 21 वर्ष एवं महिलाओं के लिए 18 वर्ष है। यदि इससे कम आयु में कोई भी विवाह करता है तो वह विवाह को निरस्त घोषित कर सकता है।
              जिस उम्र में बच्चे गुड्डे-गुड़ियों से खेलते हैं, इन्हें शादी के मण्डप में बिठा दिया जाता है। पढ़ने-लिखने की सुविधा से ये बच्चे वंचित रह जाते हैं। इसका दुष्परिणाम सारी जिन्दगी इन लोगों को भुगतना पड़ता है। अशिक्षित रह जाने के कारण इन्हें अच्छी नौकरी नहीं मिल पाती। अतः इनके लिए जीवन की मुँह बाये खड़ी समस्याओं से जूझना बहुत कठिन हो जाता है। इन लोगों को पग-पग पर कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। साथ ही कच्ची उम्र में विवाह का उपहार इन्हें बीमारियों के रूप में मिलता है। 
             जब तक वे शारीरिक रूप से परिपक्व न हों, उनका विवाह नहीं करना चाहिए। कम उम्र में सेक्स की शुरुआत एवं गर्भधारण से जुड़ी स्वास्थ समस्याओं की प्रबल सम्भावना होती है, जिनमें एच.आई.वी एवं ऑब्स्टेट्रिक फिस्चुला शामिल हैं। इस आयु में मातृत्व सम्बन्धी समस्याऍं अधिकतम होती है। साथ ही शिशु मृत्यु की दरें भी अधिकतम होती हैं।
            कम उम्र की लड़कियाँ परिपक्व नहीं होतीं। अक्सर वे घरेलू हिंसा, सेक्स सम्बन्धी ज्यादतियों एवं सामाजिक बहिष्कार का शिकार होती हैं। 
जिन लड़कियों का कम उम्र में विवाह हो जाता है। इन लड़कियों के पास रुतबा, शक्ति एवं परिपक्वता नहीं होते। अक्सर वे घरेलू हिंसा, सेक्स सम्बन्धी ज्यादतियों एवं सामाजिक बहिष्कार का शिकार होती हैं। कम उम्र में विवाह हमेशा लड़कियों को शिक्षा अथवा अर्थपूर्ण कार्यों से वंचित करता है। जो उनकी निरन्तर गरीबी का कारण बनता है। बाल विवाह लिंगभेद, बीमारी एवं गरीबी के भंवरजाल में फंसा देता है।‌ लड़कियों की शिक्षा का निचला स्तर रहता है। लड़कियों को कम रुतबा दिया जाता एवं उन्हें आर्थिक बोझ समझा जाता है।
            विभिन्न राज्यों में अठारह वर्ष से कम आयु में विवाहित हो रही लड़कियों का प्रतिशत खतरनाक है- मध्य प्रदेश में 73 %, उत्तर प्रदेश में 64%, राजस्थान में 68%,  आन्ध्र प्रदेश में 71%, बिहार में 67%।
              यूनीसेफ की “विश्व के बच्चों की स्थिति- 2009” रिपोर्ट के अनुसार भारत की 47 प्रतिशत महिलाएँ कानूनी रूप से मान्य आयु सीमा 18 वर्ष से कम आयु में ब्याही गईं, जिसमें 56 प्रतिशत ग्रामीण क्षेत्रों से थीं। यूनीसेफ के अनुसार (‘विश्व के बच्चों की स्थिति-2009’) विश्व के बाल विवाहों में से 40 प्रतिशत भारत में होते हैं। 
            वास्तव में इस प्रथा का प्रचलन मुगल काल में हुआ। ऐसा कहा जाता है कि उस समय मुगलों को जो सुन्दर लड़की दिखाई देती थी, उसे उठाकर ले जाते थे। शायद उस समय लड़कियों की सुरक्षा हेतु इसका प्रचलन हुआ होगा। आज हमारा देश स्वतन्त्र है। अब इस समय हम इन समस्याओं से सरलता से मुक्त हो सकते हैं फिर इन्हें सीने से लगाए रखने की कोई आवश्यकयता महसूस नहीं होती। 
              बाल विवाह उन्मूलन हेतु सरकारी व गैर सरकारी संस्थाओं की पहल पर इसके विरुद्ध कानून बनाया गया है। इसी कड़ी में राज्यों ने भी इसके लिए कानून पारित किए हैं। लड़कियों की शिक्षा को सुगम बनाना चाहिए। इन हानिकारक सामाजिक नियमों को बदलना चाहिए। यह समय की मॉंग है। सामुदायिक कार्यक्रमों को सहायता देनी चाहिए। युवा महिलाओं को आर्थिक अवसर प्रदान करने चाहिएँ। प्रत्येक विवाह को वैध बनाने के लिए सरकार ने उसका पंजीकरण आवश्यक कर दिया है। अब देखना यह हैं कि समाज कितना जागरूक हो रहा है।
             बच्चों के खुशहाल व स्वस्थ जीवन की कामना करते हुए मैं आप सभी सुधी जनों से अनुरोध करती हूँ कि कुरीति को जड़ से उखाड़ने में समाज और न्याय की सहायता करें। जहॉं भी ऐसा अनर्थ होते हुए देखें तुरन्त अपने समीप के थाने में शिकायत दर्ज करवाऍं। ताकि इन मासूम बच्चों की जिन्दगी सुधर सके। हालॉंकि हमारे समाज सुधारक सैंकड़ों वर्षों  से इन कुरीतियों की मुक्ति के लिए प्रयास करते रहे। सरकार से भी कड़े कानून बनाने की अपील करती हूँ जिससे बाल विवाह जैसी कुप्रथा पर लगाम कसी जा सके। साथ ही बच्चों के जीवन को बर्बाद होने से बचाया जा सके।
चन्द्र प्रभा सूद 

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